खुद का पोषण आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों का कितना पोषण हो रहा है, किसी से छिपा नहीं है। लेकिन इस पोषण की आड़ में प्रशिक्षण, सेमिनार व भ्रमण के नाम पर खूब सरकारी धन लुटाया जा रहा है। पत्रिका टीम ने जिले के विभिन्न परियोजना अधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं से बात की तो अधिकांश ने स्टॉफ की कमी, कम मानदेय व सुविधाओं की कमी पर तो चर्चा की लेकिन पोषाहार व इसके महत्व पर उनका डिब्बा भी गोल मिला।
इस तरह के हैं हालात
इस तरह के हैं हालात
एक-एक परियोजना में वर्ष भर में करीब चार लाख रुपए भ्रमण व प्रशिक्षण पर व्यय हो रहे हैं। इसकी एक बानगी सिणधरी में 21 से 28 मार्च 2017 तक आयोजित प्रशिक्षण में मिल जाएगी। अलग-अलग स्टेशनों पर 660 संभागियों के लिए चाय,नाश्ता व खाने की व्यवस्था की गई। कागजों में उपस्थिति अधिकांश की दर्ज हो गई और यहां 77880 रुपए का बिल उठ गया। महालक्ष्मी महिला स्वयं सहायता समूह हाई स्कूल सिणधरी को इसका भुगतान किया गया।
16 परियोजनाएं, 13 में पद रिक्त
16 परियोजनाएं, 13 में पद रिक्त
बच्चों व महिलाओं के पोषण में लगा विभाग स्वयं कुपोषित है। जिले में अभी 16 परियोजनाए हैं, जिनमें से 13 में परियोजना अधिकारियों के पद रिक्त है। ऐसे में जैसे-तैसे अतिरिक्त कार्यभार देकर काम चलाया जा रहा है। जाहिर है कि ऐसे में मॉनिटरिंग भी प्रभावित हो रही है।
70 हजार बच्चे कुपोषित
70 हजार बच्चे कुपोषित
पोषण का दावा और उसमें करोड़ों के खर्चे के बावजूद जिले में कुपोषित बच्चों का आंकड़ा नहीं थम रहा है। जिले में फिलहाल ऐसे करीब 80 हजार बच्चे हैं, जिनका वजन सामान्य से कम है। हालांकि अति कुपोषित बच्चों की संख्या बेहद कम है।