मुनाबाव का शिवालय न केवल भारतीय वरन् पाकिस्तान में बसे हिन्दू परिवारों की आस्था का केन्द्र है
बाड़मेर . जिले के सीमावर्ती गांव मुनाबाव का शिवालय न केवल भारतीय वरन् पाकिस्तान में बसे हिन्दू परिवारों की आस्था का केन्द्र है। आजादी से पहले यहां लोगों की भीड़ रहती थी, लेकिन उसके बाद यहां वीरानी छा गई। मुनाबाव रेलवे स्टेशन से भारत-पाकिस्तान रेल सेवा शुरू होने के बाद फिर से यहां लोगों की आस्थ नजर आ रही है। हालांकि अब लोग
मंदिर में जाकर तो शीश नहीं झुका सकते, लेकिन दूर से ही सहीं वे महादेव का जयकारा जरूर लगाते हैं।
आजादी से पहले
जोधपुर से हैदराबाद के बीच रेल सेवा थी। इस दौरान मुनाबाव में किसी ने मंदिर का निर्माण करवाया। 1947 के बंटवारे के बाद यह भारत- पाक सीमा का अंतिम
शिव मंदिर बन गया। एेसे में पाक आने-जाने वाले लोग यहां शीश झुका कर यात्रा शुरू व सम्पन्न करते थे। 1965 के युद्ध के दौरान यहां लगी मूर्तियां पाकिस्तानी सेना ने तोड़ दी। वहीं, यह इलाका भी वीरान हो गया। सालों तक वीरानगी के बीच दोनों देशों के बीच रेल सेवा बंद हो गई। सालों बाद रेल सेवा बहाल हुई तो मंदिर के पास ही इमिग्रेशन हाल बन जाने व सुरक्षा के चलते जाली लगा देने से मंदिर जाकर पूजा करना भक्तों के लिए संभव नहीं रह गया, लेकिन वे दूर से शीश जरूर झुकाते हैं।
शिवरात्रि पर लोगों का रहता हुजूम-
महाशिवरात्रि पर इस मंदिर का क्षेत्र में अलग ही महत्व रहता है। एेसे हिंदू परिवार जो पाकिस्तान से आकर यहां बसे हुए हैं, उनकी इसके प्रति विशेष आस्था है। वे यहां पहुंच पूजा-अर्चना करने के साथ अभिशेष भी करते हैं।
बीएसएफ, रेलवे व सुरक्षा एजेंसियों की भी आस्थाा- यह मंदिर अंतरराष्ट्रीय रेलवे स्टेशन मुनाबाव के पास होने से रेलवे कार्मिकों के साथ विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों की आस्था का भी केन्द्र है। वे यहां शीश झुकाने जरूर आते हैं। मुनाबाव में कार्यरत बीएसएफ जवान भी यहां पूजा-अर्चना करते हैं।