शीतकाल में यहां देश के कई राज्यों के अलावा यूरोपियन व एशियन देशों के पक्षी आते हैं। प्रवासी पक्षियों का आगमन नवम्बर माह में शुरू होता है और यह मार्च माह तक यहां रहते हैं। लेकिन इस वर्ष फरवरी माह में ही अधिकांश प्रवासी पक्षी वापस लौट गए हैं।
बारां
Updated: February 26, 2022 08:51:06 pm
बारां से करीब 25 किमी दूर स्थित सोरसन वन क्षेत्र है। लोकप्रिय रूप से सोरसन घास के मैदानों के रूप में जाना जाता है। यह 41 वर्ग किमी का पक्षी अभयारण्य है, जो झाड़ीदार वनस्पतियों, कई जल निकायों और पक्षियों और जानवरों की एक विशाल विविधता का घर है। इस क्षेत्र का अमलसरा का तालाब देसी, विदेशी पक्षियों का पसंदीदा घरौंदा है। शीतकाल में यहां देश के कई राज्यों के अलावा यूरोपियन व एशियन देशों के पक्षी आते हैं। प्रवासी पक्षियों का आगमन नवम्बर माह में शुरू होता है और यह मार्च माह तक यहां रहते हैं। लेकिन इस वर्ष फरवरी माह में ही अधिकांश प्रवासी पक्षी वापस लौट गए हैं।
जिन क्षेत्रों से यह पक्षी यहां आते हैं, वे सर्दी में बर्फ के मैदान बन जाते हैं। प्रवासी पक्षी यहां प्रजनन की करते हैं, इनके लिए यहां अनुकूल हालात होते हैं। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से ओरिओल्स, बटेर, तीतर, रॉबिन, बुनकर, ग्रेलेग, गीज, कॉमन पोचाड्र्स, टील्स और पिनटेल्स देखे जा सकते है। स्पूनबिल और पेंटेड स्टॉर्क (जांघिल), ग्रे लैग गूज, कॉम्ब डक लेसर, व्हिसलिंग डक, शॉर्ट टॉड स्नैक ईगल, शॉर्ट इयर्ड व स्पॉटेड आउल (उल्लू), रड्डी शेल्डक, सारस क्रेन, बार हैडेड गूज, कॉमन क्रेन (भारतीय सारस), पर्पल मूरहैन, कॉमन डक, स्वैलॉ बर्ड (आबाबील), फ्रूटबैट व कॉमन बैट (चमगादड़), ईगल पैलिकन (हवासील), व्हाइट स्टॉर्क, स्पूनबिल डक, मुर्गाबी, केस्ट्रल ईगल, शिकरा आदि पक्षी शामिल रहते हैं। यह योरप, साइबेरिया, मंगोलिया, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, चाइना, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, आस्ट्रेलिया समेत अन्य कई देशों से आते हैं। वहीं, हिमालयन उल्लू के अलावा यहां आस्ट्रेलिया से भी उल्लू पहुंचते हैं। सोरसन वन क्षेत्र में काले हरिण और चिंकारे जैसे जानवर कुलांचे भरते देखे जा सकते हैं।
तालाब व तलाइयां हो गए सूने
अन्ता वन क्षेत्र के कार्यवाहक रेंजर सुनील पंवार ने बताया कि इस वर्ष सोरसन के मानपुरा तालाब में अधिक पक्षियों ने डेरा था। अमलसरा के तालाब व तेजाजी की तलाई में पक्षी आए थे, लेनकी संख्या गत वर्षों की तुलना में कम थी। अब यहां एशियाई देशों से आने वाले बार गूज हैडेड व व्हीसलिंग बड्र्स ही गिने-चुने बचे हैं। यह पक्षी भी वापसी की तैयारी कर रहे हैं।
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