इन सबके अलग-अलग कत्र्तव्य एवं व्यवहार शैली है। हम सांसारिक अनेक कर्तव्य को निभाना अच्छी तरह जानते हैं परंतु हमारे हृदय में यह विचार आना भी उतना ही जरूरी है कि हमारा, अपने शासन के प्रति क्या कत्र्तव्य है? संसार में धन, वैभव, मद आदि की प्रधानता है। जबकि हमारे शासन में त्याग की, वैराग्य की प्रधानता है। हमें धनवान नहीं, गुणवान बनना है। मुनि के सानिध्य में बाड़मेर शहर में प्रथम बार 171 जोड़ों के साथ श्री कल्याण मन्दिर महापूजन का आयोजन हुआ।
साधना भवन…
आचार्य कवीन्द्रसागरसूरीश्वर व मुनि कल्पतरूसागर की निश्रा में चातुुर्मास के दौरान दैनिक प्रवचन में दादा आर्यरक्षितसूरी की गुणानुराग सभा का आयोजन हुआ। आचार्य श्री ने कहा कि जैनशासन में तत्वत्रयी देव, गुरुऔर धर्म का विशेष स्थान है। भगवान महावीर धर्मतीर्थ की स्थापना किए हुए 2600 वर्ष से अधिक हो गए हैं। उनके बताए मार्ग को जीवंत रखने और पहचान बनाने वाले महापुरुष दादा आर्यरक्षितसूरि है। आज उनकी 939 वीं जन्मतिथि है। आचार्य कवीन्द्रसागरसूरीश्वर ने दादा आर्यरक्षितसूरि के जीवन पर प्रकाश डाला।
आचार्य कवीन्द्रसागरसूरीश्वर व मुनि कल्पतरूसागर की निश्रा में चातुुर्मास के दौरान दैनिक प्रवचन में दादा आर्यरक्षितसूरी की गुणानुराग सभा का आयोजन हुआ। आचार्य श्री ने कहा कि जैनशासन में तत्वत्रयी देव, गुरुऔर धर्म का विशेष स्थान है। भगवान महावीर धर्मतीर्थ की स्थापना किए हुए 2600 वर्ष से अधिक हो गए हैं। उनके बताए मार्ग को जीवंत रखने और पहचान बनाने वाले महापुरुष दादा आर्यरक्षितसूरि है। आज उनकी 939 वीं जन्मतिथि है। आचार्य कवीन्द्रसागरसूरीश्वर ने दादा आर्यरक्षितसूरि के जीवन पर प्रकाश डाला।
जैन न्याति नोहरा…
इस संसार की सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि हम प्रतिक्षण जीवन को खोते हैं लेकिन इसके बाद भी मृत्यु के बारे में नहीं सोचते। सृष्टि के विधान में जन्म के साथ मृत्यु का अनिवार्य योग निश्चित है। महापुरुषों का कहना है कि मृत्यु की भी उपयोगिता है इसीलिए ईश्वर ने मृत्यु का विधान रचकर प्राणिमात्र पर बड़ा उपकार किया है। मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, उसे टाला नहीं जा सकता है, वह तो अवश्यम्भावी है। काल के आगे सभी बेबस हो जाते हैं, किसी का कोई वश नहीं चलता। साध्वी सुरंजनाश्री की निश्रा में चातुर्मासिक कार्यक्रम के तहत आयोजित ‘क्या करोगे तब, जब प्राण तन से निकले।
इस संसार की सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि हम प्रतिक्षण जीवन को खोते हैं लेकिन इसके बाद भी मृत्यु के बारे में नहीं सोचते। सृष्टि के विधान में जन्म के साथ मृत्यु का अनिवार्य योग निश्चित है। महापुरुषों का कहना है कि मृत्यु की भी उपयोगिता है इसीलिए ईश्वर ने मृत्यु का विधान रचकर प्राणिमात्र पर बड़ा उपकार किया है। मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, उसे टाला नहीं जा सकता है, वह तो अवश्यम्भावी है। काल के आगे सभी बेबस हो जाते हैं, किसी का कोई वश नहीं चलता। साध्वी सुरंजनाश्री की निश्रा में चातुर्मासिक कार्यक्रम के तहत आयोजित ‘क्या करोगे तब, जब प्राण तन से निकले।
संवेदना के कार्यक्रम में चैन्नई से आए मोहनभाई गुलेच्छा ने स्थानीय जैन न्याति नोहरा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संगीतमय संवेदना के माध्यम से समझाते हुए कहा कि संसार के सबसे अधिक समृद्ध अथवा सर्वोच्च सत्ता-संपन्न व्यक्ति भी मृत्यु से मुक्ति पाने में समर्थ नहीं है। कोई भी मृत्यु को नहीं जीत सकता और कोई जीत भी ले तो यह उसके लिए सबसे बड़ी हार ही हो सकती है। मृत्यु पर विजय या अमरत्व की कल्पना वरदान नहीं, अभिशाप ही हो सकती है। एक ऐसे समय में जहां विज्ञान व्यक्ति को अमर बनाने की मुहिम में जुटा है, सबसे अहम सवाल यही है कि क्या यह अमरता इंसान के लिए एक सीमा के बाद भयानक साबित नहीं होगी? अभी तक चले आ रहे जीवन को और उसके किसी भी पक्ष को हम ठीक से संभाल नहीं सकते, मगर फिर भी खुद को अक्षुण और अमर बनाए रखना चाहते हैं। आखिर क्यों? जरूरत है जीवन और मृत्यु की शाश्वत परम्परा को स्वीकारते हुए मृत्यु की ओर बढ़ते हर क्षण को पुण्य का प्रेरक बनाए।
जसाई में शिव महापुराण कथा…
बाड़मेर. जसाई स्थित हिंगलाज धाम में शिव महापुराण कथा में स्वामी प्रताप पुरी ने कहा की जिसके हृदय में श्रद्धा होती है वह ईश्वर कृपा अवश्य प्राप्त करता है। मनुष्य जीवन कर्म प्रधान है। बाकी योनियां भोग प्रधान है। मानव जीवन में कर्म करके इसे सफल बनाना हमारे हाथ में है। हमें प्रकृति का भोग त्याग के साथ करना चाहिए।
बाड़मेर. जसाई स्थित हिंगलाज धाम में शिव महापुराण कथा में स्वामी प्रताप पुरी ने कहा की जिसके हृदय में श्रद्धा होती है वह ईश्वर कृपा अवश्य प्राप्त करता है। मनुष्य जीवन कर्म प्रधान है। बाकी योनियां भोग प्रधान है। मानव जीवन में कर्म करके इसे सफल बनाना हमारे हाथ में है। हमें प्रकृति का भोग त्याग के साथ करना चाहिए।