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दो जेल मंत्री मिले जिले को, नहीं बदल पाई जेल की दशा

locationबड़वानीPublished: Jan 14, 2019 10:45:16 am

कहने को केंद्रीय जेल, हालत जिला जेल से भी खराब, 456 कैदियों की जगह, रह रहे ढाई गुना ज्यादा कैदी, अन्य व्यवस्थाओं की भी दरकार, स्टाफ के पास क्वाटर भी नहीं

Two prisoners met in district, could not change the condition of jail

Two prisoners met in district, could not change the condition of jail

खबर लेखन : मनीष अरोरा
ऑनलाइन खबर : विशाल यादव
बड़वानी. केंद्रीय जेल बड़वानी को जिला जेल से केंद्रीय जेल बने 6 साल हो चुके हैं, लेकिन इसके हालात अब भी जिला जेल के समान ही है। केंद्रीय जेल बनने के बाद जिले से दो जेल मंत्री भी बन चुके है, फिर भी इसकी दशा नहीं सुधर पाई। आज भी जिला जेल के समान ही यहां कैदियों की व्यवस्था है। केंद्रीय जेल की क्षमता 456 बंदियों की है, लेकिन यहां 1150 बंदी बंद है। अन्य व्यवस्थाओं की बात करे तो आज तक केंद्रीय जेल में बंदियों के लिए अस्पताल भी नहीं बन पाया है।गंभीर बीमारी में बंदी को जिला अस्पताल ही ले जाना पड़ता है।
सरकार ने 2013 में बड़वानी जिला जेल का उन्नयन करते हुए केंद्रीय जेल बनाया था। केंद्रीय जेल तो बना दिया गया, लेकिन केंद्रीय जेल जैसी व्यवस्थाएं यहां नहीं हो पाई। वतज़्मान में केंद्रीय जेल में 446 पुरुष बंदियों और 10 महिला बंदियों की व्यवस्था है। जिसके एवज में यहां 1135 पुरुष बंदी और 35 महिला बंदी बंद है। क्षमता से ढाई गुना बंदियों के कारण अव्यवस्थाओं का भी बोलबाला है। बंदियों को बैराकों में भरकर रखा जाता है।जिसके कारण यहां त्वचा रोग और संक्रामक रोग बंदियों के बीच फैलने की भी संभावना बनी रहती है। उल्लेखनीय है कि पिछली सरकार में जेल मंत्री रहे अंतरसिंह आयज़् जिले की सेंधवा सीट का प्रतिनिधित्व करते थे। वहीं, वतज़्मान जेल मंत्री बाला बच्चन भी जिले की राजपुर सीट का प्रतिनिधित्व करते है। पिछले जेल मंत्री तो केंद्रीय जेल के लिए कुछ नहीं कर पाए।अब देखना ये है कि नए जेल मंत्री जेल का उद्धार कैसे करते है।
स्टाफ बढ़ा, क्वाटर नहीं
केंद्रीय जेल बनने के बाद जेल का स्टाफ भी बढ़ाया गया था। स्टाफ तो बढ़ा, लेकिन संसाधन नहीं बढ़े। जिला जेल के दौरान यहां जितने स्टाफ क्वाटर थे, आज भी उतने ही स्टाफ क्वाटर है। बाहर से आए स्टाफ को क्वाटर तक नहीं मिल पाए है। अधिकतर स्टाफ शहर में किराये के मकानों में रह रहा है। वहीं, संसाधनों की बात करे तो बंदियों को लाने ले जाने के लिए वाहन भी कम है।केंद्रीय जेल में एकमात्र एंबुलेस है। अन्य वाहनों की संख्या भी बहुत कम है।
अस्पताल का प्रस्ताव जगह की कमी में अटका
नियमों के अनुसार केंद्रीय जेल में बंदियों के स्वास्थ्य परीक्षण, बीमार होने पर भतीकज़्ी व्यवस्था के लिए जेल में ही अस्पताल होना चाहिए। केंद्रीय जेल में जगह नहीं होने के कारण यहां अस्पताल नहीं बन पाया है, जबकि इसका प्रस्ताव कब से बना हुआ है। उल्लेखनीय हैकि केंद्रीय जेल में डॉक्टरों की पदस्थी तो है, लेकिन किसी भी गंभीर बीमारी में बंदी मरीज को जिला अस्पताल में ही ले जाना पड़ता है। जिन्हें सुरक्षा के लिहाज से टीबी वाडज़् में ही भतीज़् कराया जाता है।
हाथों से हल खींचते थे बंदी
केंद्रीय जेल में कृषि योग्य जमीन भी है, जिस पर खेती की जा सकती है। यहां कृषि संसाधनों की कमी भी होने से खेती का काम बंद है। इसके पहले यहां बंदी अपने हाथों से हल खींचते थे। जिसका खुलासा 2015 में पत्रिका ने किया था। जिसके बाद यहां बंदियों से हल खींचवाने का काम बंद हुआ था। जेल प्रशासन भी मानता हैकि अगर कृषि उपकरण मिल जाए तो बंदियों को कृषि के क्षेत्र में रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण दिया जा सकता है। वतज़्मान में केंद्रीय जेल में कौशल उन्नयन के कई कायज़्क्रम चल रहे है।
्रबैराक और अस्पताल का प्रस्ताव भेजा है
बंदियों की संख्या ज्यादा होने से परेशानी तो होती है।नई बैराकों की जरूरत है, जिसका प्रस्ताव भेजा गया है। वहीं, अस्पताल के लिए अंदर जगह नहीं है, अब बाहर अस्पताल का प्रस्ताव भी भेजा है। जेल के पास बहुत जमीन है, उसके ऊपर कई काम कराए जा सकते है।
डीएस अलावा, जेल अधीक्षक

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