scriptमुनिश्री प्रमाणसागरजी ने कहा जो दिल से छूट जाए उसे वैराग्य कहते है | The Chaturmas of Munishree Pramanasagarji and Viratsagarji Maharaj | Patrika News

मुनिश्री प्रमाणसागरजी ने कहा जो दिल से छूट जाए उसे वैराग्य कहते है

locationबड़वानीPublished: Sep 10, 2019 07:50:36 pm

पर्यूषण पर्व पर सिद्धक्षेत्र में चल रहे मुनिश्री के प्रवचन, श्रावक संस्कार शिविर और ध्यान योग का भी हो रहा आयोजन

The Chaturmas of Munishree Pramanasagarji and Viratsagarji Maharaj

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बड़वानी. सिद्धक्षेत्र बावनगजा में मुनिश्री द्वय प्रमाणसागरजी महाराज और विराटसागरजी महाराज के चातुर्मास के योग में पर्यूषण पर्व मनाया जा रहा है। पर्यूषण पर्व के साथ ही मुनिश्री के सानिध्य में श्रावक संस्कार शिविर, ध्यान योग, अभिषेक पूजन का नित्य कार्यक्रम भी चल रहा है। पर्वराज पर्यूषण के आठवें दिन मंगलवार को सिद्धक्षेत्र बावनगजा में मुनिश्री प्रमाण सागरजी और विराट सागरजी ने त्याग की महत्ता बताई। मुनिश्री ने कहा कि केवल ज्ञान और वितरागी भगवान द्वारा प्रदत्त इस जैन धर्म में त्याग ही महत्वपूर्ण है। जैसे समाज की पहचान त्याग है, जिस धर्म का आधार ही त्याग है वो है जैन धर्म और उनके साधु संत भी त्याग ही करवाएंगे।
उन्होंने कहा कि जो वस्तु हाथ से छूट जाए उसे त्याग कहते है और जो दिल से छूट जाए उसे वैराग्य कहते है। जो दान देते है उसके साथ हर पर्याय में पुण्य की छाह बनी रहेगी दान और त्याग अपने शक्ति के अनुसार करते रहिए। साधु भी दान करता है, वो अपने ज्ञान का दान देते है। आप द्रव्य का दान करते हैए यदि आप कमाते है तो रोज दान भी करना चाहिए। जैसे कुएं का पानी निकालने पर उसका पानी और शुद्ध होता है, उसी तरह जो दान देते है उनकी संपत्ति भी शुद्ध होती है।
चार प्रकार के दानों की महत्ता बताई

शहर के दिगंबर जैन समाज मंदिर में पर्यषण पर्व के दौरान मंगलवार को जयपुर से पधारे स्वानुभव जैन ने उत्तम त्याग धर्म पर प्रवचन सार सुनाते हुए कहा कि दान चार प्रकार, चार संघ को दीजिए। अभयदान इसके तहत यत्नाचार रहित निर्दयी होकर प्रवर्तन नहीं करना, ज्ञानदान के तहत तत्वार्थों की प्ररुपणा करने वाले शास्त्रों को अपने आत्मा को पढऩे-पढ़ाने द्वारा आत्मा के उद्गार के लिए अन्य को अपना दान देना, औषधिदान के तहत रोग का नशा करने वाली प्रासुक औषधि का दान देना तथा आहारदान के तहत उत्तम पात्रों को उत्तम विधि से उत्तम आहर देना आहार दान होता है। उन्होंने कहा कि जो उत्तम त्याग धर्म को अंगीकार करके विषयभोगो को हलाहल विष समाज जानकर जीर्ण तण की तरह त्याग देते हैं, उनकी अविनय महिमा है। वहीं जो समस्त परिग्रह त्यागने में समर्थ नहीं हैं, वे धन को उत्तम पात्रों के उपकार के लिए दान में लगाते है। गुणों के धारी उत्तम उज्जवल पात्रों को जो दान देता है, वह जीव की महान सुख सामग्री को परलोक हो जाने वाला है।
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