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नाबालिग लड़की की परिजन कर रहे थे शादी लेकिन लड़की बनना चाहती थी सैनिक, उसके बाद जो हुआ..

locationबरेलीPublished: Mar 06, 2019 02:49:25 pm

Submitted by:

jitendra verma

नाबालिग छात्रा की इस हिम्मत की हर कोई तारीफ़ कर रहा है।

बरेली। कक्षा आठ की छात्रा की हिम्मत ने उसे बालिका बहु बनने से बचा लिया। परिजन उसकी जबरन शादी करना चाहते थे लेकिन लड़की का सपना था कि वो सैनिक बन देश की सेवा करे इस लिए उसने कम उम्र में शादी से मना कर दिया लेकिन परिजन उसकी शादी पर अड़े रहे जिसके बाद लड़की ने जब रेडियो पर चाइल्ड हेल्प लाइन और महिला हेल्पलाइन का नंबर सुना तो उसने हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर दिया जिसके बाद लड़की की शादी रुक गई। फिलहाल 18 साल से पहले लड़की की शादी न करने की शर्त पर उसे पिता को सौंप दिया गया है। नाबालिग छात्रा की इस हिम्मत की हर कोई तारीफ़ कर रहा है।
25 फरवरी को होनी थी शादी

फरीदपुर के एक गाँव की रहने वाली नाबालिग लड़की कक्षा आठ की छात्रा है। छात्रा पढ़ लिख कर सैनिक बनना चाहती थी लेकिन लड़की के पिता ने उसे जिम्मेदारी मान कर डोली में विदा करने की सोची और लड़की को बगैर बताए उसका रिश्ता बदायूं के एक लड़के से तय कर दिया और शादी की तारीख भी तय कर दी गई। लड़की की शादी 25 फरवरी को होनी थी लेकिन इसके पहले ही जब अन्य रस्मे शुरू हुई तो लड़की को हकीकत पता चली जिस पर उसने शादी से इंकार कर दिया और पिता से आगे पढ़ाई जारी रखने की बात बताई। लड़की के पिता उसकी शादी कराने पर अड़ गए।
रेडियो पर सुना विज्ञापन

लड़की शादी को तैयार नहीं थी और उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था इस बीच उसने रेडियो पर चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 और महिला हेल्पलाइन 181 का विज्ञापन सुना और उसने हेल्पलाइन पर सम्पर्क कर मदद की गुहार लगाई। लड़की ने 21 फरवरी को अपनी शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद 22 फरवरी को सीडब्ल्यूसी ने लड़की का बाल विवाह रुकवाने का आदेश जारी कर दिया और चाइल्ड लाइन की टीम ने लड़के वालों से बात कर इस शादी को रुकवा दिया।
पिता को सौंपी गई लड़की

लड़की अपने पिता के साथ बाल कल्याण समिति के सामने बयान दर्ज कराने पहुंची और लड़की के बयान दर्ज करने के बाद उसे पिता को सौंप दिया गया है और पिता को हिदायत दी है कि वो 18 साल से पहले लड़की का विवाह न करें। कक्षा आठ की छात्रा द्वारा दिखाई गई ये हिम्मत उन लड़कियों के लिए मिसाल है जो चुप चाप अपने ऊपर हुए अत्याचार को सहन कर लेती हैं लेकिन अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाती है।
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