बड़वानीPublished: Jul 23, 2019 11:09:18 am
मनीष अरोड़ा
वन अधिकार अधिनियम को लेकर भड़का आदिवासियों का आक्रोश, जागृत आदिवासी दलित संगठन ने रैली निकालकर किया वन विभाग का घेराव, चार घंटे चला घेराव, केंद्र सरकार से अध्याधेश वापस लेने की मांग
Tribal scandal over forest rights act
बड़वानी. केंद्र सरकार द्वारा वन अधिकार अधिनियम पर लाए गए अध्याधेश पर सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को वनों से बेदखली का आदेश दिया है। इस अधिनियम पर 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। इस अधिनियम को लेकर आदिवासियों में आक्रोश व्याप्त है। देश के लाखों आदिवासियों सहित प्रदेश के साढ़े तीन लाख आदिवासियों पर बेदखली की तलवार लटक रही है। अधिनियम को वापस लिए जाने की मांग को लेकर सोमवार को जागृत आदिवासी दलित संगठन के बैनर तले सैकड़ों आदिवासियों ने रैली निकालकर वन विभाग कार्यालय का घेराव किया।
सोमवार दोपहर एक बजे संगठन कार्यकर्ताओं ने रैली निकाली। रैली कृषि मंडी से आरंभ होकर बस स्टैंड, खदान मोहल्ला, झंडा चौक, एमजी रोड होते हुए वन विभाग कार्यालय पहुंची। यहां संगठन कार्यकर्ताओं ने शाम 5.30 बजे तक वन विभाग का घेराव कर केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर अपनी भड़ास निकाली। संगठन कार्यकर्ताओं ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम वर्ष 2006 में पारित हुआ, लेकिन आज भी देश में आदिवासी परिवार कानून में सुनिश्चित किए गए पारंपरिक अधिकारों से वंचित है। वन अधिकार कानून अंग्रेजों से शुरु हुआ्र जो आदिवासियों पर लगातार अत्याचार के सिलसिले खत्म करने के लिए बना था, लेकिन वन विभाग ने कभी नहीं माना और अपना अंग्रेज चरित्र नहीं बदला।
आदिवासी बेदखल हुए तो सरकारें जिम्मेदार
संगठन के बलराम सस्ते, बिलातीबाई, तुकारामभाई, हरसिंग जमरे आदि ने ज्ञापन में बताया कि वन अधिकार अधिनियम को लेकर शासन-प्रशासन व विभागों ने आंखे मूंद जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। जिससे लाखों आदिवासियों के दावों को बिना कानूनी जांच किए निरस्त कर दिए। सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी 2019 व 28 फरवरी 2019 के आदेश के बाद प्रदेश के साढ़े तीन लाख से अधिक आदिवासियों को बेदखली की तलवार लटक रही है। अब फिर से इसकी सुनवाई 24 जुलाई को होना है और हम चाहते है कि राज्य सरकार इसके लिए अच्छे से अच्छा वकील सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आदिवासी का पक्ष रखने के लिए भेजें। इससे लाखों आदिवासियो को अपनी जमीन से बेदखल होने से बचाया जा सके। क्योंकि अगर सही से सरकारों ने आदिवासियों का पक्ष नहीं रखा तो लाखों करोड़ों की संख्या में आदिवासी अपनी जमीन से बेदखल होंगे और इसके लिए पूरी तरह केंद्र और राज्य सरकार जिम्मेदार होगी।
ये रखी मांग
-वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधान व नियमों के अनुसार सभी लंबित व निरस्त दावों का निरीक्षया किया जाकर ध्यान रखा जाए कि ग्राम सभा के अधिकारों का हनन न हो।
-मप्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में वन अधिकार संबंधित मामले की आगामी 24 जुलाई को होने वाली सुनवाई में मजबूती से आदिवासियों के वन अधिकारों के पक्ष में खड़े हो।
-बुरहानपुर में हुई फायरिंग में दोषी वनकर्मियों को तत्काल निलंबित कर अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार किया जाए और आदिवासियों पर दर्ज झूठे केस खारिज किए जाए।
छात्र संगठन ने भी दिया ज्ञापन
इसी तरह आदिवासी छात्र संगठन द्वारा नायब तहसीलदार को कलेक्टर के नाम सौंपे ज्ञापन में बताया कि शिक्षा सत्र शुरु हुए एक माह बीत गया, लेकिन जिले में हासे स्कूलों में गणित, रसायन, जीव विज्ञान तथ प्रायोगिक विषयों की पुस्तकें अब तक वितरित नहीं की गई। एक ओर प्रदेश सरकार केजी से पीजी तक नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही हैं, वहीं शासकीय स्कूलों द्वारा प्रवेश के नाम पर गरीब बच्चों से शुल्क वसूला जा रहा है। पिछले वर्ष का आवास भत्ता आज तक नहीं मिला। जिले के छात्रावासों में प्रवेश के लिए चयन प्रक्रिया नहीं होने से छात्र असमंजस में भटक रहे है। इस दौरान संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रकाश बंडोड, भायसु सोलंकी, चैनसिंह अछालिया, बलराम सस्ते आदि मौजूद थे।