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देवगुरू बृहस्पति 11 अक्टूबर को करेंगे राशि परिवर्तन, इन राशि वालों की खुल जाएगी किस्मत

locationबरेलीPublished: Oct 09, 2018 11:41:56 am

Submitted by:

suchita mishra

देव गुरू बृहस्पति का राशि परिवर्तन कर्क, तुला, मकर, कुम्भ एवं मीन राशि वालों के लिए शुभ फलकारी रहेगा।

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देवगुरू बृहस्पति 11 अक्टूबर को करेंगे राशि परिवर्तन, इन राशि वालों की खुल जाएगी किस्मत

बरेली।देव गुरू बृहस्पति 11 अक्टूबर को राशि परिवर्तन करेंगे। 11 अक्टूबर को सायं 7:20 बजे गुरु अपनी शत्रु राशि ’’तुला’’ से निकलकर मित्र राशि ’’वृश्चिक’’ में प्रवेश करेंगे। बृहस्पति पांच नवंबर तक यहाँ रहेंगे। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा के अनुसार गुरू का वृश्चिक राशि में प्रवेश मेष, मिथुन, कन्या, एवं धनु राशि वालों के लिए विपरीत फल कारक रहेगा वही कर्क, तुला, मकर, कुम्भ एवं मीन राशि वालों के लिए शुभ फलकारी रहेगा। तथा अन्य राशि वालों के लिए सामान्य फलकारी रहेगा।
मेष – ज्योतिष ग्रन्थों के अनुसार जन्म राशि से अष्टम भाव में गुरू का गोचर प्रायः सभी क्षेत्रों में प्रतिकूल फल दायक रहता है। इस दौरान नौकरी, व्यवसाय एवं पारिवारिक समस्याओं में वृद्धि एवं परेशानी उत्पन्न हो सकती है। स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता रहेगी।

वृषभ – इस गोचरावधि में शुभ समाचारों की प्रप्ति होगी। कार्यो मे चल रहे अवरोध दूर होंगे। मन प्रसन्न एवं प्रफुल्लित रहेगा। उत्साह एवं सकरात्मकता का संचार होगा और नकारात्मक विचार दूर होगें। आलस्य एवं कार्यो को टालने की प्रवृत्ति दूर होगी तथा पहल करने की प्रवृत्ति को भी बढवा मिलेगा। गुरू के सप्तमस्य गोचर के फलस्वरूप शनि की अष्टम ढैया के अशुभ फलों में भी कमी आएगी।

मिथुन – ज्योति शास्त्र के अनुसार गुरू का षष्ठ भाव में गोचर शुभफलदायक नही होता। इसके फलस्वरूप कार्यो में बाधांए, शत्रुजनित समस्याए, मित्रों एवं परिजनों से वाद-विवाद और असहयेाग, स्वास्थय सम्बन्धी प्रतिकूलता इत्यादि का सामना करना पड़ सकता है।

कर्क – जन्मराशि से पंचम भाव में गुरू का गोचर सामान्यतः प्रसन्नता, सकरात्मकता, उत्साह, में वृद्धि होती है। इस गोचरावधि में शनि का षष्ठ भाव में गोचर रहेगा। जो कि शुभफलदायक है इस प्रकार गोचर में शनि के अनुकूल होने पर गुरू के शुभ गोचरफल भी अधिक मात्रा में प्राप्त होंगे।

सिंह – बृहस्पति का जन्मराशि में चतुर्थ भाव गोचर जहाँ एक ओर विवाह एवं करियर समस्याएं दूर करेगा वही दूसरी ओर स्वास्थय, सम्पत्ति एवं पारिवारिक सुख की दृष्टि से कुछ परेशानीदायक भी हो सकता है।
कन्या– जन्म से तृतीय भाव में गुरू का गोचर सर्वाधिक अशुभफलप्रद माना जाता है यह प्रायः सभी क्षेत्रों में अशुभफल प्रदान करता है इसका प्रतिवेद स्थान द्वितीय भाव है। इस प्रकार तुला राशि में जब-जब नया ग्रह का गोचर होगा, तब-तब गुरू के अशुभ फलों में कमी का अनुभव भी होगा।

