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इंदौर के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल त्रिवेदी बोले- 34 सालों के संघर्षों के बाद भी प्रभावितों को नहीं मिला मानव अधिकार

locationबड़वानीPublished: Dec 10, 2019 10:41:37 am

Submitted by:

vishal yadav

मानव अधिकार दिवस पर नबआं और डूब प्रभावितों ने किया विरोध प्रदर्शन, नबआं के नेतृत्व में शहर में निकली अधिकार रैली, झंडा चौक में हुई आमसभा

NBA and drowned protest against Human Rights Day

NBA and drowned protest against Human Rights Day

बड़वानी. इज्जत से जीने का अधिकार संविधान की गाथा है। पिछले 34 सालों के संघर्ष के बाद भी नर्मदा घाटी के डूब प्रभावितों को मानव अधिकार नहीं मिल पाया। यहां नर्मदा घाटी ने 34 साल तक जीवटता के साथ जीने के संसाधन पाए हैं, लेकिन अवैध और अकाली डूब से जिनकी खेती, आवास बर्बाद हुए, उन्हें सरकारें नई जिंदगी नहीं दे पाई। यह संविधान के विरोधी बड़ी हकीकत है। इसे मिटाने के लिए गांधीजी ने बताए अहिंसक सत्याग्रही राह पर चलना जरूरी है। ये बातें इंदौर के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल त्रिवेदी ने सोमवार को शहर के झंडा चौक में हुई नर्मदा बचाओ आंदोलन की सभा के ेदौरान कही।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेतृत्व में घाटी के किसान-विस्थापितों, मछुआरों के हक-अधिकार के लिए शहर में रैली निकाली गई और झंडा चौक में आमसभा हुई। सभा को संबोधित करते हुए अधिवक्ता त्रिवेदी ने कहा जिस देश में गरीब महिलाओं का आसानी से राशन कार्ड नहीं बनता, वहां उन्हें इतिहास खोजने के लिए मजबूर करने की साजिश है। आज हिंसा का माहौल है, लेकिन हमें संविधान को जमीन पर करना पड़ेगा। उन्होंने ऐलान किया कि नर्मदा आंदोलन गांव-गांव में शिविरों के मायम से युवा शक्ति का निर्माण करना चाहिए।
हर चुनौती के लिए जीवित है आंदोलन
नबआं की मेधा पाटकर ने कहा नर्मदा घाटी के लिए बीते 34 सालों से संघर्ष आंदोलन संघर्ष कर रहा है। यह संघर्ष मानव अधिकार के लिए है। घाटी में हजारों का पुनर्वास पाने के बाद जिन गरीब किसान, मजदूरों का हक छीना गया है और प्रकृति का विनाश थोपा हैं। उस हक, अधिकार और चुनौती के लिए आंदोलन जीवित है। आज सरकार संवादशील होते हुए भी नर्मदा के विनाश-विस्थापन के सामने कई अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई। इसलिए हमारा संघर्ष जारी है। सरदार सरोवर के बैक वाटर से कई आबाद गांव बर्बाद हो गए हैं।
कारंजा से निकली वाहन रैली
सोमवार दोपहर 12 बजे डूब गांवों के सैकड़ों विस्थापित, नबआं के पदाधिकारी-कार्यकर्ता और बाहर से आए वक्तागण एकत्रित हुए। यहां शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन कर वाहन रैली के रुप में विस्थापित मोटीमाता, एमजी रोड, रानीपुरा, योग माया मंदिर, तिरछी पुलिया होकर झंडा चौक पहुंचे। यहां आमसभा का आयोजन हुआ। रैली में नबआं की पताकाएं थाम विस्थापितों ने भारत माता की जय के साथ नर्मदा घाटी जिंदाबाद और अपने हक-अधिकार के लिए गगनभेदी नारे लगाए।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विरोध जताया
नबआं के राहुल यादव, धनराज भिलाला, जामसिंग भिलाला, कैलाश यादव सहित नर्मदा घाटी के विस्थापितों ने कहा कि किसानों की मजदूरों की खेती, समृद्धि डुबाना मानव अधिकारों की हत्या है। आज तक सरदार सरोवर के डूब से हजारों प्रभावितों का पुनर्वास बाकी है। बावजूद गांव, खेत-खलिहान, तट और पेड़-पौधे ध्वस्त कर दिए गए हंै। मध्यप्रदेश शासन मानव अधिकार दिवस मनाए नहीं, बल्कि मेहनतकशों का जीने का अधिकार दिलाएं और केंद्र तथा गुजरात की शासकों को कड़ा जवाब भी दें। इस आमसभा में नर्मदा घाटी ने एकमत से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विरोध जाहीर किया और कहा कि यह देश को विभाजित करने का यह प्रयास होगा। जिसमें गरीब, अनपढ़ परिवारों नागरिकता से वंचित किया जाएगा। सरकार ने 600 करोड़ रुपए खर्च करके आसम में 19 लाख लोगों का नागरिक हक नामंजूर किया है। ऐसे में इसे देशभर में लागू करने का विरोध करते हंै।
सभा में इन्होंने रखी अपनी बात
घाटी की सनोबर मंसूरी, कमला यादव, वंदना बहन ने देश में हो रहा महिलाओं का इज्जत से जीने देने का अधिकार कुचला जाने की भत्सर्ना की। युवा विद्यार्थी सुदर्शन ने कहा कि संविधान और मानव अधिकार कोई कागज के टुकड़े नहीं, बल्कि एक विचारधारा होती है। हमें चाहिए की प्रत्येक इंसान और नागरिकों को भूख प्यास से परेशानी न हो, इसके लिए संघर्ष करें। रोहन गुप्ता ने कहा सरदार सरोवर की विस्थापितों पर टीन शेड में रहने के लिए मजबूर किया हैं, जो गलत है। पूर्व नपा अध्यक्ष राजन मंडलोई व किसान नेता चंद्रशेखर यादव ने भी घाटीवासियों को अधिकार दिलाने में सहयोग का आश्वासन दिया।
जंगल-जमीन से बेदखली मंजूर नहीं
सेंचुरी के श्रमिकों का नेतृत्व करते हुए राजकुमार दुबे ने रोजगार के अधिकार का पक्ष पुरजोर रूप से रखा। प्रतिभा सिंटेक्स के श्रमिक विष्णु प्रसाद, सविता और अन्य श्रमिक प्रतिनिधियों ने भी मानव अधिकार और रोजगार के अधिकार के लिए चल रहे संघर्ष की कहानी बयां की। जयस नारी शक्ति की सीमा वास्कले ने कहा कि आदिवासियों को सरकार जंगल-जमीन से बेदखल करना चाहती है। बेटी बचाओ पर कहा कि महिलाओं को असुरक्षित रखने वाले समाज के समुदायों का भी हम विरोध करते हैं। आज जाति धर्म के ऊपर उठकर समाज की एकता को खलल करने वालों को चुनौती देने का समय है।

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