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बाजार भाव ज्यादा, कैसे पूरा होगा सरकार का वादा

locationबारांPublished: Mar 22, 2019 11:13:29 am

Submitted by:

Dilip

सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले छात्र-छात्राओं को मिलने वाला दूध कितना पौष्टिक है, इसको लेकर न तो सरकार गंभीर है और न ही जिला प्रशासन कोई ध्यान दे पा रहा है। ग्रामीण इलाकों में छात्र-छात्राओं को खुला दूध पीने को मिलता है, जिसकी पौष्टिकता की कोई गारंटी नहीं है। हालांकि सरकार की ओर से सभी विद्यालयों में प्रमाणित डेयरी की पैकिंग वाला दूध ही वितरित किए जाने के आदेश जारी किए हुए हैं, लेकिन विड़म्बना यह है कि सरकार ने दूध के जो दाम स्कूलों के लिए तय किए हुए हैं, उतने में तो यह दूध बाजार में उपलब्ध ही नहीं होता।

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Annapurna Milk Scheme

बारां. सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले छात्र-छात्राओं को मिलने वाला दूध कितना पौष्टिक है, इसको लेकर न तो सरकार गंभीर है और न ही जिला प्रशासन कोई ध्यान दे पा रहा है। ग्रामीण इलाकों में छात्र-छात्राओं को खुला दूध पीने को मिलता है, जिसकी पौष्टिकता की कोई गारंटी नहीं है। हालांकि सरकार की ओर से सभी विद्यालयों में प्रमाणित डेयरी की पैकिंग वाला दूध ही वितरित किए जाने के आदेश जारी किए हुए हैं, लेकिन विड़म्बना यह है कि सरकार ने दूध के जो दाम स्कूलों के लिए तय किए हुए हैं, उतने में तो यह दूध बाजार में उपलब्ध ही नहीं होता।
अन्नपूर्णा दूध योजना की शुुरुआत प्रदेश भर में जुलाई से शुरू हुई थी। योजना के तहत जिले में 1 हजार 315 स्कूलों में कक्षा 1 से 8वीं में पढऩे वाले 1 लाख 21 हजार 287 छात्र-छात्राएं लाभान्वित होते हैं। इनमें 80 मदरसों के बच्चे भी शामिल हैं। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से शुद्धता मापने के लिए एक भी सेंपल नहीं लिया गया है, जबकि सेंपल लेने का नियम है। अब अतिरिक्त आयुक्त (वित्त) मिड डे मील ने छात्र छात्र-छात्राओं को वितरण से पहले एक शिक्षक, एक अभिभावक या एसएमसी सदस्य को दूध चखाने के आदेश दिए हैं। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग व रसद विभाग की टीम को सेम्पल लेकर सुरक्षित करने के भी पुन: आदेश दिए हैं।
नहीं मिल पाता पैकिंग वाला दूध
प्रमाणित डेयरी का पैकिंग वाला दूध शहरी क्षेत्र 81 स्कूलों के 8 हजार 514 छात्र-छात्राओं को ही उपलब्ध हो पा रहा है। ग्रामीण इलाकों के 1 हजार234 स्कूलों के 1 लाख 12 हजार 773 छात्र-छात्राओं को पैकिंग वाला दूध नहीं मिल पा रहा है। शहरी इलाकों के स्कूलों के लिए 40 रुपए प्रतिकिलो व ग्रामीण इलाकों के लिए 35 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब हिसाब से राशि आती है, जबकि सरस के पैकिंग वाले दूध की कीमत 35 रुपए से ज्यादा है। ऐसे में मजबूरी में छात्र-छात्राओं को खुला दूध पिलाना पड़ रहा है।
लेक्टोमीटर का नहीं होता इस्तेमाल
दूध की पैष्टिकता मापने के लिए प्रत्येक स्कूल में एक-एक-एक लेक्टोमीटर उपलब्ध कराया गया है। दूध लेते समय संस्था प्रधान को लेक्टोमीटर से दूध की जांच करनी होती है, ताकि पता चले कि दूध कितना पोष्टिक है। उसमें पानी मिला है या नहीं मिला है, लेकिन इक्का दुक्का स्कूलों को छोड़कर कोई भी लेक्टोमीटर का इस्तेमाल नहीं करता है। कई संस्था प्रधानों का डेयरी का दूध उन्हें मिल ही नहीं रहा।
ग्रामीण इलाकों के लिए 35 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से दूध की राशि आती है। उक्त कीमत में पैकिंग वाला दूध लेना संभव नहीं है। जिला कलक्टर ने उक्त कीमत में दूध उपलब्ध कराने के लिए सरस कंपनी से बात की है।
रमेश पंकज, अतिरिक्त जिला पोषाहार प्रभारी शिक्षा विभाग
लगातार अभियान चलने से दूध के सेंपल नहीं ले पाए हैं। जल्द ही स्कूलों में जाकर सेंपल लिए जाएंगे। वैसे संस्था प्रधान चाहे तो उनके पास इसकी जांच के लिए लेक्टोमीटर का उपयोग कर दूध की शुद्धता माप सकते हैं।
राजेश रामचंदानी, खाद्य सुरक्षा अधिकारी, बारां
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