कम्प्यूटर- मोबाइल के दौर में भी पेड़ पर चढ़ कर सुनाते हैं वह भूले बिसरे गीत, नीचे उतरने की लेते हैं बख्शीश
बारां. कम्प्यूटर- मोबाइल के दौर में भी पेड़ पर चढ़ कर ऊंची आवाज में भूले बिसरे गीत सुनाते किसी को देखेंंगे तो आपको अचंभा जरूर होगा । लेकिन कई गांवों में आज भी यह परंपरा जारी है। आज भी हाड़ौती क्षेत्र में कई स्थानों पर यदा.कदा बुंदेले हरबोले नजर आ जाते हैं। कई दशकों पूर्व तो यह बुंदेले हरबोले करीब हर गांव में दिखाई देते थे। लेकिन समय के साथ साथ इनकी गाथा सुनने वाले भी अब बहुत कम लोग ही मिलते हैं।
कम्प्यूटर- मोबाइल के दौर में भी पेड़ पर चढ़ कर सुनाते हैं वह भूले बिसरे गीत, नीचे उतरने की लेते हैं बख्शीश बारां. कम्प्यूटर- मोबाइल के दौर में भी पेड़ पर चढ़ कर ऊंची आवाज में भूले बिसरे गीत सुनाते किसी को देखेंंगे तो आपको अचंभा जरूर होगा । लेकिन कई गांवों में आज भी यह परंपरा जारी है। आज भी हाड़ौती क्षेत्र में कई स्थानों पर यदा.कदा बुंदेले हरबोले नजर आ जाते हैं। कई दशकों पूर्व तो यह बुंदेले हरबोले करीब हर गांव में दिखाई देते थे। लेकिन समय के साथ साथ इनकी गाथा सुनने वाले भी अब बहुत कम लोग ही मिलते हैं।
बुंदेले हरबोले पेड़ के ऊपर चढ़कर भगवान के भजन व कथा के साथ ही झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की गाथा को गाते हैं। वर्षों से चली आ रही बुन्देले हरबोलो कि यह गाथा आज भी जीवंत है। इसके पीछे उनका मकसद अपना परिवार का पालन पोषण का भी होता है।
यहां जिले के दाता पंचायत क्षेत्र में खंडवा मध्य प्रदेश जिले से आए मंगल सिंह बुंदेला एक पेड़ पर चढ़कर भजन गाते नजर आए। बुंदेले को जब तक कोई दक्षिणा या बक्शीश नहीं मिल जाती तब तक पेड़ पर ही बैठ कर भजन या झांसी की महाराणी की कथा सुनाते ही रहते हैं। वह तभी पेड़ से उतरते हैं। जब उन्हें कोई नीचे उतारने वाला बक्शीश देने वाला मिल जाता है।