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केंद्रीय जेल के हालात जिला जेल से भी बुरे

locationबड़वानीPublished: May 22, 2019 11:21:44 am

456 बंदियों के स्थान पर ढाई गुना बंदी जेल में बंद, केंद्रीय जेल में अस्पताल की व्यवस्था भी नहीं, जिले को दो बार मिल चुका जेल मंत्रालय का प्रतिनिधित्व, नहीं बदले हालात

central jail barwani

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बड़वानी. केंद्रीय जेल बड़वानी सोमवार को एक सजायाफ्ता बंदी की मौत के बाद फिर सुर्खियों में है। 6 साल पहले जिला जेल से केंद्रीय जेल बनी बड़वानी जेल के हालात आज भी जस का तस है। केंद्रीय जेल में आज भी कैदियों की क्षमता जिला जेल के बराबर ही है। जबकि यहां क्षमता से ढाई गुना बंदी बंद है।केंद्रीय जेल की नियमावली के अनुसार यहां जेल में एक अस्पताल भी होना चाहिए, लेकिन आज तक अस्पताल भी नहीं बन पाया है। सोमवार को भी केंद्रीय जेल में बंदी अफजल पिता तस्लीम पठान की तबियत बिगडऩे के बाद उसे जिला अस्पताल ही भेजा गया था, जिसकी रास्ते में ही मौत हो गई थी। उल्लेखनीय है कि बड़वानी जिले को दो बार जेल मंत्रालय का प्रतिनिधित्व मिला, लेकिन हालात नहीं सुधर पाए।
सरकार ने 2013 में बड़वानी जिला जेल का उन्नयन करते हुए केंद्रीय जेल बनाया था। केंद्रीय जेल तो बना दिया गया, लेकिन केंद्रीय जेल जैसी व्यवस्थाएं यहां नहीं हो पाई। वर्तमान में केंद्रीय जेल में 446 पुरुष बंदियों और 10 महिला बंदियों की व्यवस्था है। जिसके एवज में यहां 1135 पुरुष बंदी और 35 महिला बंदी बंद है। क्षमता से ढाई गुना बंदियों के कारण अव्यवस्थाओं का भी बोलबाला है। बंदियों को बैराकों में भरकर रखा जाता है।जिसके कारण यहां त्वचा रोग और संक्रामक रोग बंदियों के बीच फैलने की भी संभावना बनी रहती है। उल्लेखनीय है कि पिछली सरकार में जेल मंत्री रहे अंतरसिंह आर्य जिले की सेंधवा सीट का प्रतिनिधित्व करते थे। वहीं, वर्तमान जेल मंत्री बाला बच्चन भी जिले की राजपुर सीट का प्रतिनिधित्व करते है। पिछले जेल मंत्री तो केंद्रीय जेल के लिए कुछ नहीं कर पाए।अब देखना ये है कि नए जेल मंत्री जेल का उद्धार कैसे करते है।
कईकैदियों की हो चुकी हैमौत
केंद्रीय जेल में बंदियों की मौत का सिलसिला नया नहीं है।इसके पूर्व भी कई बंदियों की मौत यहां हो चुकी है। जिसमें से अधिकतर बीमारी के कारण सजा खत्म होने या केस निराकरण होने के पहले ही काल कवलित हो गए। यहां एक बंदी द्वारा आत्महत्या का मामला भी सामने आ चुका है। नियमों के अनुसार केंद्रीय जेल में बंदियों के स्वास्थ्य परीक्षण, बीमार होने पर भर्ती की व्यवस्था के लिए जेल में ही अस्पताल होना चाहिए। केंद्रीय जेल में जगह नहीं होने के कारण यहां अस्पताल नहीं बन पाया है, जबकि इसका प्रस्ताव कब से बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय जेल में डॉक्टरों की पदस्थी तो है, लेकिन किसी भी गंभीर बीमारी में बंदी मरीज को जिला अस्पताल में ही ले जाना पड़ता है। जिन्हें सुरक्षा के लिहाज से टीबी वार्ड में ही भर्ती कराया जाता है।
स्टाफ बढ़ा, क्वाटर नहीं
केंद्रीय जेल बनने के बाद जेल का स्टाफ भी बढ़ाया गया था। स्टाफ तो बढ़ा, लेकिन संसाधन नहीं बढ़े। जिला जेल के दौरान यहां जितने स्टाफ क्वाटर थे, आज भी उतने ही स्टाफ क्वाटर है। बाहर से आए स्टाफ को क्वाटर तक नहीं मिल पाए है। अधिकतर स्टाफ शहर में किराये के मकानों में रह रहा है। वहीं, संसाधनों की बात करे तो बंदियों को लाने ले जाने के लिए वाहन भी कम है।केंद्रीय जेल में एकमात्र एंबुलेस है। अन्य वाहनों की संख्या भी बहुत कम है।
बैराक और अस्पताल का प्रस्ताव भेजा है
बंदियों की संख्या ज्यादा होने से परेशानी तो होती है।नई बैराकों की जरूरत है, जिसका प्रस्ताव भेजा गया है। वहीं, अस्पताल के लिए अंदर जगह नहीं है, अब बाहर अस्पताल का प्रस्ताव भी भेजा है। जेल के पास बहुत जमीन है, उसके ऊपर कई काम कराए जा सकते है।

डीएस अलावा, जेल अधीक्षक

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