scriptDevshayani Ekadashi Chaturmas 2018 : आज से चार माह तक नहीं बजेगी शहनाई | Marriage will stop for four months from 23 july 2018 Devshayni Ekadash | Patrika News

Devshayani Ekadashi Chaturmas 2018 : आज से चार माह तक नहीं बजेगी शहनाई

locationबरेलीPublished: Jul 23, 2018 01:32:53 pm

Submitted by:

suchita mishra

Devshayni Ekadashi 2018 : 23 जुलाई को देवशयनी एकादशी है यानी आज से चातुर्मास मास शुरू हो गया है जो कि 19 नवंबर तक रहेगा।

jaipur

Dev Shayani Ekadashi

बरेली। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार आषाढ़ की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी व देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। भारतीय संस्कृति में देवशयन एकादशी से देवउठनी एकादशी के बीच के चार महीने स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्याधिक महत्वपूर्ण माने गए हैं। इनमें स्वास्थ्य हित में चेतावनी स्वरूप विविध प्रकार के व्रत, उपवास, पूजा और अनुष्ठान आदि करने के नियम बताए गये हैं। बाला जी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि चातुर्मास भगवान विष्णु का शयनकाल कहलाता है। इस दौरान विवाह आदि मांगलिक कार्य सम्पन्न नहीं किये जाते है। इस वर्ष 23 जुलाई से 19 नवम्बर तक चातुर्मास रहेगा।
चातुर्मास का विशेष महत्त्व
पंडित राजीव शर्मा के अनुसार चातुर्मास ईश वंदना का विशेष पर्व है। इस अवधि में उपवास का विशेष महत्व है, जिससे अनेक प्रकार ही सिद्धियां प्राप्त होती हैं। चातुर्मास में व्रत के दौरान श्रावण मास में शाक, भाद्रपद महीने में दही, अश्विन महीने में दूध एवं कार्तिक माह में दाल ग्रहण नहीं करना चाहिए। चातुर्मास का व्रत करने वाले व्यक्तियों को मांस, मधु, शैया, शयन का त्याग करना चाहिए। इस दौरान गुड़, तेल, दूध दही और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिये।
पुराणों के अनुसार जो भी व्यक्ति चातुर्मास में गुड़ का त्याग करता है उसे मधुर स्वर प्राप्त होता है। तेल का त्याग करने से पुत्र-पौत्र की प्राप्ति होती है। कड़वे तेल के त्याग से शत्रुओं का नाश होता है। घृत के त्याग से सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। शाक के त्याग से बुद्धि में वृद्धि होती, दही एवं दूध के त्याग से वंश वृद्धि होती है। नमक के त्याग से मनोवांछित कार्य पूर्ण होता है। चातुर्मास में भगवान विष्णु की आराधना विशेष रूप से की जाती है इस अवधि में पुरुष सूक्त, विष्णु सहस्त्रनाम अथवा भगवान विष्णु के विशेष मंत्रों द्वारा उनकी उपासना करनी चाहिए।

कैसे करें पूजन
देवशयन एकदशी पर भगवान विष्णु के विग्रह को पंचामृत से स्नान कराकर चन्दन, धूप-दीप आदि से पूजन करना चाहिए। उसके बाद सामर्थ्य के अनुसार चांदी, पीतल आदि की शय्या के ऊपर बिस्तर बिछाकर उस पर पीले रंग का रेशमी कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु को शयन करवाना चाहये।

देवशयन का वैज्ञानिक महत्व
देव शयन भगवान विष्णु का शयन माना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करने चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को उनका जागरण होता है। संस्कृत साहित्य में हरिः शब्द भगवान विष्णु, सूर्य, चन्द्र और वायु के लिए विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। इस समय प्रमुख शक्तियां सूर्य, चन्द्र, वायु आदि मंद पड़ जाते हैं और वातावरण में इनसे प्राप्त होने वाले तत्वों की कमी विज्ञान की दृष्टि से सिद्ध होती है। भगवान हरिः को सर्वव्यापी माना गया है शरीरस्थ तीन गुणों में सत्वगुण भगवान हरिः का प्रतिनिधि है एवं शरीर की सात प्रमुख धातुओं में पित्त को भी भगवान हरिः का प्रतिनिधि माना गया है। खगोलीय कारणो के अनुसार सूर्य कर्क राशि से लेकर अपनी नीच राशि तुला पर्यन्त भौतिक रूप से भारत के भू-भाग के लिए कमजोर रहते हैं।
चातुर्मास का ज्योतिषीय महत्व
चातुर्मास की शुरुआत सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश के साथ होती है। कर्क राशि जलीय राशि है और वर्षा ऋतु अपने यौवन पर चल रही होती है। सूर्य कर्क राशि के बाद शनैः शनैः अपनी तीव्रता कम करते हुए आगे बढते हैं और लगभग कार्तिक मास में पहुंचते पहुंचते अपनी नीच राशि तुला में प्रवेश कर जाते हैं। तुला राशिस्थ सूर्य ज्योतिष दृष्टि से कमजोर माने जाते हैं और प्राकृतिक दृष्टि से भी कमजोर होते हैं इसीलिए इन चार महीनों में छोटे-मोटे जीव-जन्तु बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं। चातुर्मास को एक शयन काल कहा जाता है इसलिए इस दिन भगवान को जलविहार कराया जाता है और झूला झुलाया जाता है। इसे दिन से धर्मिक नियम लागू हो जाते हैं कि नदियों व सरोवर में हरिः का वास हो गया है इसलिए इस जल का सावधानी पूर्वक उपयोग किया जाता है।
चातुर्मास की धार्मिकता
चातुर्मास की शुरुआत गुरूपूजन से होती है। जब लोग अपने गुरू या गुरूतुल्य व्यक्तियों के पास जाकर चौमासे में दिनचर्या एवं पूजा पाठ एवं खानपान के नियम रखने की आज्ञा लेते हैं। इस बार की विशेष बात यह है कि गुरू पूर्णिमा वाले दिन खग्रास चन्द्र ग्रहण दिनांक 27 जुलाई को रात्रि 11:54 मिनट से लग रहा है। अतः इस ग्रहण का सूतक दोपहर 2:54 बजे से लगेगा। इससे पूर्व गुरू पूर्णिमा के पूजा से सम्बन्धित सारे कार्य सूतक लगने से पहले सम्पन्न किये जाएंगे।
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