scriptहाळी अमावस्या की खुशियां ना आखातीज का उत्साह | Happiness of the new moon, not the enthusiasm of the Akashij | Patrika News

हाळी अमावस्या की खुशियां ना आखातीज का उत्साह

locationबाड़मेरPublished: May 13, 2021 01:03:53 am

Submitted by:

Dilip dave

कोरोना के चलते फीका पड़ा त्योहारों का रंग- गांव में रियाण ना मेल मिलाप,

हाळी अमावस्या की खुशियां ना आखातीज का उत्साह

हाळी अमावस्या की खुशियां ना आखातीज का उत्साह

बाड़मेर. कोरोना का असर त्योहारों पर इस बार नजर आ रहा है। मंगलवार को हाळी अमावस्या पर न तो वैसी खुशियां नजर आई ना ही आखातीज को लेकर अभी उत्साह है। लोग घरों में रह रहे हैं और रियाण, सभाएं बंद हो चुकी है। मिलजूल कर त्योहार मनाना तो दूर एक-दूसरे से मिलने से भी परहेज बरता जा रहा है। वहीं, हाळी अमावस्या पर इस बार हळ भी कम चले। किसानों का त्योहार हाळी अमावस्या मंगलवार का था। इस पर्व को लेकर गांव-गांव किसानों में उत्साह रहता है, क्योंकि सकू न विचार किया जाता है।
इस दौरान गांवों में बाजरे का खीच और गळवाली के बनाई जाती है तो रियाण व सभा होती है जो सब मिलजूल कर खुशी मनाते हैं। इस बार एेसा नहीं हुआ, क्योंकि कोरोना का असर जो है। कोरोना के चलते गांव-गांव में बीमार लोग अस्पताल में भर्ती है जिस पर अधिकांश घरों में खुशियां गायब हो चुकी है। वहीं, बाकली लोग गांव के बीमार लोगों की चिंता में अपनों घरों में खुशियां नहीं मना पा रहे हैं। स्थिति यह है कि हाळी अमावस्या पर गांवों में इस बार हळ भी नहीं चले जबकि पूर्व में छोटे बच्चे तैयार होकर हळ जोत अच्छे जमाने की आस करते थे। हालांकि प्रतीकात्मक तौर पर कहीं-कहीं हळ चले जरूर लेकिन घर के ही दो-चार बच्चों के साथ यह औपचारिकता की गई। आखातीज का भी नहीं उत्साह- तीन दिन बाद आखातीज का त्योहार है।
आखातीज किसानों का सबसे बड़ा पर्व होता है। किसान सुबह तैयार होकर खेतों की ओर रुख करते हैं तथा घरों में परम्परागत खीच, गुळवाणी बनती है।

जिसको रियाण में एक-दूसरे को परोसा जाता है। अबकी बार कोरोना के डर से लोग रियाण कर नहीं रहे और खीच, गुळवाणी एक-दूसरे को देने में भी परहेज बरत रहे हैं। शादियों की धूम ना बैंड-बाजे- अमूमन आखातीज को अबुझ सर्वश्रेष्ठ सावा माना जाता है।
एेसे में गांवों में सैकड़ों की तादाद में शादी-विवाह का आयोजन होता है। गली-गली में ढोल-थाली के साथ मंगल गीत गाए जाते हैं। वहीं, शहरों में बैंड-बाजों की गूंज सुनाई देती है। इस बार सरकार ने विवाह आयोजन पर रोक लगा रखी है जिस पर शादियां हैं ना ही कोई आयोजन।
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