कलक्टर बंगलों में था बंकर,15 दिन तक नहीं सोए
बाड़मेरPublished: Oct 09, 2021 12:04:16 pm
कलक्टर बंगलों में था बंकर,15 दिन तक नहीं सोए थे: आईसी श्रीवास्तव- एसपी ने मुझे जगाया नहीं, लेने आए थे-पत्नी अर्चना श्रीवास्तव ने दिया था रेत से आग बुझाने का आइडिया-9 दिसंबर के बाद थम गई थी बमबारीसाक्षात्कार: पूर्व जिला कलक्टर आईसी श्रीवास्तव
कलक्टर बंगलों में था बंकर,15 दिन तक नहीं सोए
कलक्टर बंगलों में था बंकर,15 दिन तक नहीं सोए थे: आईसी श्रीवास्तव
– एसपी ने मुझे जगाया नहीं, लेने आए थे
-पत्नी अर्चना श्रीवास्तव ने दिया था रेत से आग बुझाने का आइडिया
-9 दिसंबर के बाद थम गई थी बमबारी
साक्षात्कार: पूर्व जिला कलक्टर आईसी श्रीवास्तव
बाड़मेर पत्रिका.
भारत-पाक 1971 के युद्ध का रणक्षेत्र बाड़मेर रहा था और बाड़मेर ने छाछरो फतेह का गौरव इसी रणभूमि से हासिल किया था। इस युद्धघोष और विजय उत्सव का सबसे बड़ा साक्षी व्यक्तित्व थे उस समय के जिला कलक्टर आईसी श्रीवास्तव। श्रीवास्तव अब सेवानिवृत्त है और बीकानेर आए हुए है। पत्रिका ने शुक्रवार को उनसे जब 1971 के युद्ध के संस्मरण साझा किए तो वास्तविक घटनाक्रम की एक पूरी तस्वीर सामने थी। उन्होंने कहा कि मैं उस समय और दिनों को जीवन में नहीं भूल सकता। मेरी पुस्तकों में इसका पूरा उल्लेख है।
पत्रिका- बाड़मेर उस समय कैसा था?
श्रीवास्तव- दिसंबर 1970 में मैने बाड़मेर कलक्टर का पदभार ग्रहण किया था और दिसंबर 1971 में युद्ध हुआ। उस समय रेलवे स्टेशन के सामने दो सिनेमाघर थे। बाड़मेर क्लब के पास में कलक्टर बंगलों और दूसरी तरफ पुलिस अधीक्षक का आवास था और सिनेमाघर के पीछे बस्ती हुआ करती थी। बाड़मेर शहर एक छोटा शहर था।
पत्रिका- 1971 के युद्ध को लेकर घटनाक्रम क्या हुआ?
श्रीवास्तव- 3 दिसंबर को बमबारी शुरू हो गई थी। पाकिस्तान ने महाबार(बाड़मेर) और गोपड़ी(पचपदरा) के तालाब पर बम फैंके थे। ब्लैक आऊट के कारण रात में अंधेरा था और गोपड़ी तालाब सूखा था और क्षारिय जमीन होने से चमक होने से यहां पर बम गिराए थे। महाबार में 20 के करीब बम गिरे थे, जिसमें से दो बम फट गए थे और शेष 18 नाकाम रहे थे।
पत्रिका- बाड़मेर शहर में युद्ध की स्थिति में क्या किया गया?
श्रीवास्तव- बाड़मेर शहर पूरे में माइक लगा दिए गए थे और हम कंट्रोलरूम में बैठकर अपील करते थे। पूरे शहर को ब्लैक ऑउट कर दिया गया था ताकि कोई बाहर नहीं निकले। कलक्टर बंगलो में बंकर बना दिए गए थे, जो गार्डरूम के पीछे की जगह है। वहां परिवार सहित रहता था। मेरा डेढ़ माह का बच्चा था।
पत्रिका- रेलवे स्टेशन पर बमबारी की घटना कैसे हुई?
