कोई पूछने वाला नहीं है कि ड्यूटी समय में कहां है? कइयों ने तो अपने हित के लिए रोजमर्रा ही गायब होने की आदत डाल ली है। कहने को बायोमेट्रिक मशीनें, रजिस्टर और अन्य माध्यमों से अंकुश है लेकिन वास्तव में निरंकुशता इस कदर हावी है कि सीटों पर कर्मचारी ठहरते नहीं और यह कहकर पल्ला झाड़ देते हैं कि वे इस कार्य से बाहर थे या उस कार्य से,जबकि निजी कार्य और घर पर आराम फरमाने के आदी हो रहे हंै। पत्रिका की लाइव रिपोर्ट…
बाड़मेर.जिला मुख्यालय के कलक्ट्रेट में जहां जिला कलक्टर खुद बैठते हैं शुक्रवार को लंच के बाद कार्मिक गायब थे। शनिवार और रविवार का अवकाश होने से शुक्रवार दोपहर बाद यहां कुर्सियां एेसे खाली होती हैं जैसे हॉफ-डे हो। कार्मिक ही नहीं कई अधिकारी भी यही करते हैं।
जिला मुख्यालय पर कार्यरत कई कार्मिक तो शुक्रवार को बालोतरा का सरकारी टूर तय रखते हैं। यहां से सुबह ही निकल जाते हैं और आधे दिन में काम निपटाकर आगे जोधपुर पहुंच जाते हैं। सरकारी खर्चे से शुक्रवार का दिन और उस पर आगे जाने की सहूलियत। पत्रिका टीम शुक्रवार दोपहर लंच के बाद कलक्ट्रेट सहित कई कार्यालयों में पहुंची तो खाली कुर्सियां इस स्थिति को बयां कर रही थी।
कलक्टे्रट परिसर
कलक्टे्रट परिसर
लेखा शाखा: दोपहर 2.42 बजे
कलक्ट्रेट परिसर की लेखा शाखा में लंच का समय समाप्त हो चुका था। लेकिन एक भी कार्मिक नजर नहीं आया। सभी कुर्सियां खाली थी। कुछ लोग जरूर अपने काम के लिए यहां दिखे, लेकिन कार्मिक नहीं होने से निराश नजर आ रहे थे।
कलक्ट्रेट परिसर की लेखा शाखा में लंच का समय समाप्त हो चुका था। लेकिन एक भी कार्मिक नजर नहीं आया। सभी कुर्सियां खाली थी। कुछ लोग जरूर अपने काम के लिए यहां दिखे, लेकिन कार्मिक नहीं होने से निराश नजर आ रहे थे।
कार्मिक शाखा: दोपहर 2.43 बजे अपने नाम के बिल्कुल विपरीत नजर आ रही थी कार्मिक शाखा। यहां पर कोई कार्मिक दूर-दूर तक नहीं दिखा। लंच खत्म होने के बाद काफी समय बीत चुका था। लेकिन कर्मचारी यहां थे ही नहीं और आने का भी कोई भरोसा नहीं था।
जिला परिषद: दोपहर 2.50 बजे
कार्मिकों का यहां अकाल था। कुछ ग्रामीण इधर-उधर घूम रहे थे। पूछा तो बोले बाबूजी से मिलने आए हैं। गांव से आने में दोपहर हो गई। आगे दो दिन छुट्टी है, सरकारी कर्मचारियों का क्या कर सकते हैं, सब मनमर्जी से चलते हैं।
कार्मिकों का यहां अकाल था। कुछ ग्रामीण इधर-उधर घूम रहे थे। पूछा तो बोले बाबूजी से मिलने आए हैं। गांव से आने में दोपहर हो गई। आगे दो दिन छुट्टी है, सरकारी कर्मचारियों का क्या कर सकते हैं, सब मनमर्जी से चलते हैं।
नगर परिषद परिसर विकास शाखा: अपराह्न 3.56 बजे
कार्मिकों का यहां कोई अता-पता नहीं था। अपनी समस्या और काम लेकर आने वाले लोग यहां खूब मिले। लेकिन उनके काम करे कौन, ऐसा यहां कोई नहीं दिखा। कुछ देर में लोग भी यहां से निकलते हुए नजर आए।
आरओ के कमरे पर ताला: शाम 4.05 बजे कार्यालय बंद होने में अभी काफी समय बचा था। लेकिन यहां तो आरओ के कमरे पर ताला लटका था। कोई आस-पास भी नहीं मिला कि पूछ सकते कि ताला क्यूं लगा है। नगर परिषद में सभी की अपनी मर्जी चलती है।