scriptइधर छात्रों की मजबूरी, उधर परिजन भी असमंजस में | Many students are leave courses due allocation second district for BEd | Patrika News

इधर छात्रों की मजबूरी, उधर परिजन भी असमंजस में

locationबाड़मेरPublished: Jul 26, 2019 06:35:44 pm

Submitted by:

Ratan Singh Dave

– बीएड के लिए दूसरे जिले आवंटित होने से बढ़ा खर्च
– कई विद्यार्थी पाठ्यक्रम छोडऩे को मजबूर

बाड़मेर. चार वर्षीय स्नातक के साथ बीएड (इंटीग्रेटेड बीएड) के पाठ्यक्रम ने प्रदेश के लाखों चयनित विद्यार्थियों के सामने असमंजस पैदा कर दिया है। खुद के जिलों में सीट खाली होने के बावजूद चयनित छात्रों को वहां सीटें आवंटित नहीं की जा रही हैं। इस कारण शुल्क के अलावा अन्य खर्चे को जोड़ा जाए, तो प्रतिवर्ष एक लाख रुपए के करीब व्यय बैठ रहा है।
इस हिसाब से पूरा पाठ्यक्रम चार साल में चार लाख रुपए के करीब खर्च करवा देगा। बीएड तो ठीक है, लेकिन तीन साल स्नातक के लिए प्रतिवर्ष एक लाख का बड़ा खर्चा गरीब छात्रों को पाठ्यक्रम छोडऩे पर मजबूर कर रहा है। हाल ही में जारी हुई पहली सूची ने बाड़मेर जिले के छात्रों व अभिभावकों को खासा निराश किया है।
गडरारोड के नीरज भारती को पाली का कॉलेज मिला है। शहर के मयंक को हनुमानगढ़ का पीलीबंगा। ऐसे सैकड़ों छात्र हैं, जो परेशान हो रहे हैं।

छोटे से खर्चे को बना दिया पहाड़ सा
– बीएड करने की इच्छा अधिकांश छात्रों के मन में है और उनके परिजन भी यही चाहते हैं। राज्य सरकार ने स्नातक को भी इसमें शामिल भी कर दिया। आमतौर पर स्नातक के लिए खुद के जिले में पढऩे का मौका मिलने से महज 8-10 हजार रुपए का खर्चा होता है।
लेकिन साथ में बीएड की इच्छा और मजबूरी के कारण अब छात्र को दूसरे शहर जाना पड़ रहा है। इस कारण संबंधित छात्र के परिजन पर खासा आर्थिक भार आएगा। छात्रों और उनके परिजन का कहना है कि स्नातक के एक छोटे से खर्चे को पहाड़ सा बना दिया है।
गैरवाजिब इच्छा को बनाया कमाने का जरिया

– बाहरी जिलों से आने वाले विद्यार्थियों के एक लालच को कई बीएड कॉलेजों ने अपना ‘धंधाÓ बना लिया है। कॉलेजों ने छात्रों के अनुपस्थित रहने पर उपस्थिति दर्ज करने की गैरवाजिब इच्छा को पैसे कमाने का जरिया बना लिया है। इसके लिए वे हर साल की बंधी रकम भी वसूलते हैं। आशंका यह भी है कि यह ‘खेल’ इतना बढ़ गया है कि अब जानबूझकर अन्य जिलों में छात्रों को कॉलेज आवंटित किए जा रहे हैं।
छात्रों के मन में उठ रहा है सवाल

हर छात्र से प्राथमिकता मांगी गई कि वे कौनसे कॉलेज में पढऩा पसंद करेंगे। जाहिर है अपने-अपने जिले को सबने तरजीह दी। अब इन छात्रों को समझ में नहीं आ रहा है कि खुद के जिले में सीट खाली होने के बावजूद दूसरे जिले में इन्हें क्यों भेजा जा रहा है? ये सवाल काफ ी छात्रों और उनके परिजनों के मन में उठ रहा है।
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