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बीमार जमीन पर खड़ा हो रहा मेडिकल कॉलेज! आखिर एेसा क्यों, जानिए पूरी खबर

locationबाड़मेरPublished: Nov 14, 2017 11:53:09 am

– बेंटोनाइट से पहले ही जर्जर हो चुके हैं करोड़ों के भवन, जमीन पर एेहतियाती उपाय का दावा
 

barmer news

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भवानी सिंह राठौड़@बाड़मेर.
शहर में जालीपा रोड पर 230 करोड़ की लागत से जहां मेडिकल कॉलेज का भवन बनाया जा रहा है वहां की जमीन ही बीमार है। बेन्टोनाइट की परत की वजह से इस क्षेत्र में बने तीन भवन पहले ही जर्जर हो चुके हैं। हालांकि मेडिकल कॉलेज बनाने वालों का दावा कि बेंटोनाइट का इलाज किया गया है लेकिन हाल ही में बने कुछ और भवनों में भी दरारें आई हैं जिनमें इलाज का दावा हुआ था। वहां बना पॉलिटेक्निक महाविद्यालय इसका प्रत्यक्ष सबूत है। यहां 1993 में बना भवन जर्जर हो गया है। फिलहाल उसी में कक्षाएं लग रही हैं। वहीं वर्ष 2014 में 4 करोड़ की लागत से निर्मित भवन में भी दरारें आ गई हैं। इसी कारण अब तक इस भवन को उपयोग में भी नहीं लिया गया है।
कंपनी का दावा, तकनीकी सहयोग लिया
मेडिकल कॉलेज के भवन का निर्माण करने वाली कम्पनी के अनुसार उसे कार्यादेश मिलने के बाद काम शुरू करने पर बेन्टोनाइट की समस्या सामने आई थी। उसके बाद नक्शे में परिवर्तन किया गया। वहीं भवन निर्माण में खास तकनीक इस्तेमाल कर बेन्टोनाइट की खामी को दूर किया गया है।
क्यों चुना गया इस जमीन को
मेडिकल कॉलेज के लिए प्रशासन को जमीन मुख्य सड़क व शहर के पास उपलब्ध करवानी थी। जमीन भी कम से कम पचास बीघा चाहिए थी। इतनी जमीन अन्य कहीं नहीं मिलने पर यहीं का प्रस्ताव दिया गया। तब बेंटोनाइट की समस्या का उल्लेख नहीं हुआ। भवन का टेंडर हुआ और निर्माण की बात आई तो उल्लेख किया गया। जानकार बताते हैं इस कारण भवन निर्माण की लागत भी बढ़ाई गई है।
फैक्ट फाइल
– 230 करोड़ होगी भवन की लागत
– 50 बीघा जमीन पर बन रहा मेडिकल कॉलेज
– 2017 में होना है कार्य पूर्ण
– 100 सीटें होंगी मेडिकल कॉलेज में

क्या है बेंटोनाइट का दुष्प्रभाव
रिसाव या बरसात का पानी बेंटोनाइट की परत होने पर भूमि में उससे नीचे नहीं जा सकता। धीरे-धीरे उसका स्तर बढ़ता है और कुछ ही साल में भवन में दरारें आ जाती है और वह जर्जर होने के बाद काम का नहीं रहता।
सीएनएस ट्रीटमेंट होना चाहिए
जानकारों के अनुसार बेंटोनाइट वाली जमीन के लिए अभी इलाज सीएनएस ट्रीटमेंट है। इसके तहत संबंधित जमीन से पहले बेंटोनाइट निकाला जाता है। इसके बाद वहां नदी की मिट्टी व बालू मिट्टी की परत बिछाई जाती है। इसके बाद भवन निर्माण करने पर बेंटोनाइट का असर कम होता है।
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