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निराशा नहीं आशावादी बनिए, हर दहलीज पर खुशियां खटखटा रही है दरवाजा

locationबाड़मेरPublished: Oct 10, 2021 08:40:25 pm

Submitted by:

Mahendra Trivedi

-पॉजिटिव सोच के साथ उपचार से जीती अवसाद से जंग-जिंदगी है तो सब कुछ संभव की सोच से आई खुशहाली-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस विशेष…

निराशा नहीं आशावादी बनिए, हर दहलीज पर खुशियां खटखटा रही है दरवाजा

निराशा नहीं आशावादी बनिए, हर दहलीज पर खुशियां खटखटा रही है दरवाजा

बाड़मेर. जीवन में सकारात्मक सोच हो तो कोई आपको हरा नहीं सकता है। अवसाद कुछ देर के लिए हो सकता है। इसकी गंभीरता भी बढ़ सकती है। लेकिन जीवन के प्रति आशा और मुझे कुछ करके दिखाने की चाह रखने वालों ने इसे हराकर दिखाया है। मनोरोग विशेषज्ञ बताते हैं कि मानसिक रोग भी अन्य बीमारियों की तरह है। इसे सामान्य रोगों की तरह लेंगे तो इसका इलाज भी बहुत तेजी से होता है।
जागरूकता फैलाने के लिए मनाते हैं वल्र्ड मेंटल हैल्थ डे
मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद की वजह से विश्व में काफी अधिक लोग सोशल स्टिग्मा, डिमेंशिया, हिस्टिरिया, एंग्जाइटी, जैसी कई तरह की दिक्कतों और मानसिक बीमारियों से जूझ रहे है। लोगों की इस तरह की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करने और आमजन के बीच जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से वल्र्ड मेंटल हेल्थ डे मनाया जाता है। इससे आम लोग मानसिक परेशानियों और बीमारियों के प्रति जागरूक अने और समय रहते अपना उपचार करवाएं। साल 2021 की थीम ‘एक असमान दुनिया में मानसिक स्वास्थ्यÓ रखी गई है।
बाड़मेर के राजकीय मेडिकल कॉलेज संलग्न चिकित्सालय समूह के मनोरोग विभाग के विभागध्यक्ष डॉ. गिरीश बनिया बताते हैं कि रोग को छुपाना नहीं चाहिए, उसका उपचार करवाकर व्यक्ति सामान्य जिंदगी जीता है। उन्होंने गंभीर स्थिति में पहुंचे कई मनारोगियों का उपचार किया है। उनका मानना है कि नियमित दवा, परिवार का सहयोग और बीमारी को सामान्य समझने की सोच रखने से ही मनोरोग को
इन दो केस से समझ सकते हैं कि बीमारी कोई भी हो ठीक होती है
केस 1 : गहरे अवसाद से सामान्य जीवन की ओर
बाड़मेर जिला अस्पताल में 31 साल की ममता (परिवर्तित नाम) को उसका पति जांच के लिए लेकर आया। मनोरोग विभाग में दिखाया तो वह अवसाद की स्थिति में नजर आई। बातचीत में ही चिकित्सक को पता चल गया कि वह गंभीर अवसाद में है। काउंसिलिंग में ये बाते चिकित्सक को बताने के बाद उसका उपचार शुरू हुआ। नियमित दवा और फॉलोअप काउंसिलिंग तथा परिवार और आसपास के लोगों का संबल मिला तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई और परिवार के साथ सामान्य जीवन जी रही है।
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केस 2 : ‘आशाÓ ने दिखाई जीवन की आस
करीब 28 साल के रामकिशोर (परिवर्तित नाम) ने अचानक काम पर जाना बंद कर दिया। बात-बात पर लड़ाई-झगड़ा करने लगा। परिवार के लोगों पर शक करने लगा कि उसके खिलाफ है, उसका करना चाहते हैं। परिजनों के अनुसार उन्हें समझ नहीं आया कि क्या वजह है। कुछ झाड़-फूंक करवाई, लेकिन फर्क तो दूर वह ज्यादा गंभीर हो गया। आशा सहयोगिनी ने उन्हें सलाह दी कि मनोरोग चिकित्सक को दिखाने की जरूरत है। जिला अस्पताल के मनोरोग विभाग में उसकी जांच करवाई तो चिकित्सक ने बताया कि वह सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से पीडि़त है। युवक का उपचार शुरू हुआ। अब युवक पूरी तरह से स्वस्थ है और परिवार के साथ जीवनयापन कर रहा है।
(जैसा डॉ. गिरीश बानिया ने पत्रिका को बताया)
ये हो लक्षण तो अनदेखी नहीं करें
-उदासी का अनुभव करना
-ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता में कमी
-अत्यधिक घबराहट व चिन्ता की स्थिति
-मनोदशा में बार-बार परिवर्तन होना
-दोस्तों और अन्य गतिविधियों से अलग-थलग
-थकान और नींद नहीं आना
-बिना वजह बार-बार डर लगना
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एक्सपर्ट व्यू…
मनोरोग किसी को भी हो सकता है। लक्षण दिखते ही उसका उपचार जरूरी है। उपचार से लोग पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं। काउंसिंलिंग में मरीज को जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण की तरफ ले जाया जाता है। दवा के साथ काउंसिङ्क्षलग भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
डॉ. गिरीशचंद्र बानिया, सहायक आचार्य एवं विभागाध्यक्ष
मानसिक रोग विभाग, संलग्र चिकित्सालय समूह राजकीय मेडिकल कॉलेज बाड़मेर
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