फिर जगी आस, यहां गुम हो गया विकास
बारांPublished: Nov 16, 2018 06:33:20 pm
चुनाव शंखनाद के साथ पार्टी प्रत्याशियों के नामों की घोषणा होने के बाद गांव कस्बों के गलियारों में चुनावी चकल्लस के नजारे आम होने लगे
पानी, बिजली,सड़क तक को तरस रहे लोग हरनावदाशाहजी.विधानसभा चुनाव शंखनाद के साथ पार्टी प्रत्याशियों के नामों की घोषणा होने के बाद गांव कस्बों के गलियारों में चुनावी चकल्लस के नजारे आम होने लगे हैं। चुनावों को लेकर होने वाली इन चर्चाओं में कहीं पर पुरानी कमियां एवं नहीं हुए कार्यो को लेकर प्रत्याशियों के प्रति टीस है तो कहीं पर आने वाले समय में तैयार किए जाने वाले एजेंडे को लेकर अपने अपने दावे। ज्यादातर मतदाता एक स्वर में विकास के मुद्दे को लेकर आक्रोशित हैं।
लोगों का कहना है कि भाजपा व कांग्रेस के शासनकाल में यहां मूलभूत सुविधाओं की ओर ध्यान ही नहीं दिया गया।ं पुराने लोगों के मुंह से एक बात ही ज्यादातर सुनने को मिलती है कि यहां की राजनीति तीनों पुलियाओं के भीतर तक ही प्रभावी रहती है।
क्योंकि लोगों की पीड़ा वाली आवाज कभी मुखरित नहीं हो पाई और उसी का खामियाजा आज भी सड़क,परिवहन एवं पानी की समस्याओं को लेकर लोग जूझ रहे हैं। बारां जिले के आखिरी छोर पर बसे एवं झालावाड़ जिले व पडौसी राज्य मध्यप्रदेश की सीमा से सटे हरनावदाशाहजी कस्बे से यूं तो बड़ी संख्या में गांव जुड़े हुए हैं। लेकिन यहां पर आने जाने के लिए लोगों के सामने सबसे बडी समस्या है यातायात के साधनों की। ब्रम्हपुरी मोहल्ला निवासी ओमप्रकाश गौत्तम का कहना है कि यहां पर आवागमन के साधनों की समस्या काफी पुरानी हो चुकी है लेकिन उसके समाधान के लिए कभी ठोस कदम उठते नजर नहीं आए। जबकि यहां के सडक मार्ग भी बदहाली का शिकार हैं। वयोवृद्ध पेंशनर नोंदीलाल पंचौली का कहना है कि क्षेत्र के किसानों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर यहां पर कोई ध्यान नहीं है। कृषि उपज मंडी में लाखों रुपए खर्च भी हुए लेकिन उसके बाद आज भी काम अधूरा है। ऐसे में किसानों के सामने भटकने जैसे हालात हैं। ना तो उनको उपज का सही दाम मिल पा रहा और ना ही सरकारी तौल कांटों का लाभ।
ऐसे में क्षेत्र के किसानों के हितों पर हो रहे कुठाराघात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। छीपाबडौद मार्ग निवासी भीमसिंह मीणा का कहना है कि रोजगार के अवसर के लिए यहां कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में खेती व मजदूरी के बाद कई गांवों के लोगों के सामने पलायन ही एकमात्र चारा बचता है। रोजगार के नए विकल्पों के साथ अकलेरा कुंभराज वाया हरनावदाशाहजी होकर सीधी रेल लाइन जोडने के काम पर अमल लाया जाए तो क्षेत्र के विकास को नए आयाम मिलेंगे। इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी यहां पिछड़ापन ही नजर आता है। शिक्षा के नाम पर सुविधाएं नहीं मिलने से प्रतिभाओं को सामने आने से पहले ही दम तोडऩा पड़ता है। क्योंकि सीनियर स्कूल विज्ञान गणित संकाय का सालों से टोटा है। वीरेंद्र सिंह खंीची का कहना है कि कस्बे में अतिक्रमण की समस्या नासूर की तरह पैर पसारती जा रही है। बेशकीमती नया बस स्टैंड शुरु होने से पहले ही अस्तित्व विहीन होता नजर आने लगा है। अतिक्रमी निरंकुश नजर आ रहे हैं ऐसे में प्रशासन पर सवालिया निशान खड़ा हो रहा है। जनमानस की इच्छा है कि कस्बे का एक स्वच्छ स्वरुप निखर कर सामने आए तथा अव्यवस्थाओं का नासूर जमींदोज हो जाए।
क्षेत्र की सबसे पुरानी पीड़ा परवन नदी की नीची पुलिया कई हादसों की गवाह बनकर आज भी उसी स्थिति में नजर आती है। हालांकि प्रक्रिया शुरु होने के बाद लोगों को थोड़ी उम्मीद जरुर जगी है लेकिन राहत कब मिलेगी यह सवाल जेहन में तो बराबर कायम है। दशकों बाद भी यहां की बड़ी समस्याओं पर सरकारों का ध्यान आकर्षित नही होना लोगों में इसी बात की नाराजगी को जाहिर करती है कि राजनीति तो तीनों सडक मार्गो पर बनी पुलियाओं तक ही सीमित होकर रह जाती है।
रिपोर्ट – हंसराज शर्मा द्वारा
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