सात दिन से घर नहीं
डॉ. विक्रमसिंह भरतपुर से है, वे यहां उस चिकित्सक टीम में शामिल है, जो आइसोलेशन वार्ड का जिम्मा संभाल रही है, जिसमें संदिग्ध मरीज भर्ती है। इन मरीजों के सेहत की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सात दिन की ड्यूटी के दौरान घर का रुख तक नहीं किया है। घर में डेढ़ साल की मासूम बिटिया और बीबी से दूरी पीड़ा दायक थी, लेकिन जज्बा इस बात का कि बाड़मेर को कोरोना के कहर से बचाना है। उनके अनुसार बाड़मेरवासी अनुशासित है, लेकिन अभी भी कोरोना को लेकर लापरवाही बरतना ठीक नहीं होगा।
डॉ. विक्रमसिंह भरतपुर से है, वे यहां उस चिकित्सक टीम में शामिल है, जो आइसोलेशन वार्ड का जिम्मा संभाल रही है, जिसमें संदिग्ध मरीज भर्ती है। इन मरीजों के सेहत की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सात दिन की ड्यूटी के दौरान घर का रुख तक नहीं किया है। घर में डेढ़ साल की मासूम बिटिया और बीबी से दूरी पीड़ा दायक थी, लेकिन जज्बा इस बात का कि बाड़मेर को कोरोना के कहर से बचाना है। उनके अनुसार बाड़मेरवासी अनुशासित है, लेकिन अभी भी कोरोना को लेकर लापरवाही बरतना ठीक नहीं होगा।
परिवार और ड्युटी में सामंजस्य
पुष्पा का ससुराल ईसरोल में है, वे संविदाकर्मी हैं और दो-ढाई से अस्पताल में सेवा दे रही हैं। उनके सामने फर्ज और परिवार को लेकर पहले ऐसा संकट नहीं आया जैसा अब आया है। हालांकि अस्पताल में मरीज कम हुए हैं, लेकिन ड्यूटी कम नहीं हुई। ऐसे में उन्हें हर रोज अस्पताल आना पड़ता है। उनके दो मासूम बिटिया हैं। लॉक डाउन नहीं होने पर वे आसानी से आ-जा सकती थी, लेकिन अब पति मोटरसाइकिल पर उसे छोडऩे-लेने आते हैं। कई बार पुलिस के पहरे से पति को दिक्कत होती है, ऐसे में बच्चों को अपने पीहर जालीपा में नानी के पास छोड़ कर वे डयूटी निभा रही है। पति का काम लॉक डाउन के चलते छूट गया है, ऐसे में परिवार के लिए आर्थिक संबल भी पुष्पा का मानदेय ही है।
नि:शक्त लेकिन हिदायत की सख्ती
काम कम हुआ पर डयूटी नहीं- कोरोना वायरस के चलते उषा जैन का डयूटी कार्य थोड़ा कम हुआ है। वे बच्चों के वार्ड में टीकाकरण का कार्य करती हैं। हालांकि वे हर दिन की तरह अस्पताल आती है और यहां आने वाले मरीजों को कोरोना वायरस को लेकर जागरूक करती है। मास्क नहीं लगाने वालों को सख्त हिदायत देती हैं कि लापरवाही ना बरतें। बेटा-बेटी कॉलेज व उच्च कक्षा में पढ़ते हैं, उनको खाना बना कर खिलाने के बाद अस्पताल आती है। दोपहर तीन बजे डयूटी खत्म होने पर घर जाती हैं। नि:शक्त होने के बावजूद उनके जज्बे में कोई कमी नहीं है।
पुष्पा का ससुराल ईसरोल में है, वे संविदाकर्मी हैं और दो-ढाई से अस्पताल में सेवा दे रही हैं। उनके सामने फर्ज और परिवार को लेकर पहले ऐसा संकट नहीं आया जैसा अब आया है। हालांकि अस्पताल में मरीज कम हुए हैं, लेकिन ड्यूटी कम नहीं हुई। ऐसे में उन्हें हर रोज अस्पताल आना पड़ता है। उनके दो मासूम बिटिया हैं। लॉक डाउन नहीं होने पर वे आसानी से आ-जा सकती थी, लेकिन अब पति मोटरसाइकिल पर उसे छोडऩे-लेने आते हैं। कई बार पुलिस के पहरे से पति को दिक्कत होती है, ऐसे में बच्चों को अपने पीहर जालीपा में नानी के पास छोड़ कर वे डयूटी निभा रही है। पति का काम लॉक डाउन के चलते छूट गया है, ऐसे में परिवार के लिए आर्थिक संबल भी पुष्पा का मानदेय ही है।
नि:शक्त लेकिन हिदायत की सख्ती
काम कम हुआ पर डयूटी नहीं- कोरोना वायरस के चलते उषा जैन का डयूटी कार्य थोड़ा कम हुआ है। वे बच्चों के वार्ड में टीकाकरण का कार्य करती हैं। हालांकि वे हर दिन की तरह अस्पताल आती है और यहां आने वाले मरीजों को कोरोना वायरस को लेकर जागरूक करती है। मास्क नहीं लगाने वालों को सख्त हिदायत देती हैं कि लापरवाही ना बरतें। बेटा-बेटी कॉलेज व उच्च कक्षा में पढ़ते हैं, उनको खाना बना कर खिलाने के बाद अस्पताल आती है। दोपहर तीन बजे डयूटी खत्म होने पर घर जाती हैं। नि:शक्त होने के बावजूद उनके जज्बे में कोई कमी नहीं है।