निकटवर्ती महाबार निवासी तेजमालसिंह कृषि महकमें में चालीस वर्ष की नौकरी पूर्ण होने पर सेवानिवृत्त हुए। उनके मन में पर्यावरण संरक्षण को लेकर ड्यूटी के दौरान हमेशा जागृति रही। उन्होंने ड्यूटी के दौरान नारायण सरोवर (गुजरात) से श्री गंगागनर तक स्कूलों में बच्चों को पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता का संदेश दिया। वर्ष-2012 में महाबार के धोरों के बीच पानी के अभाव में मेहनत के बलबुते पर एक बगीचा लगाया। जिसमें बेर के 800 पौधे लगाए है, जिससे हर साल 4 से 5 लाख रुपए मुनाफा कमा रहे है।
आयुर्वेदिक कीटनाशक किया तैयार
तीन साल बाद वर्ष-2015 में पौधों में कीड़े पड़ गए, लेकिन किसान तेजमालसिंह ने रासायनिक खाद नहीं डाली और वनस्पति संरक्षण अधिकारी से संपर्क किया। उनके मार्गदर्शन में करंज की पत्ती व नीम की पत्ती से उबाले हुए पानी में डाल गौत्र का उपयोग कर देशी तरीके स आयुर्वेदिक कीटनाशक तैयार कर दिया। साथ ही गाय के गोबर व बकरी की मैंगनी से जैविक खाद भी तैयार की। इसका बगीचे में छिड़काव किया गया।
बूंद-बूंद से सिचाई
महाबार के धोरों के बीच दूर तक ट्यूवेल नहीं है क्योंकि बंजर भूमि होने पर पानी का अभाव है, लेकिन किसान तेजमालसिंह ने बूंद-बूंद से सिंचाई करने का संकल्प लिया। यहां इन्होंने एक बड़ा जलकुंड का निर्माण करवा रखा है। जिसमें बारिश होने पर पानी को एकत्रित करते है और फिर पौधों को देते है। स्कूली बच्चों को कर रहे जागरूक तेजमाल बगीचे का रखरखाव के साथ क्षेत्र में पर्यावरण को लेकर जागरूकता फैला रहे है। यहां गांव की स्कूल के बच्चों को माह में दो दिन पर्यावरण संरक्षण को लेकर पाढ़ पढ़ाते है। साथ प्रत्येक बच्चें को दो-दो पौधे देकर उन्हें बड़ा करने का संकल्प दिलाया है।