इस्लाम साबिर को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। साबिर के पिता अशफाक अहमद पांच बार विधायक रहे तो ताऊ रफीक अहमद एक बार विधानसभा पहुंचे। साबिर भले ही खुद एक बार विधायक रहे हैं लेकिन उनके पुत्र शहजिल इस्लाम तीन बार विधानसभा पहुंचे हैं। साबिर खुद भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और पुत्रवधू आयशा इस्लाम को भी 2014 में लोकसभा चुनाव लड़वा चुके हैं। इस्लाम साबिर को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। उनके साथ भी समर्थकों की लंबी चौड़ी भीड़ है, खासकर अंसारी मतदाता तो उनके पक्ष में एकतरफा हो जाता है।
कई सदस्य आए राजनीति में बरेली की राजनीति में इस्लाम साबिर को माहिर खिलाड़ी माना जाता है। इस्लाम साबिर के पास अपना खुद का वोट बैंक है शायद यही कारण है कि सभी राजनितिक दल उन पर भरोसा जता चुके है। लेकिन इस बार साबिर परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है। 1969 से लगातार इस परिवार का सदस्य चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराता चला आ रहा है। इस्लाम साबिर के पिता अशफाक अहमद कैंट विधानसभा से 1969 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर पहली बार विधायक चुने गए। जिसके बाद अशफाक अहमद ने 1977,1980 और 1996 में कैंट सीट से विधायक बने। अशफाक के बेटे इस्लाम साबिर भी कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर 1991 में विधायक बने। इस्लाम साबिर ने इसके बाद अपने बेटे शहजिल इस्लाम को राजनीति में उतारा और शहजिल इस्लाम कैंट विधानसभा से 2002 में निर्दलीय चुनाव लड़े और विधायक बने। जिसके बाद शहजिल बसपा में शामिल हो गए और 2007 में भोजीपुरा सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने और सरकार में मंत्री बने। 2012 के चुनाव में शहजिल इस्लाम आईएमसी से चुनाव लड़कर विधायक बने और सपा में शामिल हो गए। 2017 में शहजिल को समाजवादी पार्टी ने भोजीपुरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया।
लम्बे समय से लड़ रहे लोकसभा चुनाव इस्लाम साबिर के पिता और ताऊ राजीनति के माहिर खिलाड़ी रहे हैं और उन्ही की तर्ज पर इस्लाम साबिर को भी बरेली की राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। हालाँकि उनको लोकसभा चुनाव में कभी जीत हासिल नहीं हो पाई लेकिन उन्होंने हर चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। इस्लाम साबिर सपा, बसपा और कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके है। इस्लाम साबिर ने 1996,1998,1999,2004 और 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा जबकि 2014 के चुनाव में इस्लाम साबिर ने अपनी पुत्रवधु आयशा इस्लाम को चुनाव लड़ाया लेकिन वो भाजपा के संतोष गंगवार से पराजित हो गईं।
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