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नवग्रह शान्ति के लिए होलिका दहन के समय करें ये काम

locationबरेलीPublished: Mar 17, 2019 08:39:24 am

Submitted by:

jitendra verma

होलिका दहन से पूर्व नवग्रह की लकड़ि़यां एकत्रित करके होली की परिक्रमा करते हुए क्रमानुसार उन्हें होलिका में डाल देना चाहिए।

बरेली। इस बार होलिका दहन 20 मार्च को होगा। होलिका दहन के समय कुछ उपाय कर आप ग्रह शांत कर सकते हैं। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा के अनुसार होली Holi के अवसर पर ग्रह शांत करने के लिए भी विशेष पूजा की जाती है। होलिका दहन से पूर्व नवग्रह की लकड़ि़यां एकत्रित करके होली की परिक्रमा करते हुए क्रमानुसार उन्हें होलिका में डाल देना चाहिए। परिक्रमा करते समय सम्बन्धित ग्रह का मंत्र Mantra जाप भी करते रहना चाहिए। इस प्रकार सभी ग्रहों की लकड़ियों को होलिका में डाल देना चाहिए।इससे ग्रह शांत होते है।
सूर्य ग्रह की शान्ति के लिए

इसके लिए प्रथम परिक्रमा करते हुए मदार की लकड़ी लेकर सूर्य के निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः


चन्द्र ग्रह की शान्ति के लिए
द्वितीय परिक्रमा करते हुए पलाश की लकड़ी लेकर चन्द्र मंत्र का जाप करना चाहिए।

श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः


मंगल ग्रह की शान्ति के लिए

तृतीय परिक्रमा करते हुए खैर की लकड़ी लेकर मंगल मंत्र का जाप करना चाहिए।
क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः

बुध ग्रह की शान्ति के लिए
चतुर्थ परिक्रमा करते हुए अपामार्ग की लकड़ी लेकर बुध के निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।
ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः


गुरू ग्रह की शान्ति के लिए
पंचम परिक्रमा करते हुए पीपल की लकड़ी लेकर गुरू का निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।
ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः

शुक्र ग्रह की शान्ति के लिए

षष्ठ परिक्रमा करते हुए गूलर की लकड़ी लेकर शुक्र के निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।
द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः


शनि ग्रह की शान्ति के लिए
सप्तम परिक्रमा करते हुए शमी की लकड़ी लेकर शनि मंत्र का निम्न जाप करना चाहिए।
प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

राहू ग्रह की शान्ति के लिए

अष्टम परिक्रमा करते हुए दूर्वा की लकड़ी लेकर राहू के निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।

भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः


केतू ग्रह की शान्ति के लिए
नवम परिक्रमा करते हुए कुशा की लकड़ी लेकर केतु के निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।
स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केवते नमः

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