इस दौरान गांवों में बाजरे का खीच और गळवाली के बनाई जाती है तो रियाण व सभा होती है जो सब मिलजूल कर खुशी मनाते हैं। इस बार एेसा नहीं हुआ, क्योंकि कोरोना का असर जो है। कोरोना के चलते गांव-गांव में बीमार लोग अस्पताल में भर्ती है जिस पर अधिकांश घरों में खुशियां गायब हो चुकी है। वहीं, बाकली लोग गांव के बीमार लोगों की चिंता में अपनों घरों में खुशियां नहीं मना पा रहे हैं। स्थिति यह है कि हाळी अमावस्या पर गांवों में इस बार हळ भी नहीं चले जबकि पूर्व में छोटे बच्चे तैयार होकर हळ जोत अच्छे जमाने की आस करते थे। हालांकि प्रतीकात्मक तौर पर कहीं-कहीं हळ चले जरूर लेकिन घर के ही दो-चार बच्चों के साथ यह औपचारिकता की गई। आखातीज का भी नहीं उत्साह- तीन दिन बाद आखातीज का त्योहार है।
आखातीज किसानों का सबसे बड़ा पर्व होता है। किसान सुबह तैयार होकर खेतों की ओर रुख करते हैं तथा घरों में परम्परागत खीच, गुळवाणी बनती है। जिसको रियाण में एक-दूसरे को परोसा जाता है। अबकी बार कोरोना के डर से लोग रियाण कर नहीं रहे और खीच, गुळवाणी एक-दूसरे को देने में भी परहेज बरत रहे हैं। शादियों की धूम ना बैंड-बाजे- अमूमन आखातीज को अबुझ सर्वश्रेष्ठ सावा माना जाता है।
एेसे में गांवों में सैकड़ों की तादाद में शादी-विवाह का आयोजन होता है। गली-गली में ढोल-थाली के साथ मंगल गीत गाए जाते हैं। वहीं, शहरों में बैंड-बाजों की गूंज सुनाई देती है। इस बार सरकार ने विवाह आयोजन पर रोक लगा रखी है जिस पर शादियां हैं ना ही कोई आयोजन।