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अमंगल से सिमटते जा रहे हैं जंगल

locationबारांPublished: Jun 05, 2018 03:51:02 pm

बीते दशकों में अवैध गतिविधियों के तहत जंगलों के मूल स्वरूप के साथ काफी छेड़छाड़ हुई है,

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बारां. दो लाख तैबीस हजार हैक्टेयर वन क्षेत्र (शेरगढ़ अभयारण्य समेत) वाले बारां जिले में बीते दशकों में जंगलों को जितना नुकसान पहुंचा, उसकी भरपाई में तो सालों लग जाएंगे लेकिन मौजूदा वनों के विकास व संरक्षण पर अभी भी ध्यान नहीं दिया गया तो अब जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई शायद संभव नहीं। बीते दशकों में अवैध गतिविधियों के तहत जंगलों के मूल स्वरूप के साथ काफी छेड़छाड़ हुई है, हजारों बीघा वन भूमि अतिक्रमी दबाए बैठे हैं, वहीं स्वार्थ पूर्ति के लिए लोग जंगलों की हरियाली को नष्ट करने में कसर नहीं छोड़ रहे। बीते दशक में काटे गए पेड़ों की संख्या का औसत देखें तो प्रति माह १०० से १५० दरख्त काटे गए। राजस्व की जमीनें हो या वन विभाग की, मानवीय दखल बढऩे से इनके जंगलों को क्षति पहुंची।
अब नहीं पहले जैसे
जिले की किशनगंज-शाहाबाद तहसीलों में ही जिले के कुल वन क्षेत्र का आधे से अधिक वन क्षेत्र है और अवैध गतिविधियां भी यहीं सर्वाधिक होती है। इन क्षेत्रों के जंगलों को संबल देने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। जैव विविधता से परिपूर्ण शाहाबाद को अभयारण्य का दर्जा पहली आवश्यकता है। इसके अलावा यहां के सघन वनों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन एवं वनकर्मी तैनात होने चाहिए। सागवान के पेड़ों के बाहुल्य वाले नाहरगढ़ वन क्षेत्र में बीते दशकभर में ही खासा नुकसान हुआ है। अब यहां सागवान की बाहुल्यता नहीं रही। कीमती सागवान तस्करों की भेंट चढ़ गया। वहीं रामगढ़ व हरनावदाशाहजी की सघन पहाडिय़ां भी अब वैसी नहीं रही।
& -पहले रेवेन्यू एरिया में भी जंगल थे। लोगों ने धीरे-धीरे इन्हें खेती योग्य कर लिया। वन भूमि पर अतिक्रमण रोकने को पूरी तरह सजगता बरती जाती है, कई मौकों पर अतिक्रमण हटाए भी हैं। घनत्व कम होने के मामले में दिखवा रहे हैं, कहां कमी आई है। जिले में स्टाफ की काफी कमी है।
राजीव कपूर, मंडल वन अधिकारी, बारां

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