scriptसीजे को इस बालिका ने क्यों लिखा पांवो से पत्र? | Why did this girl write a letter to CJ with her feet? | Patrika News

सीजे को इस बालिका ने क्यों लिखा पांवो से पत्र?

locationबाड़मेरPublished: May 26, 2022 11:17:24 am

Submitted by:

Ratan Singh Dave

पांवों से लिखा पत्र…मजमून पढ़कर पत्थर भी रो पड़े- मुख्य न्यायाधीश को भेजा है पत्र- दोनों हाथ कटे हुए है लीला के- क्रेडिट कॉपरेटिव में अटक गई मदद की राशि- 5.50 लाख दिए थे सरकार ने, 1.50 लाख मदद से- पत्रिका ने मुद्दा उठाया तब मिली थी लीला को यह राशि

सीजे को इस बालिका ने क्यों लिखा पांवो से पत्र?

सीजे को इस बालिका ने क्यों लिखा पांवो से पत्र?

बाड़मेर
इस बेटी के दोनों हाथ नहीं है। पांवों से लिखती है। आज इसने अपना दर्द पांवों से लिखा है और शर्तिया इसको पढऩे वाला पत्थर दिल भी रो पड़ेगा। चौथी कक्षा से इसके जीवन का संघर्ष शुरू हुआ है और बारहवीं तक आई है लेकिन खत्म नहीं हो रहा। हापों की ढाणी की बालिका लीला ने अब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा है और कहा है-मेरे हक के रुपए मुझे दिलवा दो। मैं हाथ नहीं फैला रही हूं, मुझे मेरे पांवों पर खड़ा होना है।
गुडिय़ा सी खिलखिलाती लीला
लीला की जीवन की दास्तां भले-भलों की आंखों को नम कर देगी और उसके संघर्ष का सेल्यूट करने के लिए हाथ ललाट तक ले जाएगी। लीला छोटी सी गुडिय़ा जैसी..बच्ची। चौथी कक्षा में धोरों पर हंसती-खिलखिलाती खेलती थी और मां-बाप,भाई सब उसकी खिलखिलाहट पर न्यौछावर जाते। अपने छोटे-छोटे हाथों से जब वह दुलार करती तो मां-बाप इन हाथों को चूम लेते और ताली लेते हुए कहते-जीओ बिटिया और नजर न लगे,इसलिए हथेली पर मां एक काजल का टीका भी लगा लेती, पर उन्हें क्या मालूम था कि लीला के इन्हीं हाथों को नजर लगने वाली है।
काटने पड़े दोनों हाथ
चौथी कक्षा में लीला खेल रही थी और खेत में बिजली के तार की चपेट में आ गई। अचेत होकर गिरी और उसको इलाज को अहमदाबाद ले गए, जहां दोनों हाथ काटने पड़े। जिन हाथों में नजर की काली बिंदी मां-बाप लगाते थे,वे नहीं रहे। प्रतिदिन बिना हाथों के बेटी को देखना उनके लिए रात-दिन के आंसू बन गए।
लीला ने कहा मैं पढूंगी
अबोध बालिका लीला के हाथ गए लेकिन हिम्मत नहीं। उसने कहा, मैं पढूंगी। सबने कहा हाथ नहीं है,कैसे? लीला ने पांव आगे किए और कहा पांवों पर खड़ा होने के लिए पांव से लिख लूंगी। ललक देख स्कूल भेजा और वह अब बारहवीं में आ गई है।
पत्रिका ने लीला के दर्द को समझा
लीला जब आठवीं कक्षा में आई तो जिला मुख्यालय पर कृत्रिम हाथ लेने आई। पत्रिका ने इस बालिका के हाथ नहीं होने का दर्द जाना तो सामने आया कि उसके हाथ कटने के बाद उसको डिस्कॉम ने कोई मुआवजा राशि नहीं दी है। पत्रिका ने खूंटी पर टंगे लीला के हाथ शीर्षक से समाचार कर श्रृंखला प्रारंभ की तो डिस्कॉम ने लीला को 5.50 लाख रुपए मदद के दिए और 1.50 लाख की अन्य मदद हुई। लीला और परिवार इस बात को लेकर संतोष में आए कि अब बेटी सयानी होगी तो शादी में काम आएंगे तो लीला ने कहा नहीं इन रुपयों के साथ पढ़ाई पूरी कर मैं पांवों पर खड़ा होऊंगी।
मुख्य न्यायाधीश से कहा- रुपया दिलवाओ
लीला ने यह रुपया एक क्रेडिट कॉपरेटिव सोसायटी में जमा करवा दिया। इस आस में कि यह धन दुगुना होगा और सुरक्षित भी लेकिन लीला को क्या मालूम कि तकदीर उस पर फिर प्रहार करने वाली है। क्रेडिक कॉपरेटिव सोसायटी ने यह रुपया देने से इंकार दिया है। राज्यभर में के्र्रडिट कॉपरेटिव पर उठे विवादों तालों में यह एक थी। कई दिन तक परिजनों ने तकाजा किया, भरोसा किया लेकिन अब ना मिलने पर लीला ने मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में अपना दर्द बांटते हुए कहा-मेरे हाथ नहीं है….मुझे पांवों पर खड़ा होना है..मेरी मदद करो। मैं हाथ नहीं फैला रही…हक मांग रही हूं।
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