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गुलेल से शुरु हुई कहानी, अंतरराष्ट्रीय ट्रायल पर पहुंची, किसान की बेटी उर्मिला ने निशानेबाजी में किया नाम रोशन

locationबस्सीPublished: Feb 26, 2020 04:22:42 pm

अंतरराष्ट्रीय खेलने के लिए लक्ष्य से एक कदम दूर उर्मिला के रास्ते का कांटा बनी आर्थिक तंगी

jaipur

गुलेल से शुरु हुई कहानी, अंतरराष्ट्रीय ट्रायल पर पहुंची, किसान की बेटी उर्मिला ने निशानेबाजी में किया नाम रोशन

दीपशिखा वशिष्ठ / जयपुर. गुलेल से शुरु हुई गरीब किसान की निशानेबाज बेटी की कहानी अंतरराष्ट्रीय ट्रायल पर पहुंच जाएगी किसी ने नहीं सोचा था। बूंदी जिले के अड़ीला गांव में जन्मीं निशानेबाज उर्मिला राठौर (20) ने खेल जगत में राष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन किया। उन्होंने बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के निशानेबाजी (10 मीटर राइफल शूटिंग) में अपनी मेहनत के दम पर अंतरराष्ट्रीय ट्रायल्स में जगह बनाई। लेकिन अब आर्थिक तंगी प्रदेश की इस बेटी की सफलता के रास्ते मे रोडा बन गई है। क्योंकि उनके पास न तो राइफल है और न ही प्रशिक्षण की मंहगी फीस। बेटी की प्रतिभा को देखते हुए गांव के लोगों ने उर्मिला की मदद के लिए खेल मंत्री अशोक चांदना से सहायता मांगी। इस पर उन्हें आश्वासन तो मिला लेकिन मदद अभी तक नहीं मिली।

ऐसे शुरु हुई कहानी

उर्मिला एक एनसीसी कैडेट भी रही, जहां उन्होने पहली ही बार में इन्टर डायरेक्ट्रेट शूटिंग चैम्पियनशिप क्वालिफाई कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। उर्मिला के पिता ने कर्जा लेकर उसे औपचारिक प्रशिक्षण के लिए जयपुर भेज दिया। जहां से उर्मिला से सपनों को उड़ान मिली। उर्मिला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलना चाहती है और भारत को ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलाना चाहती हैं। उर्मिला का कहना है कि वो जीते जी खुद के जैसी 100 उर्मिला राठौर गांव से देश के लिए तैयार करना चाहती हैं।
पहले ही ट्रायल में बनाई जगह

उर्मिला ने जनवरी 2020 में पहले ही ट्रायल में 654 में से 606 अंकों के साथ अपनी जगह बनाई।उर्मिला ने राज्य खेल मंत्रालय में सहायता के लिए निवेदन किया, तो उसे एक ऐसी राइफल है मिली जो अंतरराष्ट्रीय मापदण्डों को पूरा नहीं करती है। इसके बाद फिर उसने खेल मंत्री से गुहार लगाई, जहां से उन्हे दस दिन में राइफल मिलने का आश्वासन मिला। लेकिन एक महीना गुजरने के बाद भी राइफल नहीं मिली। अगले अंतरराष्ट्रीय ट्रायल्स मार्च में हैं, लेकिन बिना राइफल वह कैसे बेहतर खेलेगी? ये एक बड़ा सवाल उसके सामने है।
निजी प्रशिक्षकों ने किया इनकार

पहले अंतरराष्ट्रीय ट्रायल के लिए एक निजी प्रशिक्षण केंद्र ने उसकी लगन देखकर उसे राइफल देकर प्रोत्साहित किया, तो उर्मिला ने खुद को साबित कर दिखाया। लेकिन निजी प्रशिक्षण केन्द्र के प्रशिक्षकों ने इस बार उर्मिला राठौर को राइफल देने से इंकार कर दिया। खुद की राइफल ना होने के कारण उसे ज्यादा समय अभ्यास करने नहीं दिया जाता।
व्यक्तिगत प्रशिक्षक की कमी खली

उर्मिला के अनुसार आर्थिक तंगी के चलते उसे हमेशा एक व्यक्तिगत प्रशिक्षक(कोच) की कमी खली। इसके बावजूद उर्मिला ने एक बार फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ट्रायल के लिए क्वालिफाई कर ये साबित कर दिया था कि परिस्थितियां उसके हौसलों से बड़ी नहीं है। पिता की आर्थिक स्थिति अब लडख़ड़ाने लगी, उन्होंने उर्मिला को आर्थिक सहायता देने में असमर्थता जताई। इसके कारण वह प्रशिक्षण शुल्क देने में असमर्थ है।
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