श्रीवास्तव- 8 दिसंबर 1971 को रात्रि 8-9 बजे के बीच दो बार बमबारी रेलवे स्टेशन पर हुई थी। पुलिस अधीक्षक शांतनुकुमार जीप लेकर मेरे बंगलों आए थे। उनकी जीप में बैठकर हम रवाना हुए थे। मुझे जगाया नहीं था, वो लेने आए थे। हम दोनों जीप में सवार होकर वहां पहुंचे । रेलवे स्टेशन जल रहा था और बममारी के कारण आग लगी थी।
पत्रिका- कोई घटना जो देखकर आप एकदम से सिहर गए हों?
श्रीवास्तव- दूसरे दिन सुबह जब निरीक्षण किया तो एक सिक्ख सैनिक था। जिसका कंकाल या यों कहिए शरीर का एक हिस्सा पड़ा था, जिसमें केवल घड़ी दिख रही थी। बम ने इस सैनिक की यह हालत कर दी थी, देखते ही सिहर उठे थे। इस हालत में पहली बार किसी सैनिक को देखा था।
पत्रिका- फिर किस तरह से स्थितियों को नियंत्रित किया गया?
श्रीवास्तव- आग को बुझाना पहला काम था। दोनों सिनेमाघर तक आग पहुंच जाती तो मुश्किल हो जाती, पीछे बस्ती थी। यहां गोदाम में डीजल के ड्रम भरे थे। आग बुझाने के लिए मेरी पत्नी अर्चना श्रीवास्तव ने एक सलाह दी कि नेपाम बम को मिट्टी से बुझाया जा सकता है, पानी से नहीं। फिर हमने तत्काल रेत का प्रबंध किया। उस वक्त बाड़मेर के लोगों ने ड्रम को धकेलकर बहादुरी के साथ में अलग किया था और रेल की बोगियों को भी, यह होने से बड़ा नुकसान होने से बच गया था।
पत्रिका-सुनने में आया कि आप भी बाल-बाल बचे थे?
श्रीवास्तव- 8 दिसंबर की रात को स्टेशन से वापस घर के लिए जा रहे थे। पुलिस अधीक्षक जीप मेरे साथ थे। टेलीफोन एक्सचेंज के आगे एक रेत से भरा ट्रक आ रहा था। घना अंधेरा था तो वह नजर नहीं आया। जैसे ही 10-12 फीट दूर रहा, अचानक एसपी की नजर पड़ी और उन्होंने जीप का स्टेयरिंग घुमाया। हमारी जीप सामने एक्सचेंज के खंभे से टकराई और हम बाल-बाल बच गए।
पत्रिका- पाकिस्तान ने बमबारी कैसे बंद की और हम जीते?
श्रीवास्तव- 9 दिसंबर को उत्तरलाई में हमारे मिग-19 विमान आ गए थे। पाकिस्तान के बदीन एयर स्टेशन से भारत पर हमला हो रहा था जो करीब 240 किमी दूर था। पाकिस्तान अमेरिका से लाए विमानों से यह हमला बोल रहा था और हमारे पास रूस से लिए आधुनिक मिग-19 आ गए थे। जैसे ही हमने जवाबी कार्यवाही की,उन्होंने बदीन से उड़ान भरना बंद कर दिया। इसके बाद हवाई हमला नहीं हुआ।
पत्रिका- विशेष घटनाक्रम जो आपको याद आता हों?
श्रीवास्तव- मुख्यमंत्री बरकतुल्लाहखां 9 दिसंबर को जैसलमेर आए हुए थे, वे बाड़मेर आना चाह रहे थे। मैने उनको एक दिन बाद आने का आग्रह किया, वे इसके लिए मान गए थे। परसराराम मदेरणा यहां के प्र्रभारी मंत्री थे, वे फील्ड में पहुंचकर प्रशासन को जानकारी देते थे। हम मुख्यमंत्री के साथ में हैलीकाप्टर से छाछरो (पाकिस्तान) गए थे। वहां उन्होंने छाछरो तहसील भवन पर तिरंगा फहराया था।
(जैसा कि पूर्व कलक्टर,आईसी श्रीवास्तव ने रतन दवे को बताया)