ग्रामीणों का कहना है कि समस्या को लेकर जलदाय विभाग को अवगत कराया लेकिन कोई हल नहीं निकला। हालात यह है की पानी की आपूर्ति नहीं होने पर सरकारी टांके व टंकियां जर्जर हो रही है। नहरी वितरिका की साफ सफाई नहीं होने पर इसमें मिट्टी व कंटीली झाड़ियों अटी हुई है। रविवार को राजस्थान पत्रिका टीम ने जायजा लिया तो सरकारी जलापूर्ति नहीं होने पर लोग बेरियों से पानी ला रहे थे। घर से दूर कई किमी सफर तय कर पानी की व्यवस्था की जा रही है। कई जगह मटमेला पानी बेरियों से आ रहा है लेकिन मजबूरन लोगों को इसे पीकर प्यास बुझानी पड़ रही है।
इन गांवों में हालात बदतर- बावरवाला, बाखासर, बीकेडी, एसकेटी, नवापुर, दासोदिया, रंगवाली, सुहागी, भंवरिया, गिड़ा, नगडाणी, तड़ला, साता, हाथला छोटा,हाथला बङा, लालपुर, देहवा, बसवाल, तारीसरा, चांदासमी,रडवा, हनुमान की कांधी, एकल,मीठड़ी, भलगांव, सुजोंका निवाण, नवापुर, जाटोंका बेरा नवातला, रते का तला, वेरङी, फकीरा सहित बॉर्डर के गांवों में पेयजल किल्लत है।
बारह सौ रुपए की टंकी- गांवों में आसपास पानी नहीं होने पर दूर-दराज से टैंकर मंगवाने पड़ते हैं। ऐसे में यहां 1000-1200 में पानी पहुंचता है। आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवार मजबूरी से बेरियों का मटमेला खारा पानी कई सालों से पी रहे हैं।
इनका कहना हमारे कई गांवों में पानी की समस्या है। न तो नहर में पानी आता है और ना ही सरकारी टंकी जीएलआर में पानी आता है। हम बेरियों का खारा पानी पीने को मजबूर हैं। -कमला देवी कोली, गृहणी बावरवाला
फागलिया पंचायत समिति में पानी के टैंकर नहीं लगाए गए हैं । 117 आरओ प्लांट स्वीकृत है। जल मिशन योजना से उक्त गांव वंचित रह गए हैं। – गंगाराम पारंगी, सहायक अभियंता जलदाय विभाग फागलिया