scriptपर्वों की खुशियों पर भारी पड़ रहा विस्थापन का दर्द | Displacement pain on the happiness of festivals | Patrika News

पर्वों की खुशियों पर भारी पड़ रहा विस्थापन का दर्द

locationबड़वानीPublished: Oct 07, 2019 11:34:12 am

डूब गांवों में अजीब सा सन्नाटा, चेहरों पर छाई मायूसी, घर से बेघर हुए डूब प्रभावित अब कहां मनाएंगे त्योहार, कोई टीन शेड में तो कोई रिश्तेदारों के घर में रह रहा

Displacement pain on the happiness of festivals

Displacement pain on the happiness of festivals

बड़वानी. जहां एक ओर देशभर में नवरात्र पर्व की धूम मची हुई है, डांडियों की खनक गूंज रही है और आने वाले पर्वों का उल्लास बना हुआ है। वहीं, दूसरी ओर सरदार सरोवर बांध की डूब में आए बड़वानी के डूब गांवों में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ है। यहां पर्वों की खुशियों पर डूब और विस्थापन का दर्द भारी पड़ रहा है। डूब प्रभावितों के चेहरों पर उल्लास की जगह मायूसी छाई हुई है। घर से बेघर हुए, टापुओं में फंसे डूब प्रभावित खेत, घर, जमीन सब खोने के बाद किस तरह से त्योहार मनाएं, उनकी समझ ही नहीं आ रहा है।
डूब ग्राम जांगरवा में करीब 85 मकान डूब में आए है। जिसमें से 78 मकान पूरी तरह से नर्मदा के बैक वाटर में डूब चुके है। 7 मकानों के आसपास पानी भरा हुआ है। 98 परिवार ऊपर पहाड़ी पर टापू बने गांव में फंसे हुए है। गांव में एक समय था पूरी तरह से चहल पहल हुआ करती थी। श्यामा केवट के मकान के पास बने बाड़े में नवरात्र का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता था। यहां माता का पंडाल सजता था, रात में गांव की बालिकाएं, युवतियां उल्लास के साथ गरबे करती थी। गांव में डूब आने के बाद ये बाड़ा सूना पड़ा हुआ है। बाड़े के पास तक पानी आ चुका है। सात घर के परिवार यहां रह रहे हैं, जिन्होंने ऊपर टापू पर औपचारिकता के लिए माता की स्थापना की है, लेकिन पर्व का उल्लास कहीं भी नजर नहीं आ रहा है।
आसपास के ग्रामीण आते थे माता पूजने
डूब प्रभावित श्यामा पिता मांगीलाल केवट ने बताया कि घर के आसपास पानी है। सात परिवार अभी भी पानी के पास ही रह रहे है। रुके हुए पानी से बदबू आ रही है, जीव-जंतू निकल रहे है, लेकिन मजबूरी में यहां रहना पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें डूब प्रभावित नहीं माना है और डूब से बाहर बताया है। 2017 में गांव तक पहुंचने के लिए प्रशासन ने नया रास्ता बनाया था, वो भी डूब गया है। अब गांव में जिनके खेत है वो ही आ रहे है। एक समय था जब यहां त्योहार पर मेला लगता था। माताजी के समय आसपास के ग्रामीण भी यहां माता पूजने आते थे। रातभर गरबों की गूंज सुनाई देती थी, लेकिन अब सिर्फ सन्नाटा पसरा हुआ है।
दूसरे के टूटे-फूटे घर में कैसे मनाए त्योहार
ग्राम के पूर्व सरपंच कुंअरसिंह नरगांवे ने बताया कि उनका घर और उसमें रखा सारा सामान पूरी तरह से डूब गया है। उन्होंने डूब के खिलाफ अकेले ही आठ दिन तक पानी में खड़े रहकर संघर्ष किया, लेकिन कोई हल नहीं निकला। उनके घर में पानी भरने के बाद टापू पर गुजरात जा चुके एक डूब विस्थापित के एक खाली पड़े टूटे-फूटे घर में उन्होंने शरण ली है। सिर छुपाने के लिए आश्रय तो मिल गया, लेकिन पुनर्वास नीति का कोई लाभ नहीं मिला। 60 लाख की पात्रता होने के बाद भी उनका केस जीआरए में पेंडिंग पड़ा हुआ है। अपना सबकुछ खोने के बाद किसी दूसरे के टूटे फूटे घर में कैसे त्योहार की खुशियां मनाएंगे।
शरणार्थियों के लिए कैसी खुशियां
सरदार सरोवर बांध की डूब में पूरी तरह से डूब चुके राजघाट के प्रभावितों को टीन शेड में आश्रय मिला हुआ है। टापू पर फंसे 40 परिवारों को पहले डूब से बाहर माना था, अब इन्हें डूब में लिया गया है। वर्तमान में पाटी नाका टीन शेड में रह रहे देवेेंद्रसिंह दरबार, धर्मेंद्र केवट, कुंदन केवट ने बताया कि न घर-प्लाट मिला है, न ही किसी प्रकार का लाभ अब तक मिला है। टीन शेड में शरणार्थियों जैसा जीवन बिता रहे है। यहां हमारे लिए पर्व की कोई खुशिया नहीं है। डूब से पहले राजघाट पर एक अलग ही रौनक हुआ करती थी। माताजी की स्थापना से लेकर विसर्जन तक रोजाना लोगों की भीड़ लगती थी। यहां टीन शेड में तो सिर्फ शरणार्थी बनकर रह गए है।

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