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बाड़मेर

मोदी ने जसवंत को याद किया और मची भाजपा में खलबली

– बड़े नेता करने लगे है अब जसवंत खेमे को जोडऩे का प्रयास- बाड़मेर में बनने लगे हैं नए समीकरण

बाड़मेरSep 22, 2017 / 11:07 am

Ratan Singh Dave

Modi remembers Jaswant and stirring up trouble in BJP

Modi remembers Jaswant and stirring up trouble in BJP

बाड़मेर. सीमांत जिले में भाजपा की राजनीति में बड़े नेताओं के दौरे ने खलबली मचा दी है। यहां भाजपा से जबरदस्त नाराज चल रहे जसवंत खेमे को अब फिर से जोडऩे की कोशिश होने लगी है और इधर भाजपा से पिछले लोकसभा चुनावों में जुड़े कर्नल सोनाराम समर्थकों की हड़बड़ी है कि धुर विरोधी रहे दोनों खेमे एक साथ कैसे रहेंगे?
बीते दिनों जैसलमेर पहुंची मुख्यमंत्री ने राजपूत समाज के लोगों के साथ बैठक की और उन्हें राजी करने का प्रयास किया। गत रविवार को यहां पहुंचे प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने जसवंत खेमे के लोगों को बुलाया और उनसे पुन: भाजपा में सक्रिय होने को कहा। उन्होंने कहा कि अब पुरानी बातें भूलनी होगी।
इसके बाद सरदार सरोवर बांध के लोकार्पण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी भैरोसिंह शेखावत और जसवंतसिंह का नाम लेते हुए भावुक बयान जारी किया कि वे नीति पर चलने वाले राजनेता रहे हैं। इन तीनों बयानों के बाद यह तय हो गया है कि भाजपा से नाराज चल रहे राजपूत वर्ग और जसवंसिंह खेमे को लोकसभा चुनावों से पहले मनाने के प्रयास शुरू हो गए हैं।
यह हुआ था गत लोकसभा चुनाव में
गत लोकसभा चुनावों में कांग्रेस से कर्नल सोनाराम चौधरी को भाजपा में लाया गया और जसवंतसिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। मुख्यमंत्री ने इसे अपनी मूंछ की लड़ाई बताते हुए पूरी ताकत झौंकी थी और जसवंतसिंह चुनाव हार गए।
तब से बाड़मेर-जैसलमेर का राजपूत समाज और समूचे प्रदेश में इसका असर पड़ा है। जानकारों के अनुसार गुजरात में भी राजपूत वर्ग इससे नाराज बताया जा रहा है।

अब भाजपा में खलबली-

भाजपा ने लोकसभा चुनाव तो नए समीकरण से लड़ लिया लेकिन अब विधानसभा चुनावों में जसवंत खेमे की नाराजगी भारी पड़ सकती है। एेसे में जसवंत खेमे को वापस लाने की तैयारी से भाजपा में यहां खलबली मच गई है।
कर्नल के साथ कांग्रेस से आए समर्थकों की चिंता है कि अब धुर विरोध के बाद कैसे साथ रहेंगे? जसवंत खेमे के लिए भी भाजपा में आने पर नई चुनौती रहेगी।
मानवेन्द्र साथ है पर साथी नहीं
– जसवंतसिंह के पुत्र मानवेन्द्रसिंह भाजपा के साथ तो है लेकिन साथी नहीं। जसवंतसिंह के चुनाव के समय उन्होंने खुद को बीमार बताकर निष्क्रियता दिखाई थी। जसवंतसिंह के बीमार होने के बाद वे अधिकांश कार्यक्रमों में नहीं आए। अभी भी वे मन से किनारा किए हुए हैं।

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