scriptजानिए सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या का महत्व, इन दिन ऐसे करें पिंडदान | Pitru Paksha Shradh Sarvapitra Moksha Amavasya 2017 in Hindi | Patrika News

जानिए सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या का महत्व, इन दिन ऐसे करें पिंडदान

locationबरेलीPublished: Sep 17, 2017 12:25:26 pm

इस बार सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या 19 सितंबर को है। इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितृों का श्राद्ध हो जाता है।

pitru paksha 2017

18 सितम्बर दिन मंगववार को चतुर्दशी का श्राद्ध एंव मास शिवरात्रि व्रत रहेगा।

बरेली। पितृपक्ष में सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या का बहुत महत्व है। इस तिथि पर सभी पितृों का श्राद्ध किया जा सकता है। यदि किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितृों का श्राद्ध करने से भूल गये हों या पितृों की तिथि याद नहीं हो तो इस तिथि पर श्राद्ध सम्पन्न किया जा सकता है।
19 सितंबर को है सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या
बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा के अनुसार इस बार सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या 19 सितंबर को है। इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितृों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ है उनका भी इस अमावस्या तिथि को श्राद्ध करना चाहिए। इस दिन पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र धारण करें। इस प्रकार श्राद्ध सम्पन्न करने से श्राद्ध करने वाले सभी मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अन्तकाल में स्वर्ग का उपभोग करते हैं।
पितृों को देवताओं की संज्ञा
ज्योतिषाचार्य के अनुसार धर्मग्रन्थों में पितृों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है। ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ ग्रन्थ के अनुसार चन्द्रमा की उर्ध्व कक्षा में पितृ लोक है। जहां पितृ रहते हैं। पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता है। जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता। मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आस-पास घूमता रहता है। श्राद्धकार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ती मिलती है। इसीलिए श्राद्धकर्म किया जाता है।
उन्होंने बताता कि शुभ कर्म के कारण मरकर पिता देवता बन गया हो तो श्राद्ध में दिया हुआ अन्न उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनी में प्राप्त होगा। यदि गन्धर्व बन गया हो तो वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है। पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करेगा। यदि नागयोनी मिली तो श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ती को प्राप्त होगा। दानव, प्रेत व यक्ष योनी मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना अन्न पान और भोग्य रसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करेगा।
श्राद्ध का पहला भोग कौओं को
ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध का पहला भोग कौओं को अवश्य चढ़ाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार पुराणों में कौए को देवपुत्र माना गया है, लोक कथा के अनुसार इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले इन्द्र का रूप धारण किया था। भगवान राम के अवतार लेने के बाद जब इन्द्र के पुत्र जयन्त ने कौए का रूप धारण कर माता सीता को घायल कर दिया था, तब भगवान श्री राम ने गुस्से में तिनके से ब्रह्मास्त्र चला कर जयन्त की आंख फोड़ दी थी। जब उसने अपने किये पर क्षमा याचना मांगी, तब भगवान श्री राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया हुआ भोग भोजन के रूप में पितृों को मिलेगा, विशेषतौर पर श्राद्ध पक्ष में, तभी से श्राद्ध पक्ष में कौओं को भोजन कराने की परम्परा चली आ रही है। इसके साथ ही एक रहस्य यह भी है कि कौआ शनिदेव का वाहन होने के उसकी प्रसन्नता पर शनिदेव का कुप्रभाव, शनिदेव की ढैय्या व साढ़े साती होने पर शनिदेव की शान्ति होती है। साथ ही पितृों के प्रसन्न होने पर पितृ दोष एवं काल सर्प योग भी किसी हद तक कम होता है। पंचग्रास में गाय, चींटी, कुत्ता, कौआ और अतिथि के ग्रास अवश्य निकालने चाहिए।
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