कलक्टे्रट परिसर
कलक्ट्रेट परिसर की लेखा शाखा में लंच का समय समाप्त हो चुका था। लेकिन एक भी कार्मिक नजर नहीं आया। सभी कुर्सियां खाली थी। कुछ लोग जरूर अपने काम के लिए यहां दिखे, लेकिन कार्मिक नहीं होने से निराश नजर आ रहे थे।
कार्मिक शाखा: दोपहर 2.43 बजे अपने नाम के बिल्कुल विपरीत नजर आ रही थी कार्मिक शाखा। यहां पर कोई कार्मिक दूर-दूर तक नहीं दिखा। लंच खत्म होने के बाद काफी समय बीत चुका था। लेकिन कर्मचारी यहां थे ही नहीं और आने का भी कोई भरोसा नहीं था।
कार्मिकों का यहां अकाल था। कुछ ग्रामीण इधर-उधर घूम रहे थे। पूछा तो बोले बाबूजी से मिलने आए हैं। गांव से आने में दोपहर हो गई। आगे दो दिन छुट्टी है, सरकारी कर्मचारियों का क्या कर सकते हैं, सब मनमर्जी से चलते हैं।
नगर परिषद परिसर विकास शाखा: अपराह्न 3.56 बजे
कार्मिकों का यहां कोई अता-पता नहीं था। अपनी समस्या और काम लेकर आने वाले लोग यहां खूब मिले। लेकिन उनके काम करे कौन, ऐसा यहां कोई नहीं दिखा। कुछ देर में लोग भी यहां से निकलते हुए नजर आए।
आरओ के कमरे पर ताला: शाम 4.05 बजे कार्यालय बंद होने में अभी काफी समय बचा था। लेकिन यहां तो आरओ के कमरे पर ताला लटका था। कोई आस-पास भी नहीं मिला कि पूछ सकते कि ताला क्यूं लगा है। नगर परिषद में सभी की अपनी मर्जी चलती है।