कमाई में हिस्सा देकर वोट की राजनीति
मेधा पाटकर ने बताया कि मध्य प्रदेश शासन ने रेत खनन को वैध-अवैधता से पार जाकर खुला करने का निर्णय लिया है, जो की प्रथमदर्शनी विनाशकारी साबित होगी, ये दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने नर्मदा सेवा के नाम पर निकाली यात्रा में जो घोषणाएं की थी। उससे पलटकर नई नीति मात्र रेत- माफियाओं के दबाव और राजस्व की राशि बढ़ाने के उद्देश्य से लाई है। इसमें पंचायतों को शामिल कर लाभ और कमाई में हिस्सा देकर वोट की राजनीति भी आगे बढ़ाने की सोच है, लेकिन ये नीति न ही सर्वोच्च अदालत के 27 फरवरी 2012 के विस्तृत फैसले के आधार पर बनी है, न ही राष्ट्रीय रेत खनन नीति के पालन के साथ बनाई है।
रेत में खेती करने वाले जमीन के हकदार
मेधा पाटकर ने कहा कि अकबर के समय के पट्टे भी मछुआरों को दिया गया है, उनको भी अधिकार नहीं दिया गया है। सरदार सरोवर बांध से 214 किमी तक का क्षेत्र प्रभावितों हो रहे है। इसमें अभी को नर्मदा पर अधिकार दें। नर्मदा को बदल दिया गया है। आज की सरकार की नीतिओं का अभी तक पालन नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री ने घोषणा में कहा कि सभी को मछुआरों को पंजीयन कर अधिकार दिया जाएगा, लेकिन इसका भी कोई अमल नहीं किया गया है। पहले इसमें द्वारा खरबूजा की खेती करते थे। इसमें लाखों की कमाई होती है, लेकिन आज वो जमीन सरदार सरोवर बांध से डूब गई है। अभी इन विस्थापितों को कोई भी लाभ अभी तक नहीं दिया या कोई भी विस्थापितों को अधिकार नहीं दिया गया है। इसके लिए आगे भी आंदोलन जारी रहेगा।