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स्वर्ण कणों की भूमि पर कलंक का टीका

locationबाड़मेरPublished: Sep 16, 2017 10:31:19 am

एक छह वर्षीय मासूम के साथ यौन उत्पीडऩ का मामला

stigma on land of gold particles

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सिकन्दर पारीक.

बाड़मेर में एक छह वर्षीय मासूम के साथ यौन उत्पीडऩ का मामला सामने आया है। परिजनों के अनुसार बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है, लेकिन पुलिस अभी ऐसे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। पूरी सच्चाई जांच के बाद पता चलेगी, लेकिन इस घटना ने मासूमों की सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल खड़े किए हैं।
समाज से लेकर सरकार के सिस्टम व निगरानी तंत्र पर सवाल…। क्या बच्चे घर से बाहर बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है…उन स्कूलों में भी नहीं, जहां बच्चों के सर्वांगीण विकास के बड़े-बड़े दावे होते हैं।
बाल वाहिनियों में ठूंस-ठूंस कर मासूमों के स्कूल आने-जाने पर खतरा मंडराने की शिकायतों पर तो मान लिया कि जिम्मेदार बेफिक्र हो रहे हैं। लेकिन, क्या मासूमों के साथ यौन उत्पीडऩ की घटनाएं बर्दाश्त योग्य है, इसमें लापरवाही कहां तक उचित है? चाहे परिवार हो या समाज, घर हो या बाहर…ऐसी घटनाएं तो माफी योग्य भी नहीं कही जा सकती। कई बार ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती है तो फिर क्यूं जिम्मेदार सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरतते हैं।
यह सही है कि विकृत मानसिकता वाले लोगों ने आंखों की शरम खो दी है। पर, उनमें कानून का खौफ कैसे खत्म हो गया? पुलिस-प्रशासन क्यूं पंगु हो गया? बाड़मेर में पिछले दिनों नारी अस्मिता पर चोट से जुड़े कई मामलें सामने आए हैं और इसमें पुलिस की संदिग्ध व लाचारी वाली भूमिका मिली है। एक सप्ताह की दो घटनाएं तो सामने है…चौहटन क्षेत्र के बूठ राठौड़ान में दुष्कर्म पीडि़ता ने आत्महत्या कर ली क्योंकि पुलिस ने आरोपितों को नहीं पकड़ा…इसी इलाके के ईसरोल गांव में नाबालिग के साथ दुष्कर्म हो गया।
महिलाओं के मामलों में न्याय करने की जिम्मेदारी जिस महिला थाने के थानेदार को मिली, वह खुद ही महिलाओं से अश्लील बात करने लगा। ऑडियो वायरल होने पर निलंबित हुआ। कानून के रखवालों की ये काली करतूतें हैं तो आमजन किससे न्याय की अपेक्षा रखें।
इधर, घर-परिवार-समाज में धीरे-धीरे घटती नैतिकता, संस्कृति व संस्कार भी इस तरह की घटनाओं में जिम्मेदार है। मासूमों के साथ प्यार व दोस्ताना भरा व्यवहार होना चाहिए। भागदौड़ की जिन्दगानी में दो पल उनके पास बिताना भी जरूरी है। बच्चा डरा-सहमा तो नहीं रहता…स्कूल में सब सही चल रहा है या नहीं…उसकी पढ़ाई-लिखाई कैसे चल रही है…कोई तकलीफ तो नहीं है। टीचर-पैरेंट मीटिंग से एक दिन पूर्व ये सवाल बच्चों से पूछने की बजाय क्यूं नहीं रोजाना पूछे जाए।
सर्वाधिक जिम्मेदार कड़ी है स्कूल। जहां देश का भविष्य तैयार होता है…बच्चों में संस्कारों व नैतिकता के बीज पनपाए जाते हैं…उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनना सिखाया जाता है, वहां इस तरह की गैर जिम्मेदाराना हरकतें कैसे हो जाती है। कहीं न कहीं कमी निगरानी तंत्र में लापरवाही रखना है।
जब सीसीटीवी कैमरे भी नहीं होते थे, स्कूलों में शारीरिक शिक्षक की एक आवाज पर बच्चे साइलेंट मोड पर आ जाते। मजाल है कि क्लास छोड़कर कोई इधर से उधर भी जाए, लेकिन अब तो शिक्षक-शिष्य साथ-साथ ही….। फिर कैसा डर और कैसी शरम। बहरहाल, यह संजीदा मामला है। जब तक जांच नहीं हो जाती, इसमें कुछ भी कहना जल्दबाजी है। लेकिन, यह तय करना पड़ेगा कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर जिस स्तर पर लापरवाही होती है, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। अगर कोई मासूमों के साथ घिनौने कृत्य करता है तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए कि ताकि फिर कोई ऐसी जुर्रत ना करें। बच्चों की सुरक्षा, सभी का दायित्व है, इससे विमुख होना ठीक नहीं।

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