तुला – जन्मराशि से द्वितीय भाव में गुरू का गोचर शुभफलदायक होता है। प्राय‘ सभी क्षेत्रों में शुभ फल प्राप्त होते हैं और रूके हुए कार्यो में प्रगति होगी। उत्साह एवं पराक्रम बढ-चढा रहेगा। आत्मविश्वास बढ़ेगा एवं पहल करने की क्षमता में वृद्धि होगी। इस गोचरावधि के दौरान शनि का गोचर तृतीय भाव में रहेगा। फलतः शनि के शुभफलों में भी वृद्धि होगी।

वृश्चिक – ज्योतिषीय ग्रन्थों के अनुसार जन्मराशि के ऊपर से गुरू का गोचर सामान्यतः शुभ फलदायक नही होता परन्तु व्यवहार में यह कुछ क्षेत्रों में शुभफलदायक, तो कुछ क्षेत्रों में अशुभ फलदायक होता है। जन्मराशि अथवा जन्मकालिक गुरू के ऊपर से गुरू का गोचर जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आता है। ये परिवर्तन शुभ भी हो सकते है और अशुभ भी सामान्यतः जन्मराशि के ऊपर से गुरू का गोचर कार्यो में बाधाकारक प्रतिकूल फलदायक एवं स्वास्थय आदि के क्षेत्र में परेशानी पैदा कर सकता है । वही दूसरी ओर वह जातक के स्वाभाव में सकरात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करता है। साथ ही, धार्मिक एवं मानवीय प्रवृत्ति में वृद्धि करता है। सन्तान से सम्बन्धित मामलों में तथा विवाह आदि के क्षेत्रों में इसके शुभ फल प्राप्त होते है।

धनु– जन्मराशि से द्वादश भाव में गुरू का गोचर सामान्यतः शुभ फलदायक नही होता यह आकस्मिक समस्यांए उत्पन्न करने वाला होता है। विभिन्न क्षेत्रों में अवरोध आकस्मिक समस्याओं से प्रगति बाधित होती है।

मकर – जन्मराशि से एकादश में भाव में गुरू को गोचर प्राय: सभी क्षेत्रों में शुभफलदायक रहता है। इस गोचरावधि में अवरूद्ध कार्यो में प्रगति होगी तथा उनमे सफलता प्राप्ति के अवसरों में वृद्धि होगी। परिजनों एवं मित्रों का अपोक्षित सहयोग प्राप्त होगा। वहीं भाग्य का भी पर्याप्त सहारा मिलेगा। इस गोचर अवधि में पराक्रम में वृद्धि इत्यादि शुभ फल भी प्राप्त होंगे। एकादश भाव का वेध स्थान अष्टम भाव हैै। गुरू का इस गोचरावधि के दौरान शनि का गोचर द्वादश भाव में रहेगा। जो कि साढे़साती के प्रभाव देने वाला रहेगा। गुरू के शुभ गोचर के प्रभाव से शनि की साढेसाती के अशुभ प्रभावों में भी कमी आएगी।

कुम्भ – जन्मराशि से दशम भाव में गुरू के गोचर को अशुभफलदायक बताया गया है। इसके फलस्वरूप नौकरी एवं व्यवसाय में अवरोध, सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद, माता-पिता के सुख में कमी, गृहक्लेश की अधिकता रहेगी ।

मीन – मीन राशि वाले जातकों के लिए गुरू का गोचर प्रायः सभी क्षेत्रों में शुभ फलदायक है। रूके हुए कार्यो में प्रगति होगी तथा अपेक्षित सफलता भी प्राप्त होगी। उत्साह में वृद्धि होगी तथा विचार सकारात्मक होंगे। शान्ति एवं विनम्रता का प्रभाव बढेगा।
क्या करें उपाय

पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि जिन राशि वालों के लिए गुरू विपरीत फल कारी हो उन्हे गुरू की अनुकूलता के लिए गुरूवार का व्रत, गुरू की कारक वस्तुओं का दान, स्वर्ण अथवा पीतल का छल्ला धारण करना चाहिए और गुरू मंत्र का जाप कर गुरू के नकारात्मक फलों को कम कर सकते है।
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