इसके नियंत्रण को लेकर किसान इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की मात्रा 200 मिलीलीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करना चाहिए जरूरत होने पर दूसरा छिडक़ाव किया जा सकता है।
उखटा रोग रोग के कारण पौधे मुरझा जाते हैं। इस रोग को रोकने के लिए बीज को ट्राईकोडर्मा की 4 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन की 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बोना चाहिए। खेत में ग्रीष्म ऋतु में जुताई करनी चाहिए व लगातार जीरे की फसल नहीं उगानी चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2.5 किग्रा ट्राईकोडर्मा 100 किलो कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिडक़ाव कर देना चाहिए तथा हल्कीसिंचाई करनी चाहिए। झुलसा रोग फसल में फूल आने के बाद बादल होने पर लगता है।
इस रोग के कारण पौधों का ऊपरी भाग झुलस जाता है। पत्तियों व तनों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं। ये रोग इतनी तेजी से फैलता है कि रोग के लक्षण दिखाई देते ही यदि नियंत्रण कार्य न कराया जाए तो फसल को नुकसान से बचाना मुश्किल होता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए मेन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिडक़ाव करना चाहिए। डॉ. प्रदीप पगारिया ने बताया कि छाछया रोग के कारण पौधे पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है और बीज नहीं बनता। गन्धक का चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए या एक लीटर केराथेन प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव कर देना चाहिए।
उन्होंने बताया कि जीर में प्रथम छिडक़ाव बुवाई के 30-35 दिन बाद मैन्कोजेब 2ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर करें। दूसरा छिडक़ाव बुवाई के 40- 45 दिन बाद मैन्कोजेब 2 ग्राम, इमीडाक्लोप्रिड 0.5 मिल तथा घुलनशील गंधक 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव कर देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त यदि किसी बीमारी या कीट का अधिक प्रकोप हो तो उसको नियंत्रण करने के लिए संबंधित रोगनाशक या कीटनाशक का प्रयोग करें। तीसरे छिडक़ाव में मैन्कोजेब 2 ग्राम, इमिडाक्लोरोप्रिड 0.5 मिली व 2 ग्राम घुलनषील गंधक प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 60-ं70 दिन बाद कर देना चाहिए।