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परिषदीय विद्यालयों के इतिहास में इन शिक्षकों ने जोड़ा नया अध्याय, बच्चों में जगाई ऑनलाइन शिक्षा की अलख

locationबाराबंकीPublished: May 04, 2020 04:00:28 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाने के लिये शिक्षक इजात करे अनोखे तरीके, हर बच्चे को शिक्षित करना मकसद…

परिषदीय विद्यालयों के इतिहास में इन शिक्षकों ने जोड़ा नया अध्याय, जगाई ऑनलाइन शिक्षा की अलख

परिषदीय विद्यालयों के इतिहास में इन शिक्षकों ने जोड़ा नया अध्याय, जगाई ऑनलाइन शिक्षा की अलख

लखनऊ. कोरोना वायरस के चलते लागू हुए लॉकडाउन ने प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में जब परिषदीय विद्यालयों के कुछ शिक्षकों ने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने की शुरुआत की तो सभी को थोड़ा अजीब लगा। हालांकि बाद में इन्हीं शिक्षकों ने सभी प्राइमरी स्कूलों को ऑनलाइन कक्षाओं की राह दिखा दी। आज की तारीख में प्रदेश के परिषदीय स्कूलों के 30 लाख से ज्यादा विद्यार्थियों को शिक्षक रोजाना ऑनलाइन क्लासेज के जरिए पढ़ा रहे हैं। हालांकि कई शिक्षकों को इस काम में परेशानी का सामना भी करना पड़ा। कहीं बच्चों के घरों में स्मार्ट फोन नहीं था तो कई गांवों में इंटरनेट की समस्या थी। लेकिन इन सब के बावजूद शिक्षकों ने अपना जज्बा बनाए रखा और नामुमकिन जैसा दिखने वाले काम को संभव कर दिखाया। शिक्षकों ने पढ़ाने के नए तरीके ढूंढे और कोरोना की इस महामारी के बीच भी हर बच्चे को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं। बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के मुताबिक इस समय एक लाख से अधिक स्कूलों में व्हाट्सएप ग्रुप बनाए जा चुके हैं। इसके अलावा ऑनलाइन क्लासेज के लिए मिशन प्रेरणा की वेबसाइट पर नॉलेज सेंटर बनाए गए हैं। इसमें टीचर्स कॉर्नर और स्टूडेंट कॉर्नर के जरिए शिक्षकों को पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।
व्हाट्सएप्प पर ग्रुप बनाकर पढ़ाई

प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में विकासखंड बंकी के प्राइमरी विद्यालय बनवा की सहायक अध्यापिका अजिता श्रीवास्तव उनमें से एक हैं जो लॉकडाउन लागू होते ही अपने स्कूल के बच्चों के बारे में चिंतित हुईं। उनके बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसके लिए उन्होंने अपने प्रयास शुरू कर दिये। उन्होंने तत्काल अपने स्कूल का एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाया और ज्यादातर बच्चों को उससे जोड़ा। अब अजिता हर दिन उसी ग्रुप पर बच्चों को काम देती हैं और बच्चे भी अपने होमवर्क को पूरा करके बड़े चाव से उन्हें भेजते हैं। अजिता बताती हैं कि ग्रुप में वह प्रतिदिन हिदी, अंग्रेजी, गणित, संस्कृत और जनरल नॉलेज समेत कई विषयों का ज्ञान बच्चों के साथ साझा करती हैं। बच्चे उन प्रश्नों को हल करने के बाद उसकी फोटो ग्रुप में भेजते हैं, जिसे वह चेक करती हैं और दिशा निर्देश देती है। अजिता के मुताबिक ऑनलाइन पढ़ाई में उनके स्कूल के बच्चे काफी रुचि ले रहे हैं। साथ ही वह बच्चों की पढ़ाई के लिए यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर पर भी एक्टिव हैं।
सिलेबस के अनुसार पढ़ाई

बाराबंकी के प्राथमिक विद्यालय बड़ेल प्रथम की शिक्षिका दीपिका सिंह ने बताया कि पहले से शिक्षकों के पास बच्चों के कांटैक्ट नंबर होते हैं। पहले भी कुछ हफ्तों के अंतराल पर उनके पैरेंट्स से बात होती थी। लॉकडाउन होने के बाद सबसे पहले व्हाट्सऐप ग्रुप बनाकर शिक्षकों और बच्चों को जोड़ा गया। अब शिक्षक-छात्र गुड मॉर्निग के मैसेज से ही दिन की शुरुआत करते हैं। शिक्षक बच्चों से प्रेयर करने को कहते हैं और उन्हें कोविड-19 के बारे में भी जागरूक करते हैं। शिक्षक पढ़ाई के लिए 5-5 मिनट का वॉयसमेल बनाकर भेजते हैं। इसके अलावा, वाट्सएप पर ही होम वर्क दिया जाता है। बच्चे वाट्सऐप पर ही जवाब देते हैं। सिलेबस के अनुसार ही पढ़ाई होती है।
सभी बच्चों के साथ जुड़ी

बहराइच के चित्तौरा ब्लॉक में यूपीएस कमोलिया खास की शिक्षिका आंचल ने बताया कि वह इस बात से बिलकुल भी हतोत्साहित नहीं हुईं कि उनके बच्चे शुरुआत में व्हाट्सएप से जुड़ नहीं पाए। उन्होंने पहले कुछ बच्चों का एख ग्रुप बनाया और जिनके घर में स्मार्ट फोन नहीं था उनके सामान्य फोन को ही माध्यम बना लिया। वो बच्चों को फोन करके समझाती हैं और सवाल- जवाब करवाती हैं। बच्चे किसी के भी फोन से फोटो खींच कर उन्हें भेज देते हैं। वह कहती हैं कि गांव में हमें पता है कि कौन बच्चे पढ़ने में ठीक हैं। हम उनसे ही बोल देते हैं कि बाकी बच्चे का काम देख लो और फोटो खींचकर भेज दो। इस तरह से वह लगभग सभी बच्चों के साथ जुड़ गई हैं।
… ताकि बच्चों की पढ़ाई का न हो नुकसान

जौनपुर जिले में विकास खण्ड सिरकोनी के प्राथमिक विद्यालय चकताली की सहायक अध्यापिका शिप्रा सिंह का कहना है कि लॉकडाउन के चलते उनके बच्चों की पढ़ाई का कोई नुकसान न हो वह हर पल इसी बारे में सोचती हैं। उनका ध्यान उन बच्चों पर ज्यादा रहता है जो व्हाट्सएप से नहीं जुड़े हैं। वह कहती हैं कि हम उनको बटन वाले फोन पर ही समझाते हैं। बाकी जो बच्चे व्हाट्सएप्प से जुड़े हैं उनसे भी स्कूल के दूसरे बच्चों की मदद के लिए कहते हैं। जिससे सभी तक उनकी मेहनत पहुंच सके। शिप्रा के मुताबिक एक-दूसरे के अनुभवों से हम सीख रहे हैं। गांव में घर नजदीक होते हैं इसलिए परेशानी भी नहीं होती।
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