पीहर छोड़ आई
मिल्खा सिंह की कहानी याद है न, कुछ एेसा ही सात साल की बालिका मीरां के साथ हुआ 1971 में। युद्ध शुरू हुआ और परिवार के लोग भागने लगे। गांव में एक ही संदेश था कि पाकिस्तान की फौजें आ गई और अब भारत जाना होगा। सात साल की अबोध बालिका तीन दिन तक पैदल चली तब छोर से बाड़मेर के मुनाबाव पहुंची। यहां से महाबार आकर परिवार बस गया। आधा परिवार यहां रह गया और आधा पाकिस्तान। मीरां कहती है अब मुझे उस मुल्क कभी नहीं जाना। वहां पर कोई जीना है, रोज मारने को आते थे।
मिल्खा सिंह की कहानी याद है न, कुछ एेसा ही सात साल की बालिका मीरां के साथ हुआ 1971 में। युद्ध शुरू हुआ और परिवार के लोग भागने लगे। गांव में एक ही संदेश था कि पाकिस्तान की फौजें आ गई और अब भारत जाना होगा। सात साल की अबोध बालिका तीन दिन तक पैदल चली तब छोर से बाड़मेर के मुनाबाव पहुंची। यहां से महाबार आकर परिवार बस गया। आधा परिवार यहां रह गया और आधा पाकिस्तान। मीरां कहती है अब मुझे उस मुल्क कभी नहीं जाना। वहां पर कोई जीना है, रोज मारने को आते थे।
एक लाख लोग आ चुके हैं अब तक
पाकिस्तान से भारत आने वाले शरणार्थियों का सिलसिला 1947 से जारी है। एक लाख से ज्यादा लोग अब तक आ चुके हैं। 1947 में सर्वाधिक 63 हजार से अधिक शरणार्थी आए। यह सिलसिला 1971 के बाद थमा लेकिन 2005 में थार एक्सपे्रस शुरू होने के बाद फिर से शुरू हो गया। सिंध, मिठी, थारपारकर, खिपरो, छाछरो का इलाका जो बाड़मेर-जैसलमेर के ठीक सामने हैं यहां के लोगों की रिश्तेदारियां बाड़मेर और इस क्षेत्र से है। ये लोग पाकिस्तान में जुल्म सितम सह रहे है। रोजी-रोटी की कमी और जान-माल की सुरक्षा नहीं है। एेसे में ये थार एक्सप्रेस के जरिए यहां आ रहे हैं।
पाकिस्तान से भारत आने वाले शरणार्थियों का सिलसिला 1947 से जारी है। एक लाख से ज्यादा लोग अब तक आ चुके हैं। 1947 में सर्वाधिक 63 हजार से अधिक शरणार्थी आए। यह सिलसिला 1971 के बाद थमा लेकिन 2005 में थार एक्सपे्रस शुरू होने के बाद फिर से शुरू हो गया। सिंध, मिठी, थारपारकर, खिपरो, छाछरो का इलाका जो बाड़मेर-जैसलमेर के ठीक सामने हैं यहां के लोगों की रिश्तेदारियां बाड़मेर और इस क्षेत्र से है। ये लोग पाकिस्तान में जुल्म सितम सह रहे है। रोजी-रोटी की कमी और जान-माल की सुरक्षा नहीं है। एेसे में ये थार एक्सप्रेस के जरिए यहां आ रहे हैं।
यहां मिल रही है शरण और अपनापन
बाड़मेर शहर का एक पूरा इलाका पाकिस्तान से जुड़े परिवारों का है। बेरियों का वास में रहने वाले पितांबर सुखानी और उनका पूरा परिवार सरकारी नौकरियों में हैं। वे कहते है कि यहां आकर कभी नहीं लगा कि कोई पराया है। शरणार्थी बस्ती में रह रहे घनश्याम माली उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं, वे कहते हंै कि सुख की जिंदगी जी ली, यहां आकर। अभी-अभी एक परिवार यहां आकर बसा है, उस परिवार के सदस्य को यहां आते ही रोजगार मिल गया। वह कहते हैं कि जैसा हिन्दुस्तान का सुना था, उससे कहीं बेहतर पाया है।
बाड़मेर शहर का एक पूरा इलाका पाकिस्तान से जुड़े परिवारों का है। बेरियों का वास में रहने वाले पितांबर सुखानी और उनका पूरा परिवार सरकारी नौकरियों में हैं। वे कहते है कि यहां आकर कभी नहीं लगा कि कोई पराया है। शरणार्थी बस्ती में रह रहे घनश्याम माली उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं, वे कहते हंै कि सुख की जिंदगी जी ली, यहां आकर। अभी-अभी एक परिवार यहां आकर बसा है, उस परिवार के सदस्य को यहां आते ही रोजगार मिल गया। वह कहते हैं कि जैसा हिन्दुस्तान का सुना था, उससे कहीं बेहतर पाया है।
सुकून है यहां, और क्या चाहिए
बड़ा सकून है इस मुल्क में। कोई किसी को परेशान नहीं करता और भाईचारे से रहते हैं। पाकिस्तान तो इस वजह से छोड़ रहे हैं कि वहां कानून की नहीं चलती। जनता त्रस्त होकर आती है, बाकी मुल्क और जन्मभूमि कौन छोड़े?
– तेजदान चारण, पाक विस्थापित
बड़ा सकून है इस मुल्क में। कोई किसी को परेशान नहीं करता और भाईचारे से रहते हैं। पाकिस्तान तो इस वजह से छोड़ रहे हैं कि वहां कानून की नहीं चलती। जनता त्रस्त होकर आती है, बाकी मुल्क और जन्मभूमि कौन छोड़े?
– तेजदान चारण, पाक विस्थापित