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आंवला लोकसभा सीट: स्थानीय मुद्दे गायब, जातिवाद हावी

locationबरेलीPublished: Apr 21, 2019 03:14:29 pm

Submitted by:

jitendra verma

भाजपा ने यहाँ से सांसद धर्मेंद्र कश्यप को चुनाव मैदान में उतारा है। गठबंधन से बसपा प्रत्याशी रूचि वीरा किस्मत आजमा रही हैं तो कांग्रेस से कुंवर सर्वराज सिंह अपना दम दिखा रहे हैं।

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आंवला लोकसभा सीट: स्थानीय मुद्दे गायब, जातिवाद हावी

बरेली। मंडल की आंवला लोकसभा सीट पर मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है और एक बार फिर भाजपा ने यहाँ से सांसद धर्मेंद्र कश्यप को चुनाव मैदान में उतारा है। गठबंधन से बसपा प्रत्याशी रूचि वीरा किस्मत आजमा रही हैं तो कांग्रेस से कुंवर सर्वराज सिंह अपना दम दिखा रहे हैं। इस बार चुनाव में यहाँ स्थानीय मुद्दे गायब है बल्कि लड़ाई जाति बिरादरी में बट चुकी है। गठबंधन प्रत्याशी जहाँ जातिगत आंकड़ों के भरोसे हैं तो कांग्रेस के प्रत्याशी को भी अपनी जाति के मतदाताओं पर भरोसा है वही सांसद धर्मेंद्र कश्यप भी जातिगत आंकड़ों के साथ ही मोदी मैजिक के सहारे चुनाव मैदान में है।
आंवला लोकसभा सीट का समीकरण

बरेली और बदायूं जिले में आने वाला आंवला लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटरों का खासा प्रभाव है। सीट में करीब 35 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 65 फीसदी संख्या हिंदुओं की है। बीते काफी समय से यहां मुस्लिम-दलित वोटरों का समीकरण नतीजे तय करता आया है, इनके अलावा क्षत्रीय-कश्यप वोटरों का भी यहां खासा प्रभाव है। ऐसे में इस बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन होने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है।आंवला लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें शेखपुर, दातागंज, फरीदपुर, बिथरीचैनपुर और आंवला विधानसभा सीटें आती हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में इनमें से यहां सभी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।
2014 में कैसा रहा था जनादेश

पिछले चुनाव में यहां करीब 60 फीसदी मतदान हुआ था। भारतीय जनता पार्टी को मोदी लहर का फायदा मिला और बीजेपी प्रत्याशी धर्मेंद्र कुमार कश्यप ने 41 फीसदी वोट पाकर जीत दर्ज की। समाजवादी पार्टी के कुंवर सर्वराज को सिर्फ 27.3 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।
आंवला लोकसभा सीट का इतिहास

इस सीट पर 1962 में पहली बार चुनाव हुए थे और सभी को चौंकाते हुए हिंदू महासभा ने जीत दर्ज की थी। हालांकि, उसके बाद 1967, 1971 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी बड़े अंतर के साथ यहां से विजयी रही। 1977 के चुनाव में चली सत्ता विरोधी लहर का असर यहां भी दिखा और भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की, 1980 में भी कांग्रेस को यहां से जीत नहीं मिल सकी और जनता पार्टी यहां से विजयी हुई। 1984 में कांग्रेस बड़े अंतर से यहां जीती। 1984 के बाद से ही यहां कांग्रेस वापसी को तरस रही है।1989 और 1991 में भारतीय जनता पार्टी लगातार दो बार यहां से जीती। 1996 के चुनाव में बीजेपी को यहां झटका लगा और क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी विजय होकर सामने आई। लेकिन दो साल बाद हुए 1998 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी यहां जीती। 1999 का चुनाव समाजवादी पार्टी के हक में गया, लेकिन 2004 में जनता दल (यू) के टिकट पर सर्वराज सिंह यहां से तीसरी बार संसद पहुंचे। पिछले दो चुनाव में बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है, 2009 का चुनाव मेनका गांधी ने यहां से जीता और 2014 में इस सीट पर बीजेपी को मोदी लहर का फायदा मिला और धर्मेंद्र कुमार कश्यप एकतरफा लड़ाई में जीते।
प्रमुख मुद्दे

यहाँ पर लम्बे समय से चीनी मिल खोलने की मांग चली आ रही है। साथ ही किसानों के लिए कृषि से जुडी इंडस्ट्री की मांग भी होती है। उच्च शिक्षा के लिए डिग्री कॉलेज की मांग भी होती रहती है। आंवला रेलवे स्टेशन को और बेहतर और ट्रेनों के ठहराव की मांग, आधुनिक अस्पताल की मांग भी उठती रही है।
जातिगत आंकड़े

मुस्लिम – सवा तीन लाख

दलित – तीन लाख

क्षत्रीय- दो लाख

कश्यप – 1.50 लाख

यादव – 1.50 लाख

ब्राह्मण – एक लाख

मौर्य – एक लाख
वैश्य — 80 हजार

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