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भील कला को कैनवास पर उतारने वाली भूरी बाई को पद्मश्री सम्मान से नवाजा

locationबड़वानीPublished: Jan 27, 2021 12:23:14 pm

Submitted by:

vishal yadav

झाबुआ के पिटोल में पली बढ़ी भूरी बाई को पद्यम श्री पुरस्कार से नवाजा गया है

Bhuribai received Padma Shri award

Bhuribai received Padma Shri award

झाबुआ/बड़वानी. मप्र की राजधानी भोपाल से दूर आदिवासी अंचल झाबुआ के पिटोल में पली बढ़ी भूरी बाई को पद्यम श्री पुरस्कार से नवाजा गया है। भूरी बाई को ये सम्मान आदिवासियों की कला को कैनवास पर उतारने के लिए दिया गया। इसी कला के दम पर वे मप्र सरकार की ओर से कला के क्षेत्र में दिया जाने वाला शिखर सम्मान भी प्राप्त कर चुकी है। सोमवार को केंद्र सरकार के पद्यम पुरस्कारों की घोषण हुई, जिसमें भूरी बाई का भी नाम शामिल है।
झाबुआ जिले के पिटोल में जन्मी भूरी बाई स्वयं भी आदिवासियों भील समुदाय से हैं। उनकी कला भी भील समुदाय के आसपास ही है। भूरी चित्रकारी के लिए कागज तथा कैनवास का इस्तेमाल करने वाली प्रथम भील कलाकार है। भूरी बाई भोपाल में आदिवासी लोककला अकादमी में एक कलाकार के तौर पर काम करती हैं। मध्यप्रदेश सरकार उन्हें अहिल्या सम्मान से विभूषित कर चुकी है। भूरी बाई के चित्रों में जंगल में जानवर, भील देवी-देवताएं, पोशाक, गहने तथा गुदना (टैटू), झोपडिय़ां आदि प्रमुखता से शामिल होते हैं।
भूरी बाई को सरकार ने माना पद्मश्री सम्मान पाने का हकदार
जिले के एक छोटे से गांव पिटोल से भोपाल में परिवार के साथ रहकर 25 साल मजदूरी करने वाली भूरी बाई को सरकार ने पद्मश्री सम्मान पाने का हकदार माना है। भूरी बाई को ये सम्मान कला के क्षेत्र में दिया जा रहा है। मजदूरी से कलाकार बनने तक भूरी बाई की कहानी संघर्षों से पटी है। भूरी बाई ने अपने पिता से पिथौरा आर्ट सीखा और देश भर में अपनी कला से धूम मचाई। संघर्ष के दिनों में अपनी प्राचीन विरासत को सहेज कर रखा। पारंपरिक कला के माध्यम से भूरी बाई ने देशभर में खूब नाम कमाया। 45 वर्षीय भूरी बाई को प्रदेश सरकार ने शिखर सम्मान और देवी अहिल्या सम्मान से सम्मानित भी किया है। वर्तमान में भूरी बाई अपने बच्चों और नाती पोतों को पिथौरा पेंटिंग बनाना सीखा रही है।

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