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रेतीले धोरों पर उगने वाली सेवण घास का अस्तित्व खतरे में, आखिर ऐसा क्यों? जानिए पूरी खबर

locationबाड़मेरPublished: Oct 25, 2021 08:13:02 pm

– पांच साल पहले कादरी ने किया शोध, फिर भी सेवण घास की उपयोगिता व संरक्षणा को लेकर सरकारी स्तर पर नहीं मिला सहयोग, सेवण घास पर लाखों पशुधन निर्भर

Barmer news

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बाड़मेर
भारत-पाक बॉर्डर के रेतीले धोरों पर लहराने वाली सेवण घास का अस्तित्व खतरे में है। पश्चिमी सरहद के बाड़मेर, जैसलमेर में अधिक मात्रा में होने वाली से सेवण घास को किंग ऑफ डेजर्ट के नाम पहचाना जाता है, लेकिन धीरे-धीरे सरकारी संरक्षण नहीं मिलने पर यह घास खत्म होने की कगार पर है। ऐसे में पशुधन पर निर्भर पशुपालकों को चिंता सता रही है। बाड़मेर जिले में वर्तमान में 55 लाख से अधिक दुधारु पशुधन है। बॉर्डर क्षेत्र के बाशिदों के लिए पशुधन ही आजीविका का बड़ा साधन है। साथ ही पशुधन रेतीले धोरों पर उगने वाली घास पर निर्भर रहता है, जिसमें सर्वाधिक सेवण घास महत्व रखती है।

शोध में यह कारण भी
पांच साल पहले अनुसंधान संस्थान कोजरी के शोध में सामने आया था कि इंदिरा गांधी नहर आने के बाद मिट्टी आद्र्र हो गई। साथ ही ट्रेक्टर चलने से सेवण का पौधा जड़ से उखडऩे लगा था। साथ ही पश्चिमी सरहद पर लगातार अकाल होने से पशुओं ने ज्यादा चराई की गई। हालांकि उसके बाद कोई शोध नहीं किया गया।

किंग ऑफ डेेजर्ट नाम से प्रसिद्ध
रेगिस्तान में वनस्पति बहुत कम मिलती है जो भी होती है, वह कंटीली होती है। पोषण लायक वनस्पति नहीं होने से रेगिस्तान में दूर-दूर तक जीव नहीं मिलते हैं, लेकिन सेवण घास सामान्य घास की तरह हरी व पौष्टिक होती है। यह 10 साल तक स्टोर करके रखने के बावजूद खराब नहीं होती है। इसलिए यह घास किंग ऑफ डेजर्ट के नाम से प्रसिद्ध है।

पशुधन के लिए पौष्टिक आहर
यह घास रेगिस्तान क्षेत्र में गाय, भैंस, भेड़, बकरी व अन्य पशुधन के लिए प्रकृति जन्य पौष्टिक आहार है। अकाल के दौरान यह आहर गाय के लिए काफी फायदेमंद है। साथ ही बॉर्डर क्षेत्र के रेतीले धोरों पर ज्यादा होने पर पशुपालकों राहत मिलती है।

फैक्ट फाईल
गाय – 7 लाख 88 हजार
भैंस – 2 लाख 14 हजार
बकरी – 28 लाख 96 हजार
भेड़ – 14 लाख

सरकारी स्तर पर संरक्षण मिले
सीमावर्ती गांवों में सेवण घास बड़े स्तर पर होती थी। वर्तमान में यह घास खत्म हो रही है। इसके शोध के लिए मैंने कई बार केन्द्र व राज्य सरकार को लिखा है। सरकारों को इसके संरक्षण को लेकर सकारात्मक प्रयास करने चाहिए, ताकि पशुधन के लिए यह घास रह सके। सीमावर्ती गांवों में पशु सेवण घास पर निर्भर है। – आलोक सिंगल, गौ-भक्त
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