02 साल का नन्हा सा भूपेन्द्र (राजेन्द्र का बेटा) जिसके लिए नवंबर माह में ढेर सारे खिलौने लाने का वादा कर राजेन्द्र गया था, उसके खिलौने भी टूट गए। वीरांगना जमनाकंवर के सारे सपने आज उसके सामने बिखर गए। शहीद के दोनों भाइयों की बाजू कट गई।
घर की अधूरी छत जिसे नवंबर में बनाने का वादा करके गया था लेकिन यह भी अधूरा रह गया। शहीद राजेंद्र का परिवार बेटे की शहादत पर नाज तो कर रहा था, लेकिन उनका गम बहुत गहरा है।
राजेन्द्र के पिता सांवलसिंह सेना में थे इसलिए राजेन्द्र को बचपन से ही वर्दी से स्नेह हो गया। मां-बाप की मृत्यु के बाद घर का बड़ा बेटा होने के नाते उसकी जिम्मेदारी घर पर रहकर परिवार संभालने की थी लेकिन राजेन्द्र के लिए राष्ट्रसेवा का जज्बा पहले था।
राजेन्द्र सेना में भर्ती होने के बाद गांव आने पर सेना, राष्ट्रसेवा और देशभक्ति के किस्से कहानियों ने दोस्तों और परिवार के बीच में देश भक्ति का पाठ पढ़ाता था। बूढ़ी दादी ज्वारा कंवर ने जो उसे नैतिकता की कहानियां कही थी, राजेन्द्र उसे अब सेना की कहानियां बताकर गौरवान्वित करता रहा था।
अभिनंदन जैसी रख ली थी मूंछे राजेन्द्र ने अपनी मूंछे अभिनंदन की तरह बीते समय से रख ली थी। जैसलमेर की धरती का बांके जवान के चेहरे पर ये मूंछे खिल रही थी और जब पार्थिव देह लाई गई तो चेहरे की ऊर्जा देखते ही बन रही थी।
वीरता की कहानी सुनेंगी कई पीढि़यां राजेन्द्र की वीरता की कहानियां कई पीढि़यां सुनेंगी। गांव में सैनिक राजेन्द्र का शव तिरंगे में लेकर पहुंचे तो सैन्य अधिकारियों ने ग्रामीणों को बताया कि आतंकवादियों से राजेन्द्र ने वीरता के साथ मुकाबला किया। उसने अकेले ने तीन आतंकियों को दबोच लिया और खुखरी के वार से उनको घायल कर दिया।
आतंकियों को ढेर करने के लिए कड़ा मुकाबला किया और जान की परवाह नहीं की। शहीद राजेन्द का शौर्य ही था कि आंतकियों के मंसूबे नाकामयाब हो गए। सैनिक कहते रहे कि राजेन्द्र की वीरता की कहानियां जब तक सूरज-चांद रहेगा यहां सुनाई देगी….।