अलखनाथ मंदिर- नगर के वायव्य कोण पर किला इलाके में अलखनाथ मंदिर स्थित है। सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए और हिन्दुओं के जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए आनंद अखाड़े के अलखिया बाबा ने इस स्थान पर कठोर तप कर शिव भक्ति की ऐसी अलख जगाई कि मुस्लिम कटटरपंथियों को उनके आगे घुटने टेकने पड़े। इस मंदिर का नाम अलखनाथ मंदिर पड़ा।
धोपेश्वरनाथ मंदिर- नगर की पूर्व दक्षिण अग्निकोण में धोपेश्वरनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर को महाराजा द्रोपद के गुरु एवं अत्रि ऋषि के शिष्य धूम्र ऋषि ने कठोर तप कर सिद्ध किया। उनकी समाधि पर ही शिवलिंग की स्थापना हुई। उन्ही के नाम पर इस देवालय का नाम धूमेश्वरनाथ पड़ा, जो बाद में धोपेश्वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
बनखंडी नाथ मंदिर- जोगीनवादा इलाके में स्थित बनखंडी नाथ मंदिर पूरब दिशा में बना हुआ है। महारानी द्रोपदी ने अपने गुरु के आदेश पर यहां पर शिवलिंग स्थापित कर तप किया था। सघन वन होने के कारण इस देवालय का नाम बनखंडी नाथ मंदिर पड़ा।
तपेश्वरनाथ मंदिर- नगर की दक्षिण दिशा में सुभाषनगर में स्थित तपेश्वरनाथ मंदिर ऋषि मुनियों की तपोस्थली रहा है। कई साधु-संतों ने यहां तपस्या कर इस देवालय को सिद्ध किया है। इसी कारण ये स्थान तपेश्वरनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
धोपेश्वरनाथ मंदिर- नगर की पूर्व दक्षिण अग्निकोण में धोपेश्वरनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर को महाराजा द्रोपद के गुरु एवं अत्रि ऋषि के शिष्य धूम्र ऋषि ने कठोर तप कर सिद्ध किया। उनकी समाधि पर ही शिवलिंग की स्थापना हुई। उन्ही के नाम पर इस देवालय का नाम धूमेश्वरनाथ पड़ा, जो बाद में धोपेश्वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मढ़ीनाथ मंदिर- मढ़ीनाथ मोहल्ले में बना मढ़ीनाथ मंदिर नगर की पश्चिम दिशा में बना हुआ है। एक तपस्वी ने राहगीरों की प्यास बुझाने के लिए यहां पर कुआं खुदवाना शुरू किया। तभी यहां शिवलिंग प्रकट हुआ। जिस पर मढ़ीधारी सर्प लिपटा हुआ था। इसी कारण दिव्य स्थान का नाम मढ़ीनाथ पड़ा।