बच्चों का एकाकीपन दूर हों, समझ विकसित हों, परिवार समय दें और एक तीसरी आंख रखें जो यह ध्यान रखें कि बच्चे की संगत और दिनचर्या कैसी है? पत्रिका ने गुड टच और बेड टच मुद्दे पर टॉक शो में बुधवार को किसान छात्रावास में विभिन्न क्षेत्र से जुड़े लोगों से खुलकर बात की। सभी ने इसके लिए सराहा कि पत्रिका ने अच्छे मुद्दे पर पहल करके समझ को विकसित करने का कदम उठाया है।
मंथन में आए सुझाव गलत, तो करे विरोध
– विद्यार्थी सचेत होने चाहिए। उनको तय करना है कि क्या गलत है और क्या सही। कुछ गलत हों तो उसका विरोध करने की हिम्मत हों। आंखों में रंग दिखना चाहिए। परिपक्वता और जागरुकता से ही इस बात को समझा जाएगा।
– विद्यार्थी सचेत होने चाहिए। उनको तय करना है कि क्या गलत है और क्या सही। कुछ गलत हों तो उसका विरोध करने की हिम्मत हों। आंखों में रंग दिखना चाहिए। परिपक्वता और जागरुकता से ही इस बात को समझा जाएगा।
– अमृताकौर, वार्डन किसान कन्या छात्रावास
एकाकीपन दूर हो -मोबाइल का उपयोग बढ़ रहा है। मां बच्चे की प्रथम गुरु है, वो इस बात का ख्याल रखे कि बच्चा क्या देख रहा और सीख रहा है। उसके एकाकीपन को दूरते हुए उससे बात करनी होगी।
– अल्पना अग्रवाल, सीडब्ल्यूसी सदस्य
एकाकीपन दूर हो -मोबाइल का उपयोग बढ़ रहा है। मां बच्चे की प्रथम गुरु है, वो इस बात का ख्याल रखे कि बच्चा क्या देख रहा और सीख रहा है। उसके एकाकीपन को दूरते हुए उससे बात करनी होगी।
– अल्पना अग्रवाल, सीडब्ल्यूसी सदस्य
डरें नहीं आगे आकर कहें
दस में से एक मामला पुलिस तक आता है। नौ मामले में लोग बताते ही नहीं। एक डर बैठा हुआ है कि बताएंगे तो बात बाहर आएगी और इज्जत का सवाल है। डर को निकाले और खुलकर अपनी बात कहें। इससे अपराध रुकेंगे।
दस में से एक मामला पुलिस तक आता है। नौ मामले में लोग बताते ही नहीं। एक डर बैठा हुआ है कि बताएंगे तो बात बाहर आएगी और इज्जत का सवाल है। डर को निकाले और खुलकर अपनी बात कहें। इससे अपराध रुकेंगे।
– जेठमल जैन, अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता
परिवार बने दोस्त बच्चों का दोस्त परिवार होना चाहिए न कि मोबाइल और टीवी। परिवार जितना ज्यादा वक्त देगा बच्चा उतना ही रिश्तों और भावनाओं को समझेगा। वह सही और गलत को परिवार से ही समझ पाएगा।
– सुमेर सोलंकी, सामाजिक कार्यकर्ता
परिवार बने दोस्त बच्चों का दोस्त परिवार होना चाहिए न कि मोबाइल और टीवी। परिवार जितना ज्यादा वक्त देगा बच्चा उतना ही रिश्तों और भावनाओं को समझेगा। वह सही और गलत को परिवार से ही समझ पाएगा।
– सुमेर सोलंकी, सामाजिक कार्यकर्ता
खुलकर बात करें
बच्चा स्कूल से घर आए तो उससे खुलकर बात करें। बातों ही बातों में काउंसलिंग हो जाएगी कि किसके साथ बैठता-बैठता है। कौन उसके दोस्त है। तब यह भरोसा हो जाएगा कि सबकुछ ठीक है।
बच्चा स्कूल से घर आए तो उससे खुलकर बात करें। बातों ही बातों में काउंसलिंग हो जाएगी कि किसके साथ बैठता-बैठता है। कौन उसके दोस्त है। तब यह भरोसा हो जाएगा कि सबकुछ ठीक है।
– डॉ. ललिता मेहता, प्राचार्य गल्र्स कॉलेज
समझ बढ़ानी होगी यह गंभीर है कि हमें सोचना पड़ रहा है और वो भी गुड टच बेड टच पर। मोबाइल और टीवी को नहीं रोक सकते हैं। बच्चों को इस अनुरूप समझाइश करनी होगी। माहौल देना होगा कि उनके लिए क्या ठीक है। यही इसका समाधान है।
– राजेन्द्रङ्क्षसह राठौड़, राजनीतिक विश्लेषक
समझ बढ़ानी होगी यह गंभीर है कि हमें सोचना पड़ रहा है और वो भी गुड टच बेड टच पर। मोबाइल और टीवी को नहीं रोक सकते हैं। बच्चों को इस अनुरूप समझाइश करनी होगी। माहौल देना होगा कि उनके लिए क्या ठीक है। यही इसका समाधान है।
– राजेन्द्रङ्क्षसह राठौड़, राजनीतिक विश्लेषक
जागरुकता लानी होगी
इसके लिए जागरुकता जरूरी है। स्कूल, परिवार और समाज सभी इस बात को लेकर गंभीर हो जाए कि वास्तव में गलत क्या हो रहा है। उस गलत को रोकने की दरकार है। अच्छी और बुरी दोनों बातों को बच्चों के साथ साझा करना जरूरी है।
इसके लिए जागरुकता जरूरी है। स्कूल, परिवार और समाज सभी इस बात को लेकर गंभीर हो जाए कि वास्तव में गलत क्या हो रहा है। उस गलत को रोकने की दरकार है। अच्छी और बुरी दोनों बातों को बच्चों के साथ साझा करना जरूरी है।
– रामकुमार जोशी, सदस्य बाल कल्याण समिति
खुलकर आना होगा सामने जितने भी मामले दुष्कर्म और अन्य तरह के होते हैं समाज के दबाव, राजनीतिक प्रेसर और अन्य कारणों से दबा दिए जाते हैं। इन मामलों में राजीनामा हो जाता है। अपराध का राजीनामा कहां तक ठीक है।
– नरपतराज मूढ़, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष
खुलकर आना होगा सामने जितने भी मामले दुष्कर्म और अन्य तरह के होते हैं समाज के दबाव, राजनीतिक प्रेसर और अन्य कारणों से दबा दिए जाते हैं। इन मामलों में राजीनामा हो जाता है। अपराध का राजीनामा कहां तक ठीक है।
– नरपतराज मूढ़, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष
आंखों में रखे रंग
बेटियां खुद सक्षम बनें। आंखों में रंग रखें। कोई सामने देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। अपराधिक प्रवृत्ति के लोग तब बढ़ते हैं जब अपराध सहन करते है। किसी भी गलत बात का विरोध करना चाहिए।
बेटियां खुद सक्षम बनें। आंखों में रंग रखें। कोई सामने देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। अपराधिक प्रवृत्ति के लोग तब बढ़ते हैं जब अपराध सहन करते है। किसी भी गलत बात का विरोध करना चाहिए।
– जीतू चौधरी, महासचिव गल्र्स कॉलेज
स्कूल की भूमिका बड़ी स्कूल बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं। आठ घंटे में बच्चे की हर गतिविधि शिक्षक समझते हैं और उसके घर के व्यवहार का भी पता करें। बच्चे का फीडबैक जब परिवार और स्कूल दोनेां के पास रहेगा तो अपराध नहीं हो सकता।
स्कूल की भूमिका बड़ी स्कूल बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं। आठ घंटे में बच्चे की हर गतिविधि शिक्षक समझते हैं और उसके घर के व्यवहार का भी पता करें। बच्चे का फीडबैक जब परिवार और स्कूल दोनेां के पास रहेगा तो अपराध नहीं हो सकता।
– वीराराम भुरटिया, शिक्षक संयुक्त परिवार की भूमिका निभाएं संयुक्त परिवारों का विघटन हो गया है। अब एकल में रहकर भी संयुक्त परिवार की भूमिका अभिभावक को निभानी होगी। बच्चों को समय देना होगा। असुरक्षा के माहौल में हम मूल से भटक गए है। मोबाइल-टीवी हिंसा और अश्लीलता परोस रहे हंै। इस दौर में हमें बच्चों को कैसा बनाना है यह हम समय देंगे तो तय होगा।
– रणवीरसिंह भादू, सामाजिक कार्यकर्ता