दीपावली पर आतिशबाजी के दौरान असावधानी बरतने से आंखों, त्वचा, कान, मस्तिष्क, ह्वदय एवं श्वसन तंत्र से जुड़ी समस्याओं के मरीजों में यकायक इजाफा हो जाता है। इसलिए सावधानी बरतना आवश्यक है। विशेषकर बच्चों को बम व धमाकेदार फटाखे नहीं चलाने देना चाहिए।
चिकित्सकों के अनुसार सामान्य तौर पर कान 85 डेसीबल तक ही ध्वनि सहन कर सकते है। इससे अधिक आवाज वाले धमाके कान के पर्दे तक फाड़ सकते हैं। इसके अलावा लगातार धमाकों की आवाज से श्रवण शक्ति भी कमजोर हो सकती है। इसलिए कम ध्वनि के या फलझड़ी जैसे पटाखे ही चलाने चाहिए।
छिपे होते हैं हानिकारक रसायन रॉकेट—- आसमान में जाकर फूटने वाले पटाखे जैसे रॉकेट, स्कॉय शॉट आदि में चारकोल, पोटेशियम नाइटे्रट के अलावा सल्फर व एल्यूमिनियम के मिश्रण से तैयार किए जाते है। इसलिए ऐसे पटाखें नहीं चलाने चाहिए।
बम— तेज आवाज वाले बम बनाने में बेहद विषैले तत्वों का प्रयोग किया जाता है। इनमें भी चारकोल, पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर आदि शामिल होते है। इस तरह के पटाखों से भी बचना चाहिए।
फुलझड़ी—चकाचौंध करने वाले व रंगीन रोशनी छोडऩे वाले पटाखे जैसे अनार, फुलझड़ी व चकरी आदि बेरियम नाइट्रेट, एल्यूमिनियम, सल्फर व चारकोल से तैयार किए जाते है। इस तरह के पटाखे भी नहंी चलाने चाहिए। इनसे कई बीमारियां हो सकती है।
आतिशबाजी करते समय सावधानी बरतना जरूरी है। कई पटाखों में हानिकारक तत्व, रसायन व गैस निकलते हैं, जो स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालने के साथ ही वातावरण को भी प्रदूषित करते हैं। इनसे आंख, त्वचा, कान, मस्तिष्क, श्वसन एवं एलर्जिक रोग हो सकते है।—-डॉ. एएल अग्रवाल, सीएचसी प्रभारी, शाहपुरा।