लम्बे समय से लोग शिकायत कर रहे हैं कि बाजार में मिलने वाले फल प्राकृतिक तरीके से नहीं पका कर रसायन से पकाए जा रहे हैं, जिसके चलते इनका स्वाद व गुणवत्ता कम हो रही है। नियमानुसार समय-समय पर विभाग को कार्रवाई करनी होती है, लेकिन बाड़मेर में एेसा नहीं हो रहा। इसके चलते फल विके्रता मुनाफा कमाने के चक्कर में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। शिकायत के बावजूद विभागीय कार्रवाई नहीं होने से उपभोक्ता भी ठगी के बावजूद आवाज नहीं उठा रहा है। वर्तमान में सेब सवा सौ से डेढ़ सौ रुपए किलो हैं। एेसे में जब पूरे सेब खराब निकलते हैं तो ग्राहक को परेशानी तो होती ही है।
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ऊपर से बढि़या, अंदर घटिया- सुपर क्वालिटी के इन सेबों को देखने पर एेसा लगता है कि यह बहुत ही बढि़या होंगे। इसके ऊपर लेबल भी लगा होने से लोग झांसे में आकर खरीद लेते हैं, लेकिन जब घर जाकर इनको काटते हैं तो अंदर घटिया क्वालिटी होने से रुपए व्यर्थ होने के साथ मन भी दुखी होता है।
पूरे सेब खराब निकले- मैंने एक किलो सेव डेढ़ सौ रुपए की दर से खरीदे। घर पर जाकर इन्हें काटा तो सभी सेब खराब निकले। दुकानदार को बताया तो उसने उल्टा जवाब दिया कि हम क्या करें। खराब निकलने पर हमारी जिम्मेदारी नहीं है। मुझे लगता है कि रसायन के उपयोग करने से सेब खराब हुए हैं। खाद्य सुरक्षा अधिकारी को फल-सब्जियों की भी समय-समय पर जांच करनी चाहिए।
– डी एन खत्री, उपभोक्ता