उन्होंने कहा कि जो वस्तु हाथ से छूट जाए उसे त्याग कहते है और जो दिल से छूट जाए उसे वैराग्य कहते है। जो दान देते है उसके साथ हर पर्याय में पुण्य की छाह बनी रहेगी दान और त्याग अपने शक्ति के अनुसार करते रहिए। साधु भी दान करता है, वो अपने ज्ञान का दान देते है। आप द्रव्य का दान करते हैए यदि आप कमाते है तो रोज दान भी करना चाहिए। जैसे कुएं का पानी निकालने पर उसका पानी और शुद्ध होता है, उसी तरह जो दान देते है उनकी संपत्ति भी शुद्ध होती है।
चार प्रकार के दानों की महत्ता बताई शहर के दिगंबर जैन समाज मंदिर में पर्यषण पर्व के दौरान मंगलवार को जयपुर से पधारे स्वानुभव जैन ने उत्तम त्याग धर्म पर प्रवचन सार सुनाते हुए कहा कि दान चार प्रकार, चार संघ को दीजिए। अभयदान इसके तहत यत्नाचार रहित निर्दयी होकर प्रवर्तन नहीं करना, ज्ञानदान के तहत तत्वार्थों की प्ररुपणा करने वाले शास्त्रों को अपने आत्मा को पढऩे-पढ़ाने द्वारा आत्मा के उद्गार के लिए अन्य को अपना दान देना, औषधिदान के तहत रोग का नशा करने वाली प्रासुक औषधि का दान देना तथा आहारदान के तहत उत्तम पात्रों को उत्तम विधि से उत्तम आहर देना आहार दान होता है। उन्होंने कहा कि जो उत्तम त्याग धर्म को अंगीकार करके विषयभोगो को हलाहल विष समाज जानकर जीर्ण तण की तरह त्याग देते हैं, उनकी अविनय महिमा है। वहीं जो समस्त परिग्रह त्यागने में समर्थ नहीं हैं, वे धन को उत्तम पात्रों के उपकार के लिए दान में लगाते है। गुणों के धारी उत्तम उज्जवल पात्रों को जो दान देता है, वह जीव की महान सुख सामग्री को परलोक हो जाने वाला है।