बोझ में दबा बचपन, कलम की जगह औजार थाम रहे नौनिहाल
बारांPublished: Jul 10, 2023 09:38:42 pm
पढ़ाई छोड़ कर रहे दुकानों पर काम और मजदूरी : नहीं पड़ती विभाग की इन पर नजर, नहीं पहुंचती इन तक कोई योजना


बोझ में दबा बचपन, कलम की जगह औजार थाम रहे नौनिहाल
कोयला. कस्बे में ही कई बच्चों को बाल श्रम की भ_ी में झोंका जा रहा है। कम उम्र के नौनिहालों से सब्•ाी बेचने, पंक्चर बनाने जैसे काम लिया जा रहा है। बाल श्रम कानून का पालन कराने को लेकर विभागीय स्तर से किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है। कोयला. बाल श्रम को रोकने के लिए वैसे तो सरकार ने कई तरह के कानून बनाए हैं। इसके तहत 14 साल की उम्र तक के बच्चों को दुकान या अन्य जगहों पर काम के लिए रखना कानूनन जुर्म है। लेकिन इसके बाद भी कई बच्चों का बचपन कलम की जगह औजार व अन्य काम करने की वस्तुएं संभालने में लगा आसानी से हमारे आसपास ही नजर आ जाता है। कोयला कस्बे में ही कई बच्चों को बाल श्रम की भ_ी में झोंका जा रहा है। कम उम्र के नौनिहालों से सब्•ाी बेचने, पंक्चर बनाने जैसे काम लिया जा रहा है। बाल श्रम कानून का पालन कराने को लेकर विभागीय स्तर से किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना और पढऩे जाने में व्यवधान डालना सामाजिक और कानूनी जुर्म है, लेकिन कोयला कस्बे में उप तहसील और शिक्षित क्षेत्र होने के बावजूद बच्चे स्कूल की जगह मजदूरी करने जा रहे हैं। वहीं इस मामले को लेकर पत्रिका टीम ने पड़ताल की तो पता चला मुख्य बाजार में 6 से 14 वर्ष की आयु के आधा दर्जन बच्चे अपने अभिभावकों का काम में हाथ बटा रहे हैं। वहीं इस ओर न तो अभिभावकों को उनको पढ़ाने की ङ्क्षचता है और न हीं प्रशासन को इस बात से कोई फर्क पड़ रहा। कुछ ऐसी ही तस्वीर पत्रिका के कैमरे में कैद हुई जो शिक्षा विभाग के दावों की पोल खोलती नजर आई। यहां नौनिहालों का बचपन संघर्ष और शिक्षा से वंचित होकर बीत रहा है। दूसरी तरफ सरकार के निजी स्कूल में आरटीई के तहत 25त्न निशुल्क शिक्षा और सरकारी स्कूलों में शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ रही हैं। पत्रिका टीम ने पड़ताल की तो सामने आया कि आदिवासी सहरिया जनजाति के बच्चों का शिक्षक केवल विद्यालय में प्रवेश कर कागजी खानापूर्ति करते हैं, वहीं वह बच्चे असल ङ्क्षजदगी में जीतोड़ मेहनत करते रहते हैं। सरकारी आंकड़ों में इन बच्चों को साक्षर घोषित कर दिया जाता है। हकीकत आज भी जमीन से कोसों दूर है। इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता महेश गौतम ने कहा कि कोयला में शिक्षा का स्तर भले ऊंचा हो, लेकिन कस्बे में पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी की निष्क्रियता के चलते वर्तमान हालात शिक्षा को लेकर बद से बदतर हैं। जहां अब तक प्रवेश परीक्षा का दूसरा चरण शुरू हो गया है, लेकिन कोयला कस्बे में इस ओर कोई कदम नहीं उठाया गया है। कोयला कस्बे में निजी कोङ्क्षचग, ट््यूशन संस्थाएं होने के कारण सरकारी विद्यालय के शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेर के बैठे हैं। सरकारी आंकड़ों से उलट है कहानी यूं तो सरकारी आंकड़ों में ढोल नगाड़ों के साथ रैलियां निकाली जाती है। नवप्रवेश छात्र का तिलक लगाकर स्वागत किया जाता है, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते आज भी कई अभिभावक इससे अनभिज्ञ हैं। जिस कारण बच्चे काम करने जा रहे हैं और शिक्षा से वंचित हैं। - प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो गई है, अभी तक नव प्रवेश प्रक्रिया के प्रवेश की द्वितीय चरण की रैली नहीं निकाली गई है। जल्द ही रैली निकालकर अभिभावकों से विद्यालय में बच्चों को प्रवेश कराने के लिए कस्बे में अनाउंस करवाया जाएगा। प्रेम मीणा, प्रधानाचार्य, राउमावि, कोयला