अब तक इन्हे मिली जीत रुहेलखंड में क्षत्रिय वोटरों की संख्या बड़ा उलटफेर करने में सक्षम मानी जाती है। महाभारत काल में पांचाल प्रदेश में कठेरिया राजपूतों का शासन बरेली में ही माना जाता है। शाहजहांपुर, बदायूं और बरेली में ठाकुर विधायक चुने जाते रहे हैं तो आंवला लोकसभा सीट पर ठाकुरों का एकाधिकार सा रहा है।आंवला लोकसभा सीट पहली बार 1962 में गठित हुई थी। पहले ही चुनाव में इस सीट से हिन्दू महासभा के प्रत्याशी के रूप में ठाकुर बृजराज सिंह आछू बाबू ने जीत हांसिल की। 1967 और 1971 में कांग्रेस की सावित्री श्याम लगातार दो बार यहां से चुनाव जीतीं तब भी आछू बाबू दोनों बार दमदार तरीके से चुनाव लड़े और दोनों ही बार दूसरे नंबर पर रहे।1977 में ठाकुर बृजराज सिंह लोकदल से दूसरी बार सांसद बने। 1980 में जनता पार्टी एस से जयपाल सिंह कश्यप चुनाव जीते तो आछू बाबू तीसरे स्थान पर रहे। 1984 में कांग्रेस के कल्याण सिंह सोलंकी चुनाव जीते तो ठाकुर राजवीर सिंह तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद 1989 में राजवीर सिंह, 1991 में राजवीर सिंह, 1996 में कुंवर सर्वराज सिंह, 1998 में फिर राजवीर सिंह,1999 और 2004 में कुंवर सर्वराज सिंह चुनाव जीते। इन छह में से पांच लोकसभा चुनाव में राजवीर सिंह और सर्वराज सिंह आमने सामने चुनाव लड़े और पहले और दूसरे स्थान पर रहे। 2009 में मेनका गांधी भाजपा से जीतीं तो कुंवर सर्वराज सिंह तीसरे स्थान पर रहे। वहीं 2014 का चुनाव भाजपा के धर्मेंद्र कश्यप जीते तो सपा के कुंवर सर्वराज सिंह दूसरे स्थान पर रहे।
9 बार क्षत्रिय जीता आंवला में क्षत्रिय राजनीति को इसी तरह समझा जा सकता है कि एक दो नहीं पूरे पांच बार क्षत्रिय प्रत्याशी ही आपस में आमने सामने लड़े और एक जीता तो दूसरा दूसरे स्थान पर रहा। यहां तक की क्षेत्र की जनता ने जनता दल यूनाईटेड जैसे यूपी में जनाधार विहीन दल से चुनाव मैदान में उतरे कुंवर सर्वराज सिंह को 2004 में तीसरी बार लोकसभा पहुंचा दिया। इस क्षेत्र में अभी तक 14 चुनाव हुए हैं जिसमें से 9 बार क्षत्रिय सांसद जीता है।
बसपा के खाते में गई है सीट आंवला लोकसभा सीट इस बार गठबंधन में बसपा के खाते में गई है। जबकि यहाँ से तीन बार सांसद रह चुके कुंवर सर्वराज सिंह समाजवादी पार्टी की राजनीति कर रहे हैं। बसपा यहां से पिछड़ी जाति के किसी नेता को प्रत्याशी बनाना चाहती है। भाजपा से वर्तमान सांसद धर्मेंद्र कश्यप का मैदान में उतरना तय है। ऐसे में सर्वराज सिंह चुनाव लड़ेंगे या नहीं यह अभी तय नहीं है। अगर सर्वराज सिंह आंवला से चुनाव मैदान में नहीं उतरे तो ऐसा पहली बार होगा कि आजादी के बाद आंवला लोकसभा सीट के चुनाव में कोई दमदार क्षत्रिय प्रत्याशी चुनावी समर में नहीं होगा। अगर ऐसा हुआ तो इसे बरेली में क्षत्रिय राजनीति का बड़ा उलटफेर कहा जायेगा।