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क्या बिना पुनर्वास फिर डूब का इंतजार करेगा प्रशासन…?

locationबड़वानीPublished: Jun 20, 2020 12:50:06 pm

Submitted by:

vishal yadav

नर्मदा बचाओ आंदोलन कार्यकर्ताओं ने एसडीएम कार्यालय पहुंच बताई प्रभावितों की समस्याएं, डूब प्रभावितों की कई समस्याएं आज भी जैसी थी वैसी, लोगों को नहीं मिला पुनर्वास का लाभ

Narmada Bachao Andolan told SDM office affected problems

Narmada Bachao Andolan told SDM office affected problems

बड़वानी. नर्मदा पट्टी के डूब प्रभावितों की समस्याओं को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता शुक्रवार को एसडीएम कार्यालय पहुंचे। यहां इन्होंने बिना पुनर्वास के ही बैक वाटर की डूब आने और प्रभावितों को उनके अधिकार नहीं मिलने से हो रही समस्याओं से प्रशासन का अवगत कराया। राजघाट के प्रभावितों के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे नबआं कार्यकर्ताओं ने यहां सवाल किया कि क्या इस बार फिर बिना पुनर्वास के ही प्रशासन डूब का इंतजार कर रहा है।
डूब प्रभावितों के प्रतिनिधि के रूप में पहुंच नबआं के राहुल यादव और देवेंद्रसिह सोलंकी ने बताया कि सरदार सरोवर परियोजना से जिले की हजार एकड़ कृषि भूमि और कई गांव टापू बनते हैं। उन जमीनों और गांवों तक जाने के लिए पुल-पुलियों का निर्माण भी बाकी है। पिछले साल 2019 में डूब के कारण किसानों का लाख रुपए का नुकसान हुआ है। इस साल भी ऐसा ही होने की पूरी संभावना हैं। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा आज तक पुल-पुलिया का निर्माण ही शुरू नहीं किया है। इस साल डूब आएगी तो डूब प्रभावितों को फिर से कई परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का नहीं हुआ पालन
नबआं कार्यकर्ताओं ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन अब तक नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के 8 फरवरी 2017 के आदेश अनुसार जिन किसानों को 2 हेक्टेयर के बदले 60 लाख रुपए की पात्रता है, कई सारे परिवारों को ये राशि मिलना बाकी है। वहीं 2 हेक्टेयर कृषि भूमि फर्जी विक्रय वाले विस्थापितों को भी 15 लाख रुपए मिलना बाकी है। नर्मदा घाटी विकास विभाग के आदेश 05 जून 2017 के अनुसार जिन जिन के के द्वारा 2 हेक्टेयर कृषि भूमि के बदले 5.80 लाख रुपए का भुगतान किया गया है, ऐसे परिवारों को भी 15 लाख रुपए मिलना बाकी है। बिना अधिग्रहित जमीनों में सरदार सरोवर परियोजना से जलस्तर भरने से जिन किसानों की फसलें खराब हुई, उनकी नुकसान भरपाई और बिना आज तक नहीं दिया गया है। नघाविप्रा को सभी पुनर्वास स्थलों पर मूलभूत सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, सडक, नाली, स्ट्रीट लाइट की सुविधा देना था, जो काम अधूरा है। जिन पुनर्वास स्थलों पर भूखंडों की कमी है, उन पुनर्वास स्थलों पर नए आवासीय भूखंड उपलब्ध कराए जाएं। इन्होंने मांग की है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के द्वारा पूर्व में डूब से बाहर किए विस्थापितों के मकानों को भी प्रभावित मानकर लाभ दिया जाए।
जमीन के बदले दी जाए जमीन
एसडीएम कार्यालय पहुंचे नबआं कार्यकर्ताओं ने बताया कि जिन किसानों की 2 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित है, उन किसानों को नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसला, राज्य की पुनर्वास नीति के अनुसार जितनी कृषि भूमि डूब क्षेत्र में जा रही है, उतनी ही कृषि भूमि आबंटित की जाए। जिन विस्थापितों को आवासीय भूखंड दिए गए है, उन विस्थापितों को आवासीय भूखण्ड का भू-स्वामी का अधिकार दी जाए। इस मुददे पर मप्र राज्य नर्मदा घाटी विकास विभाग के आदेश 1 अगस्त 2017 के अनुसार व राज्य की पुनर्वास नीति के अनुसार होता है, जो आज तक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के द्वारा नहीं किया गया है। साथ ही मांग की कि जिन विस्थापितों को पिछले साल अस्थाई टीनशेड में रखा गया है, उन परिवारों को मकान बनाने के लिए 5.80 लाख का लाभ दिया जाए। इसके साथ ही डूब से प्रभावित मंदिर, मस्जिद, धर्मशाला, मांगलिक भवन को भूखंड व मूल मुआवजा तत्काल देने की बात रखी। साथ ही सरदार सरोवर परियोजना से जलक्षेत्र में मछुआरों को मछली पकडऩे का अधिकार देने और महासंघ बनाने के पूरे डूब क्षेत्र मछुआरों को अधिकार देने की बात कही। इस दौरान इन्होंने मई-जून 2017 व 2019 में बनाए लोगों के पंचनामें बनाए, उन परिवारों को मकान बनाने के लिए 5.80 लाख व आवसीय भूखंड अब तक नहीं दिए जाने की बात रखी। आंदोलनकारियों ने यहां बिना पूर्ण पुनर्वास आ रही डूब को गैरकानूनी बताया है। साथ ही डूब प्रभावितों के साथ हो रहे अन्यायपूर्ण व्यवहार पर विरोध प्रकट किया।

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