बड़वानीPublished: Jul 24, 2019 11:00:13 am
मनीष अरोड़ा
नबआं ने लगाया आरोप, गुजरात सरकार को देना होगा बिजली का मुआवजा, मप्र सरकार द्वारा गुजरात के पानी को रोकने के फैसले को बताया सही
Gujarat government kills the right of Narmada water and electricity
बड़वानी. मध्यप्रदेश और गुजरात के बीच उठाए सरदार सरोवर संबंधी विवाद अब सुर्खियों में जरुर है, लेकिन उस पर की गई गुजरात के मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री की टिप्पणी न ही सही कानूनी दायरे में, न ही सत्य पर आधारित है। इतनी विशेष नदी तथा महाकाय बांध और घाटी परियोजना के तहत बने या बन रहे अन्य बांधों पर गुजरात के नेताओं से उपरी स्तर के तथा कानूनी परिणाम को नजरंदाज करते हुए दिए जा रहे बयान साबित करते है कि राजनीति मप्र नहीं, गुजरात से ही बढ़ाई जा रही है। पानी और बिजली के मामले में गुजरात सरकार द्वारा मप्र का हक का प्रयास किया जा रहा है। ये बात मंगलवार को मीडिया से चर्चा करते हुए नबआं नेत्री मेधा पाटकर ने कही।
मेधा पाटकर ने बताया कि नर्मदा जलविवाद न्यायाधिकरण के अनुसार नर्मदा में उपलब्ध पानी की निश्चित मात्रा, जलप्रवाह संबंधी 40 सालों तक की आकड़ाकीय जानकारी उपलब्ध न होने के कारण, 28 लाख एकड़ फीट की मात्रा मानकर चार राज्यों में बंटवारा किया गया। उसी के अनुसार मप्र को 18.25 लाख एकड़ फीट, गुजरात को 9 लाख एकड़ फीट, राजस्थान को 0.5 लाख एकड़ फीट और महाराष्ट्र को 0.25 लाख एकड़ फीट का आवंटन है, लेकिन मप्र, महाराष्ट्र का हिस्सा सरदार सरोवर जलाशय से नहीं, बल्कि नर्मदा की कछार से लेना है। निर्मित बिजली के 56 प्रतिशत हिस्सा मप्र का, 27 प्रतिशत महाराष्ट्र का तो 16 प्रतिशत गुजरात का और जलाशय के पानी में 91 प्रतिशत गुजरात और 9 प्रतिशत राजस्थान का यही हिसाब है। मप्र ने अपनी जरुरतें पूरी करते हुए हर साल की बारिश के पानी का जायजा लेते हुए गुजरात के लिए पानी छोडऩा है। यही फैसला है। 28 लाख एकड़ फीट से अधिक पानी जिस साल बहेगा। उस साल इस अधिक पानी की मात्रा में भी मप्र को 73, गुजरात को 36, महाराष्ट्र को 1 व राजस्थान को 2 प्रतिशत पानी पर हक इसी फैसले अनुसार तय है।
गुजरात की ये हठधर्मिता कि सरदार सरोवर में पूरा 139 मीटर तक पानी भरा जाए, वह भी बांध के दरवाजों की क्षमता की जांच परीक्षा के लिए ये पूर्णत: बेबुनियाद हैं। मप्र के 13 जिलो में पिछले साल की तुलना में भी इस साल आज तक ही कम पानी बरसा है और आने वाले महिनों में क्या स्थिति बनेगी, ये तय नहीं है। पिछले साल मप्र में भाजपा सत्ता पर होते हुए गुजरात ने पानी भरने की मांग नहीं की। जबकि बांध तो पूरी ऊंचाई तक जून 2017 से ही बनकर गेट दरवाजे भी बंद होकर खड़ा है। पिछले 2 सालों से ये मांग शिवराजसिंह शासन के समक्ष कभी नहीं की गई तो क्या इस साल का गुजरात का हठाग्रह ही राजनीति नहीं है।
बिजली का हिस्सा नहीं देने पर मांगे गुजरात से 229 करोड़
मप्र के मुख्य सचिव ने नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को पत्र लिखकर बिजली का हिस्सा न देने के लिए गुजरात से 229 करोड़ रुपए की मांग की है। 6000 घोषित विस्थापित मूल गांव में बसे है एवं 8500 परिवारों की पात्रता के लिए अर्जिया जीआए में लंबित है। ये भी आंकड़े पेश किए है। 2982 परिवारों के 2 हैक्टेयर जमीन के लिए 60 लाख रुपए के दावे भी लंबित होने की बात भी इस पत्र में है। इन दोनों के निराकरण तक 139 मीटर तक पानी भरना संभव नहीं। हम चाहते है कि मप्र शासन अपने दावों की आकड़ों की फिर से एक बार जांच करें। उनके आंकड़े बढ़ सकते है, कम नहीं हो सकते। मप्र शासन राजनीति नहीं कर रही। अब उनसे सामने आई सच्चाई से जाहिर है कि भूतपूर्व मप्र, गुजरात और केंद्र शासन ने मिलकर ही कई सालों से राजनीतिक चाल चली थी, जिसकी अब पोलखोल हुई